शंभू बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन का असर अब ट्रेनों पर भी पड़ने लगा है। मंगलवार को चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन का हर प्लेटफार्म यात्रियों से खचाखच भरा नजर आया। रेलवे स्टेशन पर पूछताछ कक्ष से लेकर रिजर्वेशन काउंटर तक यात्री लाइन में खड़े दिखाई दिए। दोपहर बाद चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पर पांव रखने तक की जगह नहीं थी।
किसानों के आंदोलन के चलते चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन से 1 मई तक पांच ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं। वहीं, शंभू रेलवे स्टेशन से किसान आंदोलन के कारण ट्रेनों का संचालन पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। यहां से गुजरने वाली लंबी दूरी की एक्सप्रेस ट्रेनों का रूट डायवर्ट कर ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है। इस कारण यात्रियों का करीब तीन से आठ घंटे तक का अतिरिक्त समय लग रहा है।
एक मई तक 97 ट्रेनों का रूट डायवर्ट
नॉर्दन रेलवे के चीफ पब्लिक रिलेशन ऑफिसर दीपक कुमार ने बताया कि एक मई तक अप-डाउन 97 ट्रेनों का रूट डायवर्ट कर दिया गया है। ये ट्रेनें अंबाला कैंट-चंडीगढ़- न्यू मोरिंडा-सरहिंद- सानेहवाल से होकर चलाई जा रही हैं। वहीं, अप और डाउन की 70 ट्रेनें एक मई तक कैंसिल कर दी गई हैं। इसके अलावा कुछ ट्रेनों को दो मई तक कैंसल किया गया है। इसमें नई दिल्ली-अमृतसर समेत कई ट्रेनों का रूट डायवर्ट कर दिया गया है।
रेल रोको आंदोलन से मुसाफिर बेहाल
किसानों के रेल रोको आंदोलन से ट्रेनों के प्रभावित होने के बाद रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को परेशानी के हालात में बैठे देखा जा सकता है। यात्रियों का कहना है कि वे कई-कई घंटों से ट्रेनों का इंतजार कर रहे हैं लेकिन ट्रेन कब आएगी इसका जवाब कोई नहीं दे पा रहा है। परेशान यात्रियों ने सरकार से अपील करते हुए कहा कि किसानों का आंदोलन खत्म करवाया जाए ताकि जनता को कोई परेशानी ना हो। वहीं जिन यात्रियों को किसानों के आंदोलन की खबर है, वे ट्रेनों की टाइमिंग पहले से पता करने के बाद रेलवे स्टेशन पहुंच रहे हैं। वहीं कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है और वे स्टेशन पर आने के बाद ट्रेन का लंबा इंतजार करने को मजबूर है।
क्यों आंदोलन कर रहे हैं किसान?
केंद्र सरकार ने किसानों से फसलों की खरीद से जुड़े कानून में बदलाव करने के लिए कृषि बिल पेश किया था। इस बिल के जरिए हो रहे बदलावों से किसान खुश नहीं थे। इस वजह से आंदोलन की शुरुआत हुई। पहले सिर्फ पंजाब हरियाणा के किसान सड़क पर थे, लेकिन बाद में अन्य राज्यों के किसान भी इसमें शामिल हुए और सरकार को यह बिल वापस लेना पड़ा। इसके बाद किसानों का आंदोलन रुका, लेकिन कुछ समय बाद फिर किसान सड़कों पर आ गए। किसानों की मांग उन किसानों को जेल से छोड़ने की है, जिन्हें आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया था। किसान चाहते हैं कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य के कानून बनाए जाएं। किसानों का कर्ज माफ किया जाए और आंदोलन में जिन किसानों की जान गई है। उनके परिवार को मुआवजा देने के साथ किसी एक सदस्य को नौकरी भी दी जाए।