रूसी तेल के दामों में फिर बड़ी गिरावट, भारत और चीन की कम होती डिमांड ने बदल दिया पूरा समीकरण


रूसी तेल पर फिर बढ़ी...- India TV Paisa

Photo:CANVA रूसी तेल पर फिर बढ़ी छूट!

एशियाई बाजार में एक बार फिर रूसी तेल के दामों में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है। रूस के प्रमुख क्रूड ऑयल यूराल्स की कीमतें ब्रेंट के मुकाबले पिछले एक साल के सबसे बड़े डिस्काउंट पर पहुंच गई हैं। इसकी वजह है भारत और चीन जैसे प्रमुख खरीदार देशों द्वारा हाल ही में की गई खरीद में कटौती, जो अमेरिका द्वारा रूस की बड़ी तेल कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों के बाद की गई है।

द इकोनॉमिक टाइम्स की एक खबर के अनुसार, सूत्रों के बताया कि दिसंबर में डिलीवरी के लिए रूस के यूराल्स क्रूड पर अब लगभग 4 डॉलर प्रति बैरल का डिस्काउंट मिल रहा है, जो ब्रेंट क्रूड के मुकाबले दोगुना चौड़ा अंतर है। यह छूट पिछले एक साल में सबसे ज्यादा है। हालांकि, यह 2022 के मुकाबले अभी भी कम है, जब पश्चिमी देशों के पहले प्रतिबंधों के बाद रूस को करीब 8 डॉलर प्रति बैरल तक की छूट देनी पड़ी थी।

भारतीय रिफाइनर्स ने लगाई रोक

अमेरिका ने हाल ही में रूसी ऑयल दिग्गज कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर सख्त पाबंदियां लगाई हैं और कंपनियों को 21 नवंबर तक इन संस्थाओं के साथ सभी सौदे खत्म करने की चेतावनी दी है। इसके बाद भारत की प्रमुख ऑयल कंपनियां हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL), भारत पेट्रोलियम (BPCL), मंगलुरु रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स, HPCL-मित्तल एनर्जी और रिलायंस इंडस्ट्रीज ने दिसंबर की डिलीवरी के लिए रूसी तेल के नए ऑर्डर रोक दिए हैं। ये पांच कंपनियां भारत के कुल रूसी तेल आयात का करीब 65% हिस्सा रखती हैं।

एशियाई तेल बाजार बंटा

इसी तरह, चीन की सरकारी ऑयल कंपनियों ने भी रूस से समुद्री मार्ग से आने वाले तेल की खरीद अस्थायी रूप से रोक दी है। इससे चीन के बंदरगाहों पर ईएसपीओ ब्लेंड ऑयल के दामों में भी तेज गिरावट आई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एशिया का रूसी तेल बाजार अब दो हिस्सों में बंट गया है- गैर-प्रतिबंधित आपूर्तिकर्ताओं का तेल जहां प्रीमियम पर बिक रहा है, वहीं प्रतिबंधित कंपनियों या जहाजों से जुड़ा तेल भारी छूट पर बेचा जा रहा है।

रूस की कमाई पर दबाव

भारत और चीन की इस रणनीति से रूस पर बड़ा आर्थिक दबाव बन गया है, क्योंकि तेल बिक्री उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। एनालिस्ट का कहना है कि लगातार बढ़ती छूट और घटती मांग से मॉस्को के रेवेन्यू पर असर पड़ सकता है, खासकर ऐसे समय में जब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा प्रस्तावित है और अमेरिका दोनों देशों पर रूसी तेल आयात कम करने का दबाव बढ़ा रहा है।

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