Explainer: आखिर पाकिस्तान से आजादी क्यों चाहते हैं बलूच, औरंगजेब से क्या है कनेक्शन?


पाकिस्तान से आजादी क्यों चाहते हैं बलूच
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पाकिस्तान से आजादी क्यों चाहते हैं बलूच

पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है बलूचिस्तान, वैसे तो यह जर्मनी के आकार का है लेकिन यहां की आबादी काफी कम है, सिर्फ डेढ़ करोड़ यानी जर्मनी से सात करोड़ कम। बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से भरा पूरा है जैसे यहां तेल, सोना, तांबा सहित कई अन्य खदान मिलते हैं। बलूचिस्तान के इन्हीं संसाधनों का पाकिस्तान इस्तेमाल करता है। इतना सबकुछ होने के बावजूद बलूचिस्तान सबसे पिछड़ा इलाका है और यहां के लोगों का जीवन स्तर सामान्य से भी नीचे का है। इसके 1.5 करोड़ निवासियों में से 70% गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।

संसाधन से भरा पूरा लेकिन गरीबी की मार झेल रहा

गरीबी और पिछड़ेपन को लेकर ही बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ नफरत बढ़ रही है और आए दिन वहां विद्रोह होते रहते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक बलूचिस्तान में 60% से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। यह प्रांत स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य मुद्दों को लेकर न केवल पाकिस्तान में बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में सबसे निचले पायदान पर है। 

कैसे शुरू हुआ बलूचों का विद्रोह

पाकिस्तान के बनने के बाद से ही बलूचिस्तान का इतिहास विद्रोह से भरा पड़ा है। बलूचिस्तान का इतिहास देखें तो इसकी कहानी 1876 से शुरू होती है, जब ब्रिटिश सरकार और कलात के बीच संधि हुई। संधि के मुताबिक अंग्रेजों ने कलात को प्रोटेक्टोरेट स्टेट का दर्जा दिया। चार अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक हुई जिसमें मीर अहमद खान के साथ जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू के साथ ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन भी शामिल हुए जिसमें कहा गया कि चार जिलों- कलात, खरान, लास बेला और मकरान को मिलाकर एक आजाद बलूचिस्तान बनाया जाए और इस तरह 11 अगस्त को बलूचिस्तान अलग देश बन गया। 

पाकिस्तान में विलय की बात

बलूचिस्तान आजाद देश तो बन गया और देश में मस्जिद से कलात का पारंपरिक झंडा फहराया गया। आजादी घोषित करने के ठीक एक महीने बाद 12 सितंबर को ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि बलूचिस्तान एक अलग देश बनने की हालत में नहीं है। वह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां नहीं उठा सकता। ऐसे में उसकी सुरक्षा पाकिस्तान के हवाले थी।  जिन्ना ने अहमद खान से बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय करने की बात कही।

पाकिस्तान ने ढाए जुल्म

कलात के शासक ने बात नहीं मानी और कहा कि बलूचिस्तान आजाद मुल्क रहेगा या पाकिस्तान के साथ जाएगा ये वहां की जनता तय करेगी। पाकिस्तान बलूचिस्तान के विलय का दबाव बढ़ाने लगा था। इस तरह से बगावत बढ़ने लगी। बलूचों का पाकिस्तान सरकार के खिलाफ संघर्ष तेज होने लगा। बलूच इतने भड़के थे कि उन्होंने तोतत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की हत्या की भी कोशिश की। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 15 साल में पाकिस्तानी सेना ने पांच हजार से ज्यादा बलूचों को गायब कर दिया। कहा जाता है कि या तो इन्हें मार दिया गया है या फिर इन्हें ऐसी जगह कैद कर रखा है, जिसकी कोई खबर नहीं है।

औरंगजेब से कनेक्शन

भारत के पहले मुगल शासक बाबर के बेटे हुमायूं को बिहार के शेरशाह सूरी ने युद्ध में हरा दिया, जिसके बाद हुमायूं भारत से भाग गया और उसने ईरान में शरण ली। फिर जब 1545 में शेरशाह सूरी की मौत हो गई तो हुमायूं ने भारत वापस लौट आया। हुमायूं को भारत लौटने में तब बलूचिस्तान के कबीलाई सरदारों ने मदद की थी। बलूचों की मदद से ही साल 1555 में हुमायूं ने दिल्ली पर फिर से कब्जा किया था।फिर साल 1659 में मुगल बादशाह औरंगजेब दिल्ली का शासक बना। उसकी सत्ता पश्चिम में ईरान के बॉर्डर तक थी। तब बलूच सरदारों ने मुगल हुकूमत के खिलाफ विद्रोह छेड़ा था और बलूच लीडर मीर अहमद ने 1666 में बलूचिस्तान के दो इलाकों- कलात और क्वेटा को औरंगजेब से छीन लिया था।

 





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