
दिलीप कुमार और राज कपूर।
सिनेमा के दो दिग्गज, राज कपूर और दिलीप कुमार की दोस्ती जितनी गहरी थी, उतनी ही इमोशनल कर देने वाली थी उनकी आखिरी मुलाकात। साल 1988 में जब राज कपूर जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे थे तब वे कोमा में चले गए। उनका परिवार उनके पास था, लेकिन एक शख्स की मौजूदगी ने उस कमरे की भावनाओं को और भी गहरा कर दिया, ये शख्स थे दिलीप कुमार। दिलीप साहब उस समय पाकिस्तान में एक कार्यक्रम के लिए गए हुए थे जैसे ही अपने प्रिय मित्र की हालत के बारे में सुना, तुरंत दिल्ली लौट आए। राज कपूर को ‘लाले दी जान’ कहकर बुलाने वाले दिलीप कुमार के दिल में एक ही ख्वाहिश थी, अपने सबसे अजीज दोस्त को एक बार फिर होश में देखना।
राज कपूर और दिलीप कुमार की आखिरी मुलाकात
ऋषि कपूर ने अपनी किताब में इस मार्मिक पल का जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि कैसे दिलीप साहब, अस्पताल के कमरे में राज कपूर के पास कुर्सी खींचकर बैठ गए, उनका हाथ थामा और उन्हें होश में लाने की कोशिश करते रहे। दिलीप कुमार ने कहा, ‘राज, आज भी मैं डर से आया हूं। माफ कर दे मुझे… उठो, बैठो और मेरी बात सुनो।’ दिलीप ने कहा, ‘मैं अभी पेशावर से लौटा हूं और तुम्हारे लिए चपली कबाब की खुशबू लाया हूं… चलो बाजार चलते हैं, जैसे पहले चलते थे। उनकी आवाज में दर्द साफ झलक रहा था। उन्होंने अपने बचपन के किस्सों, कबाब, रोटियों और पेशावर की गलियों की बात कर, राज कपूर को उन सुनहरी यादों में ले जाने की कोशिश की, मानो पुरानी महक उन्हें फिर से जगा देगी।
दिलीप के हाथ लगा पछतावा
उन्होंने आगे कहा, ‘राज, उठो और एक्टिंग करना बंद करो, मुझे पता है तुम एक बेहतरीन एक्टर हो।’ ये कोई आम रिश्ता नहीं था, फिल्मी बॉन्डिंग से ज्यादा गहरी दोस्ती थी, लेकिन यह पुकार अधूरी रह गई। राज कपूर ने 2 जून 1988 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। दिलीप कुमार की आंखों से बहते आंसू और उनके शब्द थे, ‘राज, मैं ले जाना है तुसी पेशावर दे घर दे आँगन विच…।’ उनकी टूटती आवाज में एक दोस्त की अंतिम हार थी। एक अधूरी ख्वाहिश, एक बिछड़ती दोस्ती, और एक युग का अंत। शोमैन चला गया, लेकिन उसकी आखिरी मुलाकात की कहानी आज भी सिनेमा के इतिहास में अमर है।
बचपन की दोस्ती थी हर रिश्ते से गहरी
दिलीप और राज कपूर बचपन के दोस्त थे। दोनों का जन्म उनके पैतृक शहर पेशावर में हुआ था और बड़े होने पर उन्होंने बॉम्बे के खालसा कॉलेज में पढ़ाई की। बाद में उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में बॉम्बे टॉकीज में कुछ दिन बिताए, जहां उन्होंने देविका रानी, मालिक श्री शशधर मुखर्जी, निर्माता और सुपरस्टार अशोक कुमार की कुलीन कंपनी जैसे दिग्गजों के गहन मार्गदर्शन और देखरेख में काम किया। राज कपूर और दिलीप साहब एक-दूसरे से उतना ही प्यार करते थे जितना अपने भाई-बहनों से, लेकिन वे दोनों अपने-अपने परिवारों में किसी और से ज्यादा एक-दूसरे के साथ विचार, भावनाएं और गुप्त आकांक्षाएं साझा करते थे। अपने एक पोस्ट में सायरा ने लिखा, ‘अगर राज लंदन में होते और दिपील फोन करके कहते कि किसी ज़रूरी काम के लिए उन्हें यहां शहर में बुलाया गया है तो राज तुरंत वापस आने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे, यही उनका एक-दूसरे के लिए प्यार और सम्मान था। हमारी शादी में राज जी और शशि, साहब के घर से मेरे घर तक पूरे रास्ते नाचते रहे।’
