दिलीप कुमार पर भी भारी पड़ता था ये एक्टर, गांधी जी के साथ लड़ी स्वतंत्रता की लड़ाई, आज भी मिसाल है इनकी कहानी


Balraj Sahini
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बलराज साहनी

बॉलीवुड के धांसू एक्टर रहे बलराज साहनी की आज पुण्यतिथि है। कभी अपनी बेहतरीन एक्टिंग से दिलीप कुमार जैसे सुपरस्टार पर भी भारी पड़ने वाले एक्टर रहे बलराज साहनी उन चंद कलाकारों में से रहे हैं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए बलराज साहनी जेल में भी बंद रहे थे। अपने करियर में कई बेहतरीन किरदार निभाकर अमर होने वाले बलराज साहनी आज ही के दिन इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए थे। 

कान फेस्टिवल में हो चुके हैं सम्मानित

बलराज साहनी का जन्म रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में 1 मई 1913 को हुआ था। अपने शक्तिशाली और प्रभावशाली अभिनय के लिए जाने जाने वाले बलराज साहनी भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग में एक प्रमुख व्यक्ति के तौर पर उभरकर सामने आए। बलराज साहनी ने शुरू में सिविल सेवा में अपना करियर बनाया लेकिन बाद में उन्हें अभिनय में अपनी असली पहचान मिली। साहनी वामपंथी सांस्कृतिक संगठन इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) से जुड़ गए, जहां उन्होंने अपने कौशल और अभिनय के प्रति जुनून को निखारा। IPTA के साथ उनके जुड़ाव ने थिएटर में उनके सफर की शुरुआत की। बलराज साहनी ने 1946 में फिल्म ‘इंसाफ’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की लेकिन उन्हें बिमल रॉय द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ (1953) में उनकी भूमिका के लिए व्यापक पहचान और प्रशंसा मिली। अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे एक गरीब किसान शंभू महतो की भूमिका ने उनके अभिनय कौशल को प्रदर्शित किया और उन्हें प्रशंसा मिली। इस फिल्म ने 1954 में कान फिल्म फेस्टिवल में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।

सिनेमा के स्वर्णिम दौर का रहे हिस्सा

1950 और 1960 के दशक को सिनेमा का स्वर्णिम दौर कहा जाता है। इसी दौरान बलराज साहनी ने ‘काबुलीवाला’ (1961), ‘वक्त’ (1965) और ‘नील कमल’ (1968) जैसी फिल्मों में यादगार अभिनय किया। उन्होंने अक्सर ऐसी भूमिकाएं निभाईं जो उस समय की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं को दर्शाती थीं और अपने किरदारों में गहराई और प्रामाणिकता लाने की उनकी क्षमता ने उन्हें भारतीय सिनेमा के बेहतरीन अभिनेताओं में से एक बना दिया। बलराज साहनी की फ़िल्मोग्राफी में कई तरह की भूमिकाएं शामिल हैं, जिनमें गंभीर और नाटकीय किरदारों से लेकर हल्के-फुल्के और हास्यपूर्ण किरदार शामिल हैं। उन्होंने बिमल रॉय, गुरु दत्त और यश चोपड़ा जैसे प्रसिद्ध फिल्म निर्माताओं के साथ मिलकर भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। 

पद्मश्री के अवॉर्ड से किया सम्मानित

अपने अभिनय करियर के अलावा बलराज साहनी एक प्रसिद्ध लेखक भी थे और उन्होंने कई किताबें लिखीं जिनमें उनकी आत्मकथा ‘मेरी फिल्मी आत्मकथा’ भी शामिल है। भारतीय सिनेमा में बलराज साहनी के योगदान को न केवल उद्योग के भीतर बल्कि सरकार द्वारा भी मान्यता दी गई। उन्हें 1969 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 

स्वतंत्रता संग्राम में लिया हिस्सा

बलराज साहनी उन चंद कलाकारों में से रहे हैं जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए भी काम किया था। बलराज साहनी ने महात्मा गांधी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इतना ही नहीं महात्मा गांधी के कहने पर बलराज साहनी ने लंदन जाकर बीबीसी में नौकरी भी की थी और वापस भारत लौटे। अपने करियर के दौरान बलराज साहनी को जेल भी जाना पड़ा था। आज भी बलराज साहनी को उनकी समृद्ध फिल्मी विरासत के लिए जाना जाता है। 

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