मुखवा मंदिर कहां है, क्यों प्रसिद्ध है, क्या है महत्व, किसकी पूजा होती है? पीएम मोदी भी जा चुके हैं


Mukhwa mandir
Image Source : SOCIAL
मुखवा मंदिर

मुखवा गांव को ऋषि मतंग की भूमि भी कहा जाता है। ऋषि मतंग ने तपस्या कर मां गंगा से यह वर मांगा था कि शीत ऋतु के दौरान वो इस स्थान पर निवास करेंगी। मतंग ऋषि के नाम पर ही इस गांव का नाम मुखवा पड़ा था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 मार्च को इस स्थान का दौरा किया। ऐसे में आइए जान लेते हैं कि मुखवा मंदिर कहां स्थित है, क्यों ये प्रसिद्ध है और इससे जुड़ी मान्यताएं क्या हैं। 

कहां स्थित है मुखवा मंदिर?

मुखवा एक सुंदर पहाड़ी गांव है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के हर्षिल वैली में है। ये गांव गंगा नदी के किनारे बसा है जिसके कारण इसकी सुंदरता पर चार-चांद लग गए हैं। मुखवा को मुखीमठ के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को माता गंगा का मायका भी कहा जाता है। 

क्यों प्रसिद्ध है मुखवा मंदिर?

मुखवा को गंगा मां का शीतकालीन निवास स्थान कहा जाता है। शीतकाल के दौरान माता गंगा की मूर्ति को गंगोत्री से यहां लाया जाता है, क्योंकि शीतकाल के समय गंगोत्री धाम बर्फ से पूरी तरह से ढक जाता है। सर्दियों की शुरुआत से पहले भक्तों के जुलूस के साथ गंगोत्री से माता गंगा मुखबा गांव आती हैं। इस स्थान को माता गंगा का मायका कहते हैं इसलिए जब भी माता गंगा की मूर्ति सर्दियों की शुरुआत में यहां लाई जाती है तो स्थानीय लोगों में गजब का उत्साह होता है। 

मुखवा मंदिर का महत्व

शीतकाल के दौरान माता गंगा की पूजा यहीं पर होती है। गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद भी भक्त गंगा माता की पूजा कर सकें इसलिए मुखवा गांव में माता की प्रतिमा को लाया जाता है। यहां माता की पूजा करने से पारिवारिक जीवन में व्यक्ति को सुख-शांति की प्राप्ति होती है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। प्रधानमंत्री ने शीतकाल के दौरान पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही मुखवा गांव की यात्रा की है। 

कैसे पहुंचें मुखवा मंदिर?

रोड से मुखवा मंदिर पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले दिल्ली से ऋषिकेष पहुंचना होगा। इसके बाद ऋषिकेष से उत्तरकाशी और उसके बाद हर्षिल। दिल्ली से मुखवा मंदिर की दूरी लगभग 480 किलोमीटर है और 12 घंटे से कम समय में आप इस स्थान तक पहुंच सकते हैं। हवाई यात्रा करने के इच्छुक लोग देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से ऋषिकेष और उसके बाद उत्तराकाशी की हर्षिल वैली पहुंच सकते हैं। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

Holi 2025: अपनी राशि के अनुसार करें होली के रंगों का इस्तेमाल, सभी ग्रह दोष हो जाएंगे दूर

राहु होली के ठीक बाद बदलेंगे चाल, मई के मध्य तक सावधान रहें ये 3 राशियां





Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *