ट्रंप के टैरिफ से इन सेक्टर्स में हैं सुनहरे मौके, मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट हब बन सकता है भारत


डोनाल्ड ट्रंप

Photo:FILE डोनाल्ड ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप के भारी-भरकम रेसिप्रोकल टैरिफ ने वैश्विक व्यापार को भारी झटका दिया है। लेकिन आपने वह बात तो सुनी ही होगी कि आवश्यक्ता ही आविष्कार की जननी होती है और प्रतिकूल परिस्थितियों में ही नए सोल्यूशंस और इनोवेशन पैदा होते हैं। भारत इस रेसिप्रोकल टैरिफ के बीच अपने लिये नए मौके ढूंढ सकता है। ट्रंप द्वारा बुधवार रात की गई घोषणा के अनुसार, 9 अप्रैल से भारतीय प्रोडक्ट्स पर 27% तक टैरिफ लगेगा। हालांकि, अमेरिका ने चीन पर 54%, वियतनाम पर 46%, थाईलैंड पर 36% और बांग्लादेश पर 37% का हायर टैरिफ लगाया है। इससे भारत के लिए टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी सेक्टर में नए मौके पैदा हुए हैं।

इन सेक्टर्स में आगे निकल सकते हैं हम

1. टेक्सटाइल

चीनी और बांग्लादेशी एक्सपोर्ट पर हाई टैरिफ से भारतीय टेक्सटाइल मैन्यूफैक्चरर्स को अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का मौका मिलेगा।

2. सेमीकंडक्टर 

ताइवान सेमीकंडक्टर सेक्टर में अग्रणी देश है। ताइवान पर भारी टैरिफ के चलते भारत के पास मौका है कि वह पैकेजिंग, टेस्टिंग और निम्न स्तरीय चिप मैन्यूफैक्चरिंग में एंट्री ले सकता है। ताइवान से सप्लाई चेन थोड़ी भी शिफ्ट होती है, तो भारत को फायदा होगा।

3. मशीनरी, ऑटोमोबाइल और खिलौने

मशीनरी, ऑटोमोबाइल और खिलौने जैसे सेक्टर्स में चीन और थाईलैंड लीड कर रहे हैं। हाई टैरिफ के चलते यहां से भी मार्केट शिफ्ट होने को तैयार है।

टैरिफ

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टैरिफ

हमें क्या करना होगा?

GTRI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत निवेश आकर्षित करके, उत्पादन बढ़ाकर और अमेरिका को निर्यात बढ़ाकर इसका लाभ उठा सकता है। सेमीकंडक्टर सेक्टर से जुड़े मौके भुनाने के लिए हमें इंफ्रास्ट्रक्चर और पॉलिसी सपोर्ट पर ध्यान देना होगा। इन अवसरों का पूरी तरह फायदा उठाने के लिए भारत को ईज ऑफ डूइंग बिजनसेज को बढ़ाना होगा। लॉजिस्टिक्स और इंफ्रास्ट्रक्चर में इन्वेस्ट करना होगा। साथ ही नीतिगत स्थिरता बनाए रखनी होगी। अगर ये शर्तें पूरी होती है, तो आने वाले वर्षों में भारत एक प्रमुख मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट हब बनने के लिए अच्छी स्थिति में है।  

क्या मौकों को भुना पाएगा भारत?

हाई टैरिफ ने ग्लोबल वैल्यू चेन्स पर निर्भर कंपनियों के लिए लागत बढ़ा दी है, जिससे ग्लोबल मार्केट्स में कंपीट करने की भारत की क्षमता बाधित हुई है। बढ़ते निर्यात के बावजूद भारत का व्यापार घाटा काफी अधिक है। वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 1.5 फीसदी है। अब डर यह है कि नए टैरिफ के साथ भारतीय निर्यात कम कॉम्पिटिटिव हो जाएगा। लेकिन ओवरऑल देखें, तो अमेरिका की संरक्षणवादी टैरिफ व्यवस्था ग्लोबल सप्लाई चेन के पुनर्गठन से भारत को लाभ प्राप्त करने के लिए बूस्टर का काम कर सकती है।

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