
प्रतीकात्मक तस्वीर
वर्ष 1999 में वह होली का ही दिन था, जब हज तीर्थयात्रियों को यूपी के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील शहर मऊ से दिल्ली के लिए ट्रेन में सवार होना था और प्रशासन को ट्रेन को अस्थायी रूप से रोकने के लिए ‘लोको पायलट’ पर निषेधाज्ञा लगानी पड़ी। प्रशासन ने यह कदम सफेद वस्त्र पहने (मुस्लिम) तीर्थयात्रियों का आमना-सामना रंगों का त्योहार होली मना रहे हुड़दंगियों से नहीं होने देने के लिए उठाया था। ठीक 26 साल बाद, फिर से कुछ इसी तरह की स्थिति है। होली शुक्रवार को है। रमज़ान का महीना चल रहा है और विभिन्न राज्यों में, खासकर उत्तर प्रदेश के संभल में, प्रशासन यह सुनिश्चित करने के लिए कमर कस रहा है कि जुमे की नमाज और होली शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो।
भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ…
वर्ष 1999 के फाल्गुन मास में मऊ में अधिकारियों को पेश आईं चुनौतियों का उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) ओ पी सिंह की पुस्तक ‘‘थ्रू माई आइज़: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक’’ में विस्तार से उल्लेख किया गया है। उन्होंने पुस्तक में लिखा है कि रेलवे ने होली का त्योहार संपन्न होने तक, दोपहर में पहुंचने वाली ट्रेन को कुछ घंटे विलंबित करने के अधिकारियों के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था जिसके बाद मऊ में अधिकारियों ने लोको पायलट (ट्रेन चालक) पर निषेधाज्ञा लगा दी। राज्य पुलिस के पूर्व प्रमुख ने ‘सीआरपीसी की धारा 144 के तहत ट्रेन’ शीर्षक वाले अध्याय में कहा है, ‘‘भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत आदेश, जो कि आम तौर पर गैरकानूनी रूप से एकत्र होने पर रोक लगाने और शांति व्यवस्था में खलल को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, का उपयोग भीड़ को नियंत्रित करने के लिए नहीं, बल्कि चलती ट्रेन को रोकने के लिए किया गया।’’
होली के दिन ही रवाना हो रहे थे हज यात्री
उन्होंने पुस्तक में लिखा है कि उस वर्ष होली के दिन ही बड़ी संख्या में हज यात्रियों को रवाना होना था। वे मऊ से दिल्ली के लिए ट्रेन में सवार होने वाले थे। मक्का के लिए विमान में सवार होने से पहले यह उनका पहला पड़ाव था। ट्रेन दोपहर के समय पहुंचने वाली थी, ठीक उसी समय जब होली का त्योहार अपने चरम पर होता है।
रेलवे अधिकारियों से मांगी थी मदद
पुस्तक के अनुसार, सफेद कपड़े पहने मुस्लिम तीर्थयात्रियों के लिए, सड़कों पर इस उल्लासपूर्ण माहौल में फंसने से बच निकलने की गुंजाइश न होने को जिला प्रशासन ने पहले ही भांप लिया था। जिले में सांप्रदायिक झड़पों के इतिहास को ध्यान में रखते हुए अधिकारियों ने रेलवे अधिकारियों से मदद मांगी और ‘‘अनुरोध किया कि ट्रेन को कुछ घंटों के लिए विलंबित कर दिया जाए।’’ हालांकि, रेलवे ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि रेलगाड़ियों की समय-सारिणी में बदलाव नहीं किया जा सकता, चाहे स्थिति कितनी भी संवेदनशील क्यों न हो। साथ ही, रेलवे के लिए ‘‘समयबद्ध परिचालन’’ सबसे महत्वपूर्ण है।
कानून का उपयोग कर रोकी ट्रेन
पूर्व डीजीपी ने कहा कि रेलवे द्वारा अनुरोध स्वीकार नहीं किए जाने और सांप्रदायिक असौहार्द की आशंका को भांपते हुए, जिला प्रशासन ने एक साहसिक और अभूतपूर्व कदम उठाया। बिहार स्थित गया के रहने वाले 1983 बैच के आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी ने पुस्तक में लिखा है, ‘‘निषेधाज्ञा आदेश सीधे ट्रेन चालक को दिया गया, जिससे ट्रेन को पड़ोसी जिले में निर्दिष्ट रेलवे स्टेशन से आगे बढ़ने से कानूनी तौर पर रोक दिया गया। पुलिस और अन्य सरकारी अधिकारियों को ट्रेन के साथ तैनात किया गया था।” इसमें कहा गया है, ‘‘ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही, तकनीकी खराबी या समय-निर्धारण में देरी के कारण नहीं, बल्कि कानून का उपयोग कर ऐसा किया गया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि कुछ घंटे बाद बिना किसी व्यवधान के तीर्थयात्री ट्रेन में सवार हो गए। इस साल भी होली शुक्रवार को मनाई जाएगी। (भाषा इनपुट्स के साथ)
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