‘सात समंदर’ पार है एक अलग दुनिया’, आबादी है मात्र 234, नाम है ट्रिस्टन दा कुन्हा


ट्रिस्टन दा कुन्हा
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ट्रिस्टन दा कुन्हा

पुर्तगाली खोजकर्ता ट्रिस्टाओ दा कुन्हा ने 1506 में एक द्वीपसमूह की खोज की थी, जो सात समंदर पार एक अलग तरह की ही दुनिया है जो काफी खूबसूरत है। दूरस्थ स्थान और प्रतिकूल मौसम के कारण ये द्वीप कई शताब्दियों तक निर्जन रहा और आज भी इस द्वीप की आबादी मात्र 234 है और इस द्वीप का नाम है ट्रिस्टन दा कुन्हा। यह दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन से करीब 2,787 किमी दूर है और दक्षिण अटलांटिक महासागर में ये द्वीपसमूह सबसे अलग-थलग बसा हुआ है। ज्वालामुखीय द्वीपों का यह समूह चारों ओर से समुद्र से घिरा है, यहां पहुंचकर आपको लगेगा जैसे स्वर्ग ेमें आ गए हों।

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इस द्वीप पर साल 2018 तक ब्रिटिश ओवरसीज टेरिटरीज नागरिकता के साथ 250 स्थायी निवासी थे और मिली जानकारी के मुताबिक अब यहां सिर्फ 234 लोग ही रहते हैं। ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र होने के नाते ट्रिस्टन दा कुन्हा का अपना संविधान भी है, हालांकि, मुख्य द्वीप पर कोई हवाई पट्टी नहीं है और यहां आप सिर्फ नाव से ही आ जा सकते हैं। यहां पहुंचने के लिए दक्षिण अफ्रीका से छह दिन की यात्रा करनी पड़ती है। ट्रिस्टन दा कुन्हा खुद एक ज्वालामुखीय द्वीप है, जिसमें एक प्रमुख ज्वालामुखीय शिखर है। इसे क्वीन मैरी पीक कहा जाता है। 

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पुर्तगाली खोजकर्ता ट्रिस्टाओ दा कुन्हा ने इस द्वीपसमूह की खोज 1506 में की थी और ये द्वीप कई शताब्दियों तक निर्जन रहा। ब्रिटिश सैनिकों का एक समूह कुछ नागरिकों के साथ 1816 में यहां आए, जिसमें  कुछ बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं।

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कहा जाता है कि ब्रिटिश सैनिक सेंट हेलेना से नेपोलियन बोनापार्ट के बचाव को रोकने के लिए ट्रिस्टन दा कुन्हा पर रहते थे। निर्जन द्वीप होने के कारण द्वीप पर अद्वितीय वनस्पतियां और जीव पाए जाते हैं और यह स्थान वन्यजीव प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए स्वर्ग की तरह माना जाता है। यहां मेगाहर्ब्स जैसी अनोखे पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं। 

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इस द्वीप की एक खासियत ये बी है कि यहां आसानी से अटलांटिक पीले-नाक वाले अल्बाट्रॉस और उत्तरी रॉकहॉपर पेंगुइन को देख सकता है। यह ऐसी जगह है, जहां समय ठहर जाता है और शांति महसूस होती है।

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