गुजरात: औद्योगिक नगरी सूरत में लाखों प्रवासी मजदूर अपनी आजीविका के लिए काम करते हैं और अपने घर से दूर इस शहर में जिंदगी व्यतीत करते हैं। ये मजदूर दिवाली और छठ पूजा के त्योहार पर अपने गृह राज्य लौटते ही हैं। मजदूर हों या छात्र या कोई और जो भी घर से दूर रहते हैं वो दिवाली और छठ के लिए घर लौटते हैं । इस कारण रेलवे स्टेशन पर हर साल की तरह इस साल भी भारी भीड़ देखने को मिल रही है। पिछले वर्ष हुई एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद, इस बार प्रशासन ने यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए पुख्ता इंतजाम किए है।
उधना स्टेशन पर उमड़ी भीड़, देखें वीडियो
अपने गृहराज्य पहुंचने के लिए सूरत के उधना स्टेशन पर आजकल रातभर चहल पहल नजर आती है। रात से ही यात्रियों की लंबी-लंबी कतारें लगनी शुरू हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार ओर अन्य राज्यों से रोजी रोटी के लिए आए लोग अपने गृहराज्य पहुंचने के लिए बेताब हैं। सभी को दिवाली और छठ पूजा का त्योहार अपने गांव और परिवार के साथ मनाना है। उत्तर भारत की ओर जाने वाली सभी ट्रेनें चार महीने पहले ही फूल हो चुकी है। पश्चिम रेलवे ने यात्रियों को भीड़ को देखते हुए 100 से अधिक स्पेशल ट्रेनें चलाई है लेकिन वो सभी ट्रेनें हाउसफुल हो चुकी है।
प्रशासन ने की है पुख्ता व्यवस्था
आज सुबह उधना रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ को देखते हुए रेलवे प्रशासन एलर्ट पर है। सभी यात्रियों को ट्रेन में बैठाने की व्यवस्था की गई है और पुलिस बंदोबस्त भी लगाया गया है। इतना प्रबंध करने के बाद भी यात्रियों की परेशानी कम नहीं हो रही है। यात्रियों का कहना है कि बिना टिकट रेलवे प्लेटफॉर्म पर दाखिल नहीं होने देने की वजह से हमें टिकट के लिए 4 से 5 घंटे लाइन में खड़े रहना पड़ता है। टिकट मिलने के बाद भी हमें प्लेटफॉर्म तक जाने के लिए ओर भी दो से तीन घंटे का समय लगता है। प्रशासन ने ट्रेनों की संख्या में वृद्धि जरूर की है, पर भीड़ के आगे वह न काफी है। विशेष गाड़ियों में तो जगह मिलना बहुत ही मुश्किल है। यात्री और भी अधिक विशेष गाड़ी चलाने की मांग कर रहे है और उनकी यात्रा को सुगम बनाई जाय।
सूरत में कुल 75 लाख की कुल आबादी में प्रवासी मजदूरों की संख्या 55 लाख से भी अधिक है। सबको एक साथ दिवाली और छठ पूजा का त्योहार अपने परिवार के साथ अपने गांव में ही मनाना है। प्रशासन हर साल गाड़ियों की संख्या बढ़ाता है फिर भी इतने प्रवासी मजदूरों को भेजना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
(गुजरात से शैलेष चंपानेरिया की रिपोर्ट)