एक देश एक चुनाव: कैसे होगा लागू, कितना लगेगा वक्त, क्या होगा फायदा? जानें सबकुछ


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वन नेशन वन इलेक्शन, जानें सबकुछ

एक देश, एक चुनाव के विधेयक को लेकर एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई है। संसद के शीतकालीन सत्र में गुरुवार के दिन मोदी सरकार ने कैबिनेट बैठक में इस विधेयक को मंजूरी दे दी है। सूत्रों का कहना है कि अब सरकार जल्द ही इस बिल को सदन के पटल पर रख सकते हैं। इस विधेयक पर सहमति बन जाने से देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो सकेंगे। इससे चुनावी खर्च और प्रशासनिक बोझ कम हो जाएगा जो देशहित में होगा। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिसमें कई तरह की चुनौतियां सामने आती हैं। अगर चुनाव एक साथ होंगे तो  चुनावी खर्च एक ही बार होंगे और काफी पैसे बचेंगे। समय भी बचेगा, लोगों को फायदा होगा, देश का फायदा होगा।

 यह राह आसान नहीं है

इसकी सबसे बड़ी चुनौती ये है कि अगर संसद में यह विधेयक कानून भी बन जाए तो इस लागू होने में कम से कम 10 साल लग जाएंगे। सरकार अब इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की तैयारी में है जो पेश हो सकता है। 

सरकार को विधेयक संसद में पारित करवाने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जुटाना होगा और इसके अलावा, कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से इसे मंजूरी दिलानी होगी। इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून बन सकेगा और लागू हो सकेगा। ऐसे में इसमें काफी वक्त लगेगा जो सबसे बड़ी चुनौती है।

एक बार कानून बनने के बाद भी, इसे लागू करने के लिए कई चरणों में काम करना होगा। जैसे चुनाव आयोग को अधिक संख्या में ईवीएम और वीवीपैट की आवश्यकता होगी, जिनके निर्माण और परीक्षण में समय लगेगा।

कैसे लागू होगा, कितना समय लगेगा

इस विधेयक पेश होने के बाद इसे लागू करने के लिए सबसे पहले संवैधानिक संशोधन जरूरी है। इसके तहत पांच प्रमुख अनुच्छेदों में बदलाव करना होगा—अनुच्छेद 83, 85, 172, 174, और 356। संविधान के ये अनुच्छेद लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल, भंग करने के अधिकार, और राष्ट्रपति शासन से संबंधित हैं।

इस विधेयक के बिना किसी बदलाव के पारित होने पर भी इसे पूरी तरह लागू होने में 10 साल का समय लग सकता है। इसकी वजह ये है कि मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा, और उसके बाद निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक के दौरान इसे अधिसूचित किया जाएगा। तो ऐसे में 10 साल का वक्त लगेगा ही। चुनाव आयोग के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के लिए आवश्यक ईवीएम और अन्य संसाधनों की व्यवस्था में कम से कम तीन साल लगेंगे। यदि जल्दबाजी में कदम उठाए गए, तो तकनीकी और प्रशासनिक खामियां आ सकती हैं।

जल्दबाजी नहीं की जा सकती
चुनाव आयोग का कहना है कि भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में यहां एक साथ चुनाव कराने के लिए गहन योजना और तैयारी की जरूरत होगी। चुनाव आयोग ने इसके लिए सुझाव दिया कि जल्दीबाजी में वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करना संभव नहीं होगा। ईवीएम के निर्माण कंपनियों को इस प्रक्रिया के लिए बड़ी मात्रा में उत्पादन करने की क्षमता विकसित करनी होगी, जो फिलहाल सीमित है।

बीजेपी ने इसे लोकतंत्र को मजबूती देने वाला कदम बताया है तो वहीं कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा लोकतंत्र में चुनाव की आवश्यकता समय के साथ बदलती रहती है, इसे एक साथ समेटना व्यावहारिक नहीं है। 

 





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