
नीरज घेवान की होमबाउंड से ईशान खट्टर और विशाल जेठवा।
सूरज की पहली किरण के साथ ही फ्रेंच रिवेरा में रेड कार्पेट बिछा दिया गया है। 78वें कान्स फिल्म फेस्टिवल ने सिनेमा के अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ने का वादा करते हुए एक भव्य शुरुआत की। इस साल का फेस्टिवल प्रतियोगी फिल्मों, क्लासिक पुनर्स्थापनों और नई प्रतिभाओं की खास क्यूरेटेड सूची के साथ इतिहास रचने जा रहा है। साल 2025 के इस संस्करण में कुछ भारतीय प्रस्तुतियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खासा ध्यान खींचा है। तीन भारतीय फिल्में कान्स के मंत पर देश का नाम रोशन करेंगी। इनकी खास स्क्रीनिंग रखी गई है। यहां देखें इन फिल्मों की पूरी लिस्ट
अरन्येर दिन रात्रि (Days and Nights in the Forest) – कान्स क्लासिक्स
सत्यजीत रे की 1970 की क्लासिक फिल्म अरन्येर दिन रात्रि को कान्स क्लासिक्स सेक्शन में शामिल किया गया है। इसे मार्टिन स्कॉर्सेज़ के फिल्म फाउंडेशन, फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन (भारत) और क्राइटेरियन कलेक्शन के सहयोग से पुनर्स्थापित किया गया है। यह फिल्म चार शहरी पुरुषों की कहानी है जो जंगल की ओर रुख करते हैं, और वहां उन्हें आत्म-खोज और ग्रामीण जीवन के साक्षात्कार का मौका मिलता है। रे की मानवीय दृष्टि और गहराई से फिल्माई गई यह रचना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। इसका चयन भारतीय सिनेमा की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को और मजबूत करता है।
चरक (The Fear of Faith)
सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित चरक एक शक्तिशाली और असहज कर देने वाली कहानी है, जो बंगाल की प्राचीन चरक पूजा पर आधारित है। फिल्म एक युवा व्यक्ति के माध्यम से दिखाती है कि कैसे धार्मिक भक्ति और कट्टरता उसके शरीर और आत्मा के बीच संघर्ष का मैदान बन जाती है। गहरे सामाजिक-राजनीतिक सन्दर्भों और साहसिक दृश्य शैली के साथ यह फिल्म आलोचना और चर्चा को जन्म देने के लिए तैयार है — और इसे इस वर्ष के संभावित ब्रेकआउट के रूप में देखा जा रहा है।
होमबाउंड
मसान के निर्देशक नीरज घायवान अपनी नई फिल्म होमबाउंड के साथ कान्स में वापसी कर रहे हैं। यह फिल्म अन सर्टेन रिगार्ड सेक्शन में चुनी गई है और भारत के छोटे शहरों की आकांक्षाओं, संघर्षों और आत्मसम्मान की कहानी कहती है। ईशान खट्टर और विशाल जेठवा अभिनीत यह कहानी दो युवा पुरुषों के इर्द-गिर्द घूमती है जो पुलिस बल में करियर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, और ऐसे तंत्र से जूझते हैं जहां न्याय की राह सीधी नहीं होती। यथार्थवादी शैली और मानवीय स्पर्श के साथ, होमबाउंड भारतीय सिनेमा की उस नई लहर का प्रतीक है जो स्थानीय होते हुए भी वैश्विक भावनाओं से जुड़ती है।