उत्तर प्रदेश की राजनीति का जिक्र समाजवादी पार्टी के बिना अधूरा है। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर हो रहा उपचुनाव सैफई की राजनीति का नया समीकरण बनाएगा। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने पिता की सीट से अपनी पत्नी डिंपल यादव को उतारा है। अखिलेश ने एक तरह डिंपल को समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी बनाकर एक वार से दो निशाने साधने की कोशिश की है। एक तो पिता की विरासत खुद से दूर नहीं जाने दी। दूसरा, चाचा शिवपाल यादव को मैदान में हटने पर मजबूर कर दिया।
मुलायम सिंह के निधन के बाद मैनपुरी में सैफई परिवार का ये पहला चुनाव होगा। मुलायम के निधन के कारण इस सीट पर सहानुभूति की लहर भी है। यही वजह है कि मुलायम परिवार से मैनपुरी सीट पर चुनाव लड़ने के दावेदारों में धर्मेंद्र यादव से लेकर तेज प्रताप यादव तक के नामों की चर्चा थी। शिवपाल यादव के खुद के भी चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन अखिलेश ने राजनीतिक दांव खेला और अपने पिता मुलायम सिंह की सीट से परिवार के किसी दूसरे सदस्य को उपचुनाव लड़ाने के बजाय अपनी पत्नी डिंपल यादव पर को चुनावी मैदान में उतार दिया। ताकि अपने पिता मुलायम सिंह की विरासत उनके ही पास बनी रहे।
दरअसल, हाल के समय में चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ अखिलेश के संबंध उतार चढ़ाव भरे ही रहे। मुलायम सिंह यादव ने एक तरफ अपने भाई और एक तरफ अपने बेटे के होने के कारण दोनो के बीच सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश की। लेकिन अब चूंकि मुलायम सिंह नहीं हैं, ऐसे में शिवपाल और अखिलेश दोनों मैनपुरी पर आधिपत्य चाहते थे, लेकिन अखिलेश ने अपनी पत्नी को सैफई से टिकट देकर बड़ा दांव चल दिया।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच राजनीतिक वर्चस्व की की लड़ाई थी। लेकिन अखिलेश के हाथ बाजी लगी थी। तब शिवपाल ने सपा से नाता तोड़कर अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली। हालांकि बड़े भाई मुलायम सिंह के साथ उनके रिश्ते हमेशा अच्छे रहे। पार्टी उनके हाथ से निकल गई, लेकिन मुलायम की मैनपुरी सीट शिवपाल की विशलिस्ट में है, ये इशारा वे समय-समय पर करते रहे।
मुलायम सिंह यादव अब जब दुनिया में नहीं हैं तो अखिलेश-शिवपाल के बीच सेतु की भूमिका अदा करने के लिए भी कोई नहीं बचा। ऐसे में शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी को असल समाजवादी बताया और अखिलेश पर चापलूसों से घिरे होने का आरोप लगाया। माना जा रहा था कि शिवपाल मैनपुरी से दम ठोंककर अखिलेश के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। लेकिन चाचा के तेवर भांपते हुए अखिलेश यादव ने पत्नी डिंपल यादव को प्रत्याशी बना दिया।
उधर, अब नेताजी के नहीं होने के चलते बीजेपी को लगता है कि इस अंतर को वो पाट सकती है। यही वजह है कि डिंपल के खिलाफ कद्दावर चेहरा तलाशा जा रहा है।