क्या 1964 जैसा विनाशकारी तूफान झेल पाएगा पंबन ब्रिज? 61 साल पहले पुराने पुल से बह गई थी पूरी ट्रेन, अब यहां कितनी सुरक्षा


Panban bridge
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पंबन ब्रजि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (6 अप्रैल) को तमिलनाडु के रामेश्वरम में नए पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया। यह ब्रिज अपनी तकनीक और लिफ्ट स्पैनर के चलते लंबे समय से चर्चा में रहा है। पंबन द्वीप को तमिलनाडु की मुख्य भूमि से जोड़ने वाला यह पुल 1964 में एक तूफान में तबाह हो गया था। साल 2019 में पीएम मोदी पुराने पुल की जगह नए और आधुनिक पुल की नींव रखी और छह साल बाद इसका उद्घाटन किया।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया की नया पुल आसानी से 1964 जैसे शक्तिशाली तूफान या उससे भी ज्यादा खतरनाक तूफान को झेल सकता है। रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) के निदेशक (संचालन) एमपी सिंह ने कहा कि पिछला पुल 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के तूफान में तबाह हो गया था, जबकि इस बार का पुल 230 किमी प्रति घंटे तक की हवा झेल सकता है।

रेल अधिकारी ने क्या बताया?

रेल अधिकारी ने कहा “इस पुल को 230 किमी प्रति घंटे की हवा की गति के साथ-साथ काफी भूकंप को झेलने के लिए डिजाइन किया गया है। 1964 के चक्रवात की गति लगभग 160 किमी प्रति घंटा थी और इससे पुराने पुल को काफी नुकसान पहुंचा था। हालांकि, शेरजर स्पैन, जो जहाजों की आवाजाही के लिए खोला जाता था, चक्रवात से बच गया और उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा। हमने यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त उपाय किए कि उच्च तीव्रता वाले चक्रवात पुल को कोई नुकसान न पहुंचा सकें।”

रेल विकास निगम लिमिटेड ने भारत में पहली बार इस तरह का पुल बनाया है, जिसमें सामान्य तौर पर रेलगाड़ी गुजरती है, लेकिन जहाज आने पर पुल पूरी तरह से खुल जाता है और जहाज भी आसानी से गुजर सकते हैं। रेल अधिकारी ने बताया कि इस वजह से उन्हें डिजाइन बनाने में काफी परेशानी हुई, क्योंकि 61 साल पहले तूफान में पुल तबाह हो चुका था और इस बार मजबूती का ध्यान रखना बेहद जरूरी था।

सिर्फ जहाज के गुजरने पर ही ऊपर होगा स्पैनर

रेल अधिकारी ने बताया कि कुछ सुरक्षा प्रोटोकॉल भी हैं। उदाहरण के लिए, लिफ्ट स्पैनर हर समय बैठी हुई स्थिति में रहेगा और इसे केवल जहाजों की आवाजाही के समय ही उठाया जाएगा। सिंह ने कहा कि कंक्रीट के खंभों पर रखे गए गर्डर समुद्र के जल स्तर से 4.8 मीटर ऊंचे हैं, इसलिए उच्च ज्वार की स्थिति में भी, गर्डर तक पानी के स्तर के पहुंचने की संभावना बेहद कम है। उन्होंने कहा, “पुराने पुल का गर्डर समुद्र के जल स्तर से 2.1 मीटर ऊंचा था, इसलिए उच्च ज्वार के दौरान पानी न केवल गर्डरों पर बल्कि कभी-कभी ट्रैक पर भी उछलता था।”

1964 में क्या हुआ था?

22 दिसंबर 1964 को रामेश्वरम में आए भीषण चक्रवाती तूफान ने इमारतों के साथ-साथ रेल नेटवर्क को भी तबाह कर दिया था। रेल मंत्रालय के अनुसार छह कोच वाली पंबन-धनुषकोडी पैसेंजर ट्रेन 22 दिसंबर को रात 11.55 बजे पंबन से रवाना हुई थी, जिसमें छात्रों के एक समूह और रेलवे के पांच कर्मचारियों सहित 110 यात्री सवार थे। पम्बन के ब्रिज इंस्पेक्टर अरुणाचलम कुमारसामी ट्रेन चला रहे थे। धनुषकोडी आउटर पर सिग्नल गायब हो गया और ट्रेन कुछ देर के लिए रुक गई। ड्राइवर ने जोखिम उठाने का फैसला किया और लंबी सीटी बजाई। तभी अशांत समुद्र से 20 फीट ऊंची एक विशाल लहर उठी और उसने ट्रेन को तोड़ दिया। शुरुआती रिपोर्टों में हताहतों की संख्या 115 बताई गई थी (पम्बन में जारी टिकटों की संख्या के आधार पर), लेकिन यह संदेह था कि मरने वालों की संख्या 200 के आसपास रही होगी, क्योंकि उस रात कई यात्रियों ने बिना टिकट यात्रा की थी।”

यह त्रासदी 25 दिसंबर को सामने आई, जब दक्षिणी रेलवे ने मंडपम के समुद्री अधीक्षक से प्राप्त जानकारी के आधार पर बुलेटिन जारी किया। मंत्रालय ने कहा कि ऐसी खबरें हैं कि ट्रेन के लकड़ी के डिब्बों के बड़े-बड़े टुकड़े श्रीलंका के तट पर बहकर आ गए हैं। ट्रेन दुर्घटना के अलावा, द्वीप पर मरने वालों की संख्या 500 से अधिक थी। मंत्रालय ने कहा था, “सभी संचार बाधित हो गए। पंबन पुल बह गया, केवल खंभे, कुछ पीएससी गर्डर्स और लिफ्टिंग स्पैन ही बचे थे।”

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