नई दिल्ली: महिला आरक्षण बिल को लेकर मोदी सरकार गंभीरता दिखा रही है और नई संसद की पहली कार्यवाही में ही इस महत्वपूर्ण बिल को सदन में पेश कर चुकी है। लेकिन दोनों सदनों से पास होने के बाद भी इसे कानून का रूप लेने में वक्त लगेगा। माना जा रहा है कि बिल पास होने के बाद अगर सरकार इस पर तेजी में काम करती है तब जाकर 2029 के चुनाव में महिलाओं को इसका लाभ मिल पाएगा।
क्या है महिला आरक्षण के लिए पेश विधेयक का नाम?
महिला आरक्षण के लिए पेश विधेयक का नाम ‘128वां संविधान संशोधन विधेयक 2023′ है, जिसे मोदी सरकार ने ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ नाम दिया है। इसमें कहा गया है कि लोकसभा, सभी राज्यों की विधानसभा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में ‘यथांसभव एक तिहाई सीटें’ महिलाओं के लिए आरक्षित होगीं। यानी अगर लोकसभा में 543 सीटें हैं, तो इनमें से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इन सीटों पर सिर्फ महिला उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकेंगी।
विपक्ष लगा रहा ये आरोप
जिस विधेयक को पीएम मोदी महिलाओं के विकास के लिए मिल का पत्थर और देश के लोकतंत्र के लिए जरूरी बता रहे हैं। उसके सदन में पेश होने भर से देश की महिलाओं में उत्साह का माहौल है। सदन से सड़क तक देश की महिलाएं मोदी सरकार की तारीफ कर रही हैं लेकिन जिस बिल को लोकसभा में पेश किया गया, आज जिस पर चर्चा होनी है और कल राज्यसभा में पेश किया जाना है, उस ‘नारी शक्ति वंदन’ विधेयक को कानून रूप लेने में अभी वक्त लगेगा। 2023 के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 के आम चुनाव में तो कम से कम महिलाओं को इसका लाभ नहीं मिलने वाला है और यही कारण है कि विपक्ष महिलाओं के लिए जरूरी इस बिल को लाने में देरी का आरोप लगा रहा है।
महिला आरक्षण में क्या हैं अड़चनें?
- दोनों सदनों से पास होना जरूरी- लोकसभा में बिल पेश, राज्यसभा में कल बिल पेश होगा
- राज्य विधानसभाओं की मंजूरी- 50% राज्यों की विधानसभाओं से पास होना जरूरी
- राजनीतिक दलों का समर्थन- वीमेन रिजर्वेशन में आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग पर अड़े कई दल
- जनगणना और परिसीमन- 2026 की जनगणना और उसके बाद होने वाले परिसीमन तक इंतजार
आखिर विपक्ष को क्यों लग रहा है कि मोदी सरकार ने आरक्षण का बिल लाकर महिलाओं को भरोसा तो दिलाया लेकिन इसके धरातल पर उतरने में वक्त लगेगा क्योंकि जो बिल लोकसभा में टेबल किया गया है वो संविधान संशोधन विधेयक है और राज्यों को भी इफेक्ट कर रहा है इसलिए उसके दोनों सदनों से पास होने के बाद भी कानून की शक्ल लेने के लिए 50 फीसदी राज्यों की विधानसभाओं से पास होना जरूरी है। इसके लिए मोदी सरकार को अलग-अलग क्षेत्रीय दलों से समर्थन की जरूरत पड़ेगी और फिर जब कानून बन जाएगा तो 2026 की जनगणना और उसके बाद होने वाले परिसीमन तक का इंतजार करना होगा। मतलब साफ है 2026 की जनगणना के बाद उसके आंकड़ों के आधार पर परिसीमन किया जाएगा तब तक महिला आरक्षण विधेयक को कानून बनने के बाद भी प्रैक्टिस में नहीं लाया जा सकेगा।
बिल पर कांग्रेस समेत कई दलों का समर्थन
सरकार ने 2021 की जनगणना कोविड के चलते रोक दी थी ऐसे में 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण को वास्तविक रूप देने के लिए सरकार को इस प्रक्रिया को तेजी से पूरा कराना होगा। लोकसभा में सरकार के पास पूर्ण बहुमत और बिल पर कांग्रेस समेत कई दलों के समर्थन के कारण उम्मीद है इस बार ये बिल दोनों सदनों में आसानी से पास हो जाएगा। लेकिन बिल पास होने के बाद ये लागू कब से होगा, इसे लेकर संशय बना हुआ है।
यह भी पढ़ें-