ट्रंप के पूर्व NSA की किताब में भारत-अमेरिका संबंधों समेत कई अन्य बड़े दावे, PM मोदी और अजीत डोभाल पर लिखी ये बात


पीएम मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)- India TV Hindi

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पीएम मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)

वाशिंगटनः अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एच आर मैकमास्टर ने अपनी नयी पुस्तक में भारत-अमेरिका के संबंधो को लेकर बड़ा दावा किया है। उन्होंने अपनी किताब में भारत और अमेरिका के रणनीतिक संबंधों की वजह को चीन की आक्रामकता बताया है। मैकमास्टर ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार मुख्य रूप से चीनी आक्रामकता के कारण अमेरिका के साथ ‘‘अभूतपूर्व’’ सहयोग करने की इच्छुक है, लेकिन साथ ही वह ‘‘फंसने और त्यागे जाने’’ को लेकर भी ‘‘भयभीत’’ है। अमेरिका के पूर्व एनएसए ने अपनी किताब में कई अन्य चौंकाने वाला दावा भी किया है। 

बता दें कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) के रूप में अपने कार्यकाल का विवरण देते हुए मैकमास्टर ने अपनी पुस्तक ‘ऐट वॉर विद अवरसेल्व्स’ में लिखा है कि ट्रंप द्वारा बर्खास्त किए जाने से एक दिन पहले उन्होंने अपने भारतीय समकक्ष अजीत के.डोभाल से मुलाकात की थी। यह पुस्तक मंगलवार से दुकानों पर उपलब्ध हो गई है। मैकमास्टर ने कहा, ‘‘बर्खास्त किए जाने से एक दिन पहले मैं अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल से क्वार्टर 13, फोर्ट मैकनेयर में रात्रि भोज के लिए मिला था। यह यूएस कैपिटल के दक्षिण में एनाकोस्टिया और पोटोमैक नदियों के संगम पर स्थित एक शांत जगह है।

डोभाल के बारे में अमेरिकी एनएसए ने खोले कई राज

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बारे में भी मैक मास्टर ने अपना ऑब्जर्वेशन दिया है। उन्होंने लिखा है कि डोभाल एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने पद के अनुरूप व्यवहार करते हैं। ‘‘रात के खाने के बाद टहलते समय उन्होंने (डोभाल ने) फुसफुसाते हुए कहा- ‘हम कब तक साथ काम करेंगे?’ खुफिया ब्यूरो के निदेशक रहे डोभाल जैसी पृष्ठभूमि वाले किसी व्यक्ति को यह समझने में देर नहीं लगती कि मैं ट्रंप प्रशासन से अलग हो रहा हूं। मैंने सीधा जवाब दिए बिना उनसे कहा कि इस पद पर काम करना मेरे लिए गर्व की बात रही और मैंने विश्वास जताया कि निरंतरता बनी रहेगी।’’ मैकमास्टर ने लिखा कि वे दोनों एक-दूसरे को इतनी अच्छी तरह से जानते थे कि डोभाल उनसे सीधे बात कर सकते थे।

डोभाल को पता था अफगानिस्तान में क्या होगा, फिर भी पूछा ये सवाल

ट्रंप के एनएसए रहे मैकमास्टर की किताब के अनुसार, डोभाल ने उनसे पूछा था, ‘‘आपके जाने के बाद अफगानिस्तान में क्या होगा?’’ इस पर मैकमास्टर ने भारतीय एनएसए से कहा कि ट्रंप ने दक्षिण एशिया रणनीति को मंजूरी दी है और यह 17 साल के युद्ध में पहली तर्कसंगत एवं टिकाऊ रणनीति है। उन्होंने लिखा, ‘‘डोभाल को यह सबकुछ पता था, लेकिन कभी-कभी आप अपने सबसे करीबी विदेशी समकक्षों के साथ भी पूरी तरह से ईमानदार नहीं हो सकते। वास्तव में, मैं डोभाल की चिंता को समझता था और मुझे पता था कि मेरी प्रतिक्रिया उतनी आश्वस्त करने वाली नहीं थी।

एनएसए ने लिखा- ट्रंप करते थे गैर परंपरागत तरीके से काम

मैकमास्टर ने अपनी किताब में लिखा है कि ट्रंप गैर परंपरागत तरीके से और आवेग में काम करते थे। कभी-कभी यह अच्छा होता था और कभी-कभी यह उतना अच्छा नहीं होता था।’’ मैकमास्टर ने अपनी पुस्तक में 14 अप्रैल 2017 से 17 अप्रैल 2017 के बीच अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की अपनी यात्रा का विस्तृत विवरण दिया है। भारत यात्रा के दौरान उन्होंने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर और डोभाल से मुलाकात की थी। मैकमास्टर ने डोभाल के जनपथ स्थित आवास पर हुई अपनी बैठक के बारे में लिखा, ‘‘डोभाल और जयशंकर के साथ बातचीत आसान थी, क्योंकि हमारा मानना था कि हमारे पास अपने आपसी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए साथ मिलकर काम करने का एक बेहतरीन अवसर है।’’ उस समय जयशंकर विदेश सचिव थे और दिवंगत सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं।

