नई दिल्ली: 25 जून साल 1975, इस दिन देश में कुछ अलग ही हवा बह रही थी। देश की राजधानी दिल्ली में अलग तरह का माहौल था। लुटियंस दिल्ली में नेताओं की चहल-पहल बढ़ी हुई थी। खासकर सफदरगंज रोड पर, यहां के बंगला नंबर 1 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रहती थीं। उनके बंगले पर तमाम नेता, उनकी कैबिनेट के मंत्री और अधिकारी मौजूद थे। इसी दिन जयप्रकाश नारायण ने नई दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकार के खिलाफ बड़ी रैली बुलाई थी। तब देश में महंगाई और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर लोगों में गुस्सा पनप रहा था।
इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद लिखी जा रही थी पटकथा
इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट से फैसले को आए 13 दिन बीत चुके थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि जब तक मामला कोर्ट में चलेगा तब तक इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद पर बनी रह सकती हैं। लेकिन उन्हें संसद में किसी भी चर्चा और बिल पर वोट करने का अधिकार नहीं होगा। इसका मतलब यह था कि इंदिरा गांधी पीएम तो रहतीं लेकिन उनके पास कोई पॉवर नहीं रहती। किसी को नहीं मालूम था कि अब क्या होने वाला है। तभी सुबह-सुबह प्रधानमंत्री आवास से बंगाल के सीएम सिद्धार्थ शंकर रे को फोन किया गया और उन्हें फ़ौरन 1 सफदरजंग रोड पहुंचने को कहा गया। बता दें कि उस दिन वह दिल्ली में ही बंग भवन में रुके हुए थे। 1 सफदरजंग रोड पीएम इंदिरा गांधी का आधिकारिक आवास था।
दो घंटे तक चली प्रधानमंत्री और सिद्धार्थ शंकर की मीटिंग
सिद्धार्थ शंकर रे प्रधानमंत्री आवास पहुंचते हैं तो वह वहां देखते हैं कि इंदिरा गांधी स्टडी रूम में बैठी हुई थीं। कमरे में एक टेबल था, जिस पर ढेर सारी फाइलें फैली हुई थीं। वो बैठे और दोनों करीब 2 घंटे तक देश की हालात पर बात करते रहे। इस दौरान इंदिरा गांधी ने कहा कि उन्हें कई रिपोर्ट्स मिली हैं, जिसमें कहा गया है कि देश कई बड़ी मुसीबतों में फंसने वाला है। हर तरफ अव्यवस्था फैल सकती है। विपक्ष सिर्फ आंदोलन पर उतारू है। वह किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं है। देश में कानून का राज नहीं रह गया है। इस समय कोई कड़ा कदम उठाने की सख्त जरूरत है।
इंदिरा गांधी के साथ बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे
भारत को है शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत- इंदिरा गांधी
इमरजेंसी हटने के बाद जांच कमीशन के सामने सिद्धार्थ शंकर रे ने बताया था कि इंदिरा गांधी ने उस दौरान कहा था कि भारत को ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की जरूरत है। ठीक उसी तरह जब एक बच्चा पैदा होता है और उसमें कोई हरकत नहीं होती, तब उसमें जान लाने के लिए शॉक दिया जाता है। इंदिरा गांधी का कहना था कि देश में एक बड़ी शक्ति का उभरना जरूरी है, जो देश को मुसीबत से बचा सके। दो घंटे चली बैठक के बाद इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ शंकर रे को समस्या का समाधान निकालने की जिम्मेदारी सौंपी, जिसके लिए उन्होंने समय मांगा और कहा वह शाम 5 बजे तक समाधान के साथ वापस हाजिर होंगे।
सिद्धार्थ शंकर रे ने दी थी इमरजेंसी लगाने की सलाह
प्रधानमंत्री आवास से वापस लौटने के बाद सिद्धार्थ बाबू ने कानून की किताबों को पलटना शुरू किया। चूंकि वह कानून के अच्छे जानकर थे इसलिए उन्होंने इंदिरा गांधी के सामने जाने से पहले सभी संभावनों को अच्छे से टटोल लिया। इसके बाद वह लगभग 3:30 पर वापस प्रधानमंत्री आवास 1 सफदरगंज रोड पहुंच गए। जहां उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सलाह दी कि वे भारतीय संविधान की धारा 352 का इस्तेमाल करते हुए देश में इमरजेंसी लगा दें। हालांकि शुरुआत में वह इस सुझाव से सहमत नहीं थीं, लेकिन सिद्धार्थ शंकर रे के कई तर्क और उदहारण के बाद उन्होंने इस पर अपनी सहमति जता दी।
इमरजेंसी
25 जून 1975 से 19 जनवरी 1977 तक देश में लागू रही इमरजेंसी
इमरजेंसी लगाने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी चाहिए थी तो इसके लिए इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के पास शाम 5:30 पर पहुंच गए। वहां प्रधानमंत्री ने उन्हें पूरी स्तिथि से अवगत कराया। राष्ट्रपति ने देश में इमरजेंसी लगाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी और कई अन्य खानापूर्तियों के बाद देश में 25 जून 1975 से 19 जनवरी 1977 तक इमरजेंसी लागू रही। इस दौरान मेंनटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा कानून और डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत करीब एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया।
1977 के आम चुनाव में मिली करारी शिकस्त
इमरजेंसी खत्म होने के बाद 1977 में देश में आम चुनाव कराए गए। जनता में तत्कालीन इंदिरा सरकार के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश था। चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जबरदस्त हार हुई। पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के नए प्रधानमंत्री बने थे। आज इमरजेंसी को देश के इतिहास के काले दौर के रूप में याद किया जाता है। लोकतंत्र में ऐसे फैसले बहुत सोच समझकर लिए जाने चाहिए क्योंकि इन फैसलों नतीजा आखिरकार पूरे देश को ही भुगतना पड़ता है।