LIC still in profit of 27,300 crores after huge fall in shares of Adani Group, investors should not worry| अडाणी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट के बाद LIC अभी भी 27,300 करोड़ के मुनाफे में, निवेशक न


एलआईसी- India TV Hindi
Photo:PTI एलआईसी

जीवन बीमा निगम (एलआईसी) अडाणी समूह की प्रमुख फर्म में और निवेश कर रही है। फर्जीवाड़े के आरोपों के बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट के बावजूद बीमा कंपनी फायदे में है। शेयर बाजार के आंकड़ों से यह जानकारी मिली। शेयर बाजार को दी जानकारी के मुताबिक एलआईसी ने पिछले कुछ सालों में अडाणी के शेयरों में 28,400 करोड़ रुपये का निवेश किया है। अमेरिकी निवेश कंपनी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने से पहले इन शेयरों की कीमत 72,000 करोड़ रुपये थी। अडाणी समूह की कंपनियों में एलआईसी के मौजूदा शेयरों की कीमत गिरकर 55,700 करोड़ रुपये रह गई है, लेकिन फिर भी वह वास्तविक निवेश से 27,300 करोड़ रुपये ज्यादा है। एलआईसी के पास अडाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन में नौ प्रतिशत, अडाणी ट्रांसमिशन में 3.7 प्रतिशत, अडाणी ग्रीन एनर्जी में 1.3 प्रतिशत और अडाणी टोटल गैस लिमिटेड में छह प्रतिशत शेयर हैं। ऐसे में एलआईसी में निवेश करने वाले निवेशकों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। 

एफपीओ में एलआईसी कर रही 300 करोड़ निवेश  

अडाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) ने शेयर बाजार को बताया कि भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी ने एईएल के 20,000 करोड़ के एफपीओ में एंकर निवेशक के तौर पर 300 करोड़ रुपये निवेश करके 9,15,748 शेयर खरीदे हैं। एलआईसी ने एंकर निवेशकों के लिए आरक्षित शेयरों में से पांच प्रतिशत शेयर खरीदे। एईएल में एंकर निवेशक के तौर पर 33 संस्थागत निवेशकों ने कुल 5,985 करोड़ रुपये का निवेश किया। एलआईसी की पहले ही एईएल में 4.23 प्रतिशत हिस्सेदारी है। 

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से ग्रुप के शेयरों में बड़ी गिरावट 

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के कारण अडाणी समूह से जुड़ी कंपनियों में भारी गिरावट देखने को मिली, जिसमें देश की दिग्गज कंपनी एलआईसी भी शामिल है। इसके बाद अडाणी ग्रुप हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा फैलाए गए बेबुनियाद आरोपों और भ्रामक आख्यानों का 400 से अधिक पन्नों के जवाब में प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ जवाब दिया है। अडाणी समूह की प्रतिक्रिया हिंडनबर्ग के गुप्त उद्देश्यों और कार्यप्रणाली के खिलाफ भी सवाल उठाती है, जिसने भारतीय न्यायपालिका और नियामक ढांचे को आसानी से नजरअंदाज कर दिया है।

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