भारत को पाकिस्तान के परमाणु से भी नहीं लगा डर

ट्रंप के पूर्व एनएसए लिखा, ‘‘हमने अफगानिस्तान में युद्ध और परमाणु-संपन्न पाकिस्तान से भारत को होने वाले खतरे के बारे में बात की, लेकिन जयशंकर और डोभाल ने इसे पूरी तरह इग्नोर किया। शायद उनको पाकिस्तान से कोई डर नहीं था। उनकी चिंता मुख्य रूप से चीन की बढ़ती आक्रामकता को लेकर थी और उन्होंने उसके ही बारे में बात की। शी जिनपिंग की आक्रामकता के कारण अभूतपूर्व सहयोग के लिए उनकी सोच स्पष्ट थी। दुनिया के सबसे बड़े और दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों के बीच गहरी होती साझेदारी तार्किक लगती है, लेकिन भारत को उन प्रतिस्पर्धाओं में फंसने का डर है, जिनसे वह दूर रहना पसंद करता है और उसे अमेरिका के ध्यान देने वाला समय कम होने और दक्षिण एशिया को लेकर अस्पष्टता के कारण त्यागे जाने की भी आशंका है।’’ उन्होंने कहा कि शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत के नेतृत्व की विरासत और ये चिंताएं भारत के लिए हथियारों और तेल के एक महत्वपूर्ण स्रोत रूस के प्रति उसके अस्पष्ट व्यवहार का कारण है।

पीएम मोदी पर भी एनएसए ने लिखी बड़ी बात

मैकमास्टर ने लिखा कि अपनी यात्रा के अंतिम दिन उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आवास पर मुलाकात की। ‘‘मोदी ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया। यह स्पष्ट था कि हमारे संबंधों को गहरा करना और विस्तार देना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता थी। उन्होंने भारत की कीमत पर अपना प्रभाव बढ़ाने के चीन के बढ़ते आक्रामक प्रयासों और क्षेत्र में उसकी बढ़ती सैन्य उपस्थिति पर चिंता व्यक्त की।’’ मैकमास्टर ने कहा कि मोदी ने सुझाव दिया कि अमेरिका, भारत, जापान और समान विचारधारा वाले साझेदारों को चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल के विपरीत एक समावेशी प्रयास के रूप में स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत की अवधारणा पर जोर देना चाहिए। ताकि सभी को लाभ हो सके। उन्होंने बताया कि बैठक के अंत में प्रधानमंत्री ने उन्हें गले लगाया, उनके कंधों पर हाथ रखा और उन्हें आशीर्वाद दिया।

पीएम मोदी से आशीर्वाद पाकर धन्य हुए अमेरिकी एनएसए

पीएम मोदी का आशीर्वाद पाकर मैकमास्टर धन्य हो गए। उन्होंने लिखा है कि मोदी ने उनसे कहा, ‘‘आपके चारों ओर एक आभा है और आप मानवता के लिए अच्छा काम करेंगे।’’ कुछ महीने बाद ट्रंप ने 25 जून और 26 जून 2017 को ‘व्हाइट हाउस’ (अमेरिका के राष्ट्रपति का आधिकारिक आवास एवं कार्यालय) में मोदी की मेजबानी की। मैकमास्टर ने लिखा, ‘‘कैबिनेट कक्ष में मोदी के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक और रोज गार्डन में सवाल-जवाब सत्र के बीच हम कुछ पलों के लिए ‘ओवल ऑफिस’ में एक साथ बैठे थे।

दुनिया में सिर्फ मोदी से ही ट्रंप मिल सकते थे गले

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को दुनिया के किसी नेता से गले मिलना पसंद नहीं था, सिर्फ पीएम मोदी को छोड़कर। मैकमास्टर ने लिखा है कि मैंने ट्रंप को सचेत किया कि प्रधानमंत्री मोदी गले मिलने वाले हैं और जिस तरह से यात्रा अच्छी रही है, उसे देखकर उनके बयान देने के बाद शायद वह ट्रंप से गले मिलेंगे।’’ उन्होंने लिखा, ‘‘हालांकि ट्रंप को मंच पर कभी-कभार अमेरिकी झंडे को गले लगाने के लिए जाना जाता था, लेकिन वे लोगों से अकसर गले नहीं मिलते। मगर जिस तरह से वे (ट्रंप और मोदी) गले मिल, वह अजीब नहीं लगा। सफलता.। मोदी (बान की) मून के आने से ठीक दो दिन पहले 27 जून को चले गए।’’ उन्होंने कहा कि मोदी पहले राष्ट्राध्यक्ष हैं, जिनकी तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप और प्रथम महिला ने रात्रिभोज के लिए ‘ब्लू रूम’ में मेजबानी की थी। (भाषा) 

 

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