संयुक्त राष्ट्र: भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए जी4 देशों की ओर से एक विस्तृत मॉडल पेश किया, जिसमें महासभा द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से नए स्थायी सदस्यों को चुने जाने और वीटो के मामले पर लचीलेपन को अपनाए जाने का प्रावधान है। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि राजदूत रुचिरा कंबोज ने बृहस्पतिवार को सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) के दौरान कहा कि अगले साल होने वाली संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ काफी समय से लंबित विषय पर ठोस प्रगति करने की दिशा में एक अहम पड़ाव है।
कंबोज ने ब्राजील, जर्मनी, जापान और भारत की ओर से बहस, संवाद और अंतत: बातचीत के लिए ‘जी4 मॉडल’ पेश किया। इन प्रस्तावों को बड़े पैमाने पर संयुक्त राष्ट्र सदस्यों से मजबूत समर्थन प्राप्त हुआ। कंबोज ने महासभा में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के साथ विस्तृत जी4 मॉडल साझा करते हुए कहा, ‘‘जब 1945 में परिषद की स्थापना की गई थी, तब की वास्तविकताएं, आधुनिक युग और नई सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं से काफी समय पहले बदल गई हैं और इसमें बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है।’’ उन्होंने कहा कि इन नई वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए जी4 मॉडल का प्रस्ताव है कि छह स्थायी और चार या पांच गैर-स्थायी सदस्यों को जोड़कर सुरक्षा परिषद की सदस्यता मौजूदा 15 से बढ़कर 25-26 की जाए।
इन देशों को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाने का प्रस्ताव
सुरक्षा परिषद में दो अफ्रीकी देशों और दो एशिया प्रशांत देशों, एक लातिन अमेरिकी एवं कैरेबियाई देश तथा पश्चिमी यूरोपीय एवं अन्य क्षेत्रों से एक देश को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है। जी4 मॉडल के अनुसार, सदस्यता की दोनों श्रेणियों में प्रमुख क्षेत्रों के ‘‘स्पष्ट रूप से कम प्रतिनिधित्व और गैर-प्रतिनिधित्व’’ के कारण सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना इसकी वैधता और प्रभावशीलता के लिए ‘‘हानिकारक’’ है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि संघर्षों से निपटने और अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में परिषद की असमर्थता सुधार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है। कंबोज ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जी4 मॉडल यह ‘‘नहीं बताता’’ कि कौन से देश नए स्थायी सदस्य होंगे और ‘‘यह निर्णय लोकतांत्रिक और समावेशी तरीके से चुनाव के जरिये महासभा करेगी।’’ जी4 मॉडल के तहत वीटो को लेकर लचीलेपन की पेशकश की गई।
वीटो पर कही गई ये बात
वीटो का मामला सदस्य देशों के बीच विवाद का विषय रहा है। कंबोज ने कहा, ‘‘हालांकि नए स्थायी सदस्यों की जिम्मेदारियां एवं दायित्व सैद्धांतिक रूप से वर्तमान स्थायी सदस्यों के समान ही होंगे, लेकिन वे तब तक वीटो का प्रयोग नहीं करेंगे जब तक कि समीक्षा के दौरान मामले पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बहरहाल, हमें वीटो मुद्दे को परिषद सुधार की प्रक्रिया पर ‘‘वीटो’’ की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हमारा प्रस्ताव रचनात्मक बातचीत के लिए इस मुद्दे पर लचीलापन प्रदर्शित करने का एक संकेत भी है।’ वर्तमान में, केवल पांच स्थायी सदस्यों- चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका- के पास वीटो शक्ति है। उन्होंने इसका इस्तेमाल कर यूक्रेन और गाजा जैसी वैश्विक चुनौतियों और संघर्षों से निपटने संबंधी परिषद की कार्रवाई को बाधित किया है।
गैर स्थाई सदस्यों के पास नहीं होती वीटो शक्ति
परिषद में शेष 10 देशों को दो साल के कार्यकाल के लिए गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में चुना जाता है और उनके पास वीटो शक्ति नहीं होती है। संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस के स्थायी प्रतिनिधि निकोलस दे रिविएर ने कहा कि उनका देश लंबे समय से स्थायी सदस्यता के लिए भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी की उम्मीदवारी का समर्थन करता रहा है। उन्होंने जी4 मॉडल पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘‘इसके अलावा, फ्रांस सुरक्षा परिषद के व्यापक सुधार के लिए अभी पेश किए गए मॉडल की भावना का पूरी तरह से समर्थन करता है। यह इस सभा के बहुमत की उम्मीदों के अनुरूप है।’’ अमेरिका ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सभी 54 अफ्रीकी देशों सहित संयुक्त राष्ट्र के अधिकतर सदस्य देश सुरक्षा परिषद में स्थायी और अस्थायी दोनों सीट के विस्तार का समर्थन करते हैं। (भाषा)
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