राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय का समापन समारोह आज नागपुर के रेशम बाग मैदान में संपन्न हुआ। समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में श्री क्षेत्र गोदावरी धाम बेट सराला के पीठाधीश महंत राम गिरि महाराज भी उपस्थित थे। समारोह को सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने संबोधित करते हुए कहा कि भारत का वातावरण दूसरा है, चुनाव संपन्न हुए, उसके परिणाम भी आए और कल सरकार भी बन गई। उन्होंने कहा कि क्यों कैसे उसमें संघ के लोग नहीं पडते, हम अपना कर्तव्य करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि इन बातों में उलझे रहेंगे तो काम रह जाएंगे और चुनाव प्रचार की चुनाव में जो होता है प्रजातंत्र की अनिवार्य आवश्यकता प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि दो पक्ष रहते हैं इसलिए स्पर्धा होती है। इसमें भी मर्यादा रहती है। उन्होंने कहा कि लोग संसद में जाएंगे और वहां बैठकर अपने देश को चलाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि सहमति बनाकर चलाएं, हमारे यहां तो परंपरा सहमति बनाकर चलने की है।
मोहन भागवत ने कहा, “संसद क्यों है, उसके दो पक्ष क्यों हैं, इसलिए है कि किसी भी सिक्के के दो पहलू रहते हैं। ऐसे किसी भी प्रश्न के दो पहलू रहते हैं, एक पक्ष एक पहलू का विचार करता है, तो दूसरे पक्ष में दूसरा पहलू उजागर करना है ताकि जो होना है वह पूर्णत: ठीक हो, सहमति बने, इसलिए संसद बनती है। लेकिन ऐसी सहमति बिना स्पर्धा करके आए लोगों में थोड़ा कठिन भी रहती है और इसलिए हम बहुमति का आसरा लेते हैं, उसके लिए स्पर्धा चलती है।”
‘मणिपुर 1 साल से शांति की राह देख रहा है’
RSS प्रमुख ने कहा, “एनडीए सरकार फिर से सत्ता में आ गई, पिछले 10 वर्षों में बहुत कुछ अच्छा हुआ, आर्थिक स्थिति अच्छी हो रही है, दुनिया में देश के प्रतिष्ठा बढी है, ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के सामने आगे बढ़ रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए , समस्याओं से राहत लेनी है।” उन्होंने कहा, “देश में शांति चाहिए, समाज में कलह नहीं चलता, मणिपुर 1 साल से शांति की राह देख रहा है, उससे पहले 10 साल शांत रहा, अचानक जो कलह है, वहां उपज गया या उपजाया गया, उसकी आग में जल रहा है।”
‘विविधता भी हमारी एकता का आविष्कार ‘
मोहन भागवत ने कहा कि अपने समाज में विशेष बात है कि हमारा समाज विविधताओं से भरा हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि मूल में तो हम एक ही हैं, विविधता भी हमारी एकता का आविष्कार है,अभिव्यक्ति है और इसलिए उसको स्वीकार करो,मिलजुल कर चलो, अपने-अपने मत पर पक्के रहो लेकिन दूसरों के मत का उनका उतना ही सम्मान करो, उनका भी मत सत्य है यह स्वीकार करो और मिलकर धर्म की राह पर चलो।