
शाहरुख खान संग काम कर चुका है तस्वीर में दिखा रहा ये एक्टर
फिल्म इडंस्ट्री में कई ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने एक्टिंग की दुनिया और दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाने से पहले काफी संघर्ष किया है। उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई और आज वह सिनेमा जगत में राज कर रहे हैं। उन्हीं में से एक नाना पाटेकर हैं, जिन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया और कई उतार-चढ़ाव के बाद इस बुलंदी पर पहुंचे। अपनी मेहनत के दम पर नाना पाटेकर बॉलीवुड में ही नहीं बल्कि साउथ में भी अपना दमखम दिखा चुके हैं। उन्होंने तीन नेशनल अवार्ड और पद्मश्री भी दिए गए हैं। कभी महीने में 35 रुपये कमाने वाला ये एक्टर आज करोड़ों का मालिक है।
गरीबी की मार ने बना दिया एक्टर
एक वक्त था जब नाना पाटेकर महज 35 रुपये के लिए काम किया करते थे। वह चूना सफेदी करके अपना गुजारा किया करते थे, लेकिन उनकी किस्मत तब चमकी जब उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा। दिग्गज अभिनेता नाना पाटेकर ने हाल ही में अपने संघर्ष से भरे बचपन के बारे में खुलकर बात की। सिद्धार्थ कन्नन को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उन्होंने 13 साल की उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। उस छोटी सी उम्र में, उन्होंने आर्थिक रूप से अपने परिवार की मदद करने की कोशिश की। साथ ही बताया कि कैसे उन्होंने स्कूल की पढ़ाई और काम के बीच संतुलन बनाए रखा था। नाना पाटेकर ने अपने शुरुआती दिनों के बारे में बात करते हुए एक इमोशनल किस्सा शेयर करते हुए कहा, ‘मैंने 13 साल की उम्र में काम करना शुरू कर दिया था। इसलिए एक तरह से, मैं बहुत जल्दी बड़ा हो गया।’
13 की उम्र में संघर्ष को मात देकर बना सिकंदर
उन्होंने बताया कि वह महीने में सिर्फ 35 रुपये कमाते थे और दिन में सिर्फ एक बार खाना खाकर गुजारा करते थे। सैकड़ों कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने आगे कहा, ‘मैं दिन में काम करता था और शाम को स्कूल जाता था। उस समय मैं 9वीं कक्षा में था।’ नाना पाटेकर ने कहा कि उन कठिन समय ने वास्तव में उनके जीवन को देखने का नजरिया बदल दिया था। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि आपकी परिस्थिति आपकी उम्र तय करती है। थोड़े समय बाद, मैंने अपनी परिस्थितियों को अपनी उम्र तय नहीं करने दी। अब, मैं खुद तय करता हूं, 18, 19… मैं उतना ही जवान हूं जितना मैं होना चाहता हूं।’
बॉलीवुड और साउथ में एक्टर का बजा डंका
नाना पाटेकर ने ‘गमन’ (1978) से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की और ‘सलाम बॉम्बे’ (1988) से पहचान बनाई। उन्होंने ‘परिंदा’ (1989) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार जीता और ‘प्रहार’ (1991) के साथ निर्देशन में कदम रखा। 1990 के दशक में उन्हें ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ (1992), ‘अंगार’ (1992), ‘तिरंगा’ (1993) और ‘क्रांतिवीर’ (1994) जैसी फिल्मों से सफलता मिली, जिसके लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले। वह ‘अग्नि साक्षी’ और ‘खामोशी: द म्यूजिकल’ (1996) के लिए भी खूब चर्चा में रहे। उन्हें साउथ मेगास्टार रजनीकांत की ‘काला’ (2018) और ‘द्विभाषी बोम्मालट्टम’ (2008) में देखा जा चुका है।