
पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर को पीएम शहबाज ने दिया प्रोमशन।
पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष असीम मुनीर को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ‘फील्ड मार्शल’ के पद पर प्रमोशन देने का ऐलान किया है। इससे पाकिस्तान के सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। शहबाज शरीफ ने मुनीर को यह इनाम ऐसे वक्त में दिया है, जब पाकिस्तान में तख्तापलट की आशंकाएं सुर्खियों में हैं। वहीं दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थक इन दिनों अपने नेता की रिहाई की मांग को लेकर फिर से शहबाज शरीफ सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने लगे हैं। ऐसे वक्त में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर को ‘फील्ड मार्शल’ बनाए जाने की घटना को एक्सपर्ट किस नजरिये से देखते हैं, आइये आपको सबकुछ विस्तार से समझाते हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल विष्णु चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) ने बताया कि सामान्यतयः पाकिस्तान में सेनाध्यक्ष ही बनाया जाता है, जो कि जनरल रैंक का अधिकारी होता है। कई बार विशेष उपलब्धि हासिल करने वाले सेना अधिकारी को फील्ड मार्शल सेवानिवृत्त के बाद दिया जाता है या फिर कोई आर्गेनाइजेशनल रिक्वायरमेंट हो अथवा कोई थियेटर कमांड बन रहा हो तो ऐसा किया जा सकता है। मगर यहां मुनीर को ऐसे वक्त में फील्ड मार्शल पर प्रमोट किया गया है, जब उक्त में से कोई भी रिक्वायरमेंट नहीं है। प्रमोशन के साथ उनको पीएम शहबाज शरीफ ने 2 साल का संभवतः एक्टेंशन भी दिया है। जबकि मुनीर की कोई ऐसी उपलब्धि नहीं थी। वह पाकिस्तान के इन-इफेक्टिव जनरल थे। बावजूद उन्हें प्रमोशन देना पूरी तरह से राजनीतिक है।
शहबाज की क्या थी मजबूरी
लेफ्टिनेंट जनरल विष्णु चतुर्वेदी ने कहा कि पाकिस्तान में अस्थिर सरकार है। शहबाज शरीफ की पार्टी पूरी तरह अपने दम पर सत्ता में नहीं है। ऐसे में उन्हें अपनी सत्ता को बचाए रखने और सरकार चलाने के लिए सेना के साथ की जरूरत है। पाकिस्तान में पहले कई बार ऐसे कारनामे हो चुके हैं, जब सरकार के कमजोर होने पर तख्तापलट किया गया है। शहबाज शरीफ ने इसीलिए असीम मुनीर को यह प्रमोशन दिया है, ताकि सेना उनको सपोर्ट करती रहे और वह सत्ता में बने रहें। शहबाज का यह फैसला एक तरीके से सेनाध्यक्ष को खुश करने के लिए है।
फील्ड मार्शल बनने से असीम मुनीर सेना प्रमुख की सीमाओं से ऊपर एक स्थायी, सम्मानजनक और प्रभावशाली भूमिका में आ सकते हैं। उनके नीचे के जनरलों के लिए अब कुछ साल के लिए सेनाध्यक्ष बनने की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी। मुनीर का कद बढ़ने से सेना की शक्ति और राजनीति में दखल को वैधता मिलेगी।
इमरान खान का क्या होगा
लेफ्टिनेंट जनरल विष्णु चतुर्वेदी ने कहा कि पाकिस्तान में पहले से भी न्याय और कानून का राज नहीं चलता। वहां सब कुछ सेना और सरकार तय करती है। असीम मुनीर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के धुर विरोधी हैं। यह आरोप कई बार इमरान खान खुद खुले तौर पर असीम मुनीर के ऊपर लगा चुके हैं। ऐसे में मुनीर की पावर बढ़ने के साथ इमरान खान की मुश्किलें भी निश्चित रूप से बढ़ेंगी। अब मुनीर के रहते इमरान खान को जेल से बाहर आ पाना और चुनाव लड़ना बिलकुल संभव नहीं होगा। क्योंकि पाकिस्तान में कोर्ट भी दबाव में काम करती है। इसलिए इमरान के लिए फिलहाल कोई राहत की संभावना नहीं रह गई है।
यहां अब पाकिस्तानी सेना इमरान खान की लोकप्रियता और सैन्य आलोचना को देखते हुए अपने नेतृत्व को और मज़बूती से स्थापित करना चाहती है। ऐसे में फील्ड मार्शल पदवी मुनीर को राजनीतिक रूप से असंदिग्ध प्रभावशाली शख्सियत बना सकती है। सेना प्रमुख का कार्यकाल तय होता है, लेकिन फील्ड मार्शल पद आजन्म या लंबे समय तक प्रभावी हो सकता है। इससे असीम मुनीर की भूमिका संभवतः सैन्य नीति के पर्यवेक्षक या शहंशाह के रूप में सेवा समाप्ति के बाद भी बनी रह सकती है।
राजनीतिक के अलावा सैन्य और सामरिक दृष्टिकोण क्या हैं
पाकिस्तान के मौजूदा सेनाध्यक्ष को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किए जाने के राजनीतिक, सैन्य और सामरिक दृष्टिकोण से भी कई गहरे निहितार्थ हैं। यह सिर्फ एक औपचारिक या प्रतीकात्मक कदम नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के सत्ता ढांचे, सेना की भूमिका और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर बड़ा प्रभाव डालने वाला कदम हो सकता है।
फील्ड मार्शल क्या होता है?
फील्ड मार्शल सैन्य सेवा का सर्वोच्च पद होता है, जो सामान्यत: युद्धकाल में असाधारण योगदान या राष्ट्रीय सुरक्षा में अहम भूमिका निभाने वाले जनरल को दिया जाता है। पाकिस्तान के इतिहास में अब तक सिर्फ एक व्यक्ति – अयूब खान को फील्ड मार्शल की पदवी (1965 से पहले) दी गई है।
राजनीतिक स्थिरता के नाम पर सैन्य नियंत्रण
वर्तमान में पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता, कमजोर सरकार, और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। ऐसी स्थिति में मुनीर को फील्ड मार्शल बनाकर उन्हें “सुपर विजनरी” रोल दिया जा सकता है, जो सरकार और सेना के बीच समन्वय बनाए रखने का बहाना हो सकता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से इसका अर्थ सेना का शासन होगा।
पाकिस्तान के लोकतंत्र के लिए खतरा
पाकिस्तान में पहले भी देखा गया है कि जब सेना को ज़्यादा खुला प्रभाव मिला (जैसे अयूब खान, याह्या खान, परवेज मुशर्रफ), तब लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर पड़ीं। ऐसे में अगर असीम मुनीर को यह पद मिलता है, तो यह सिविलियन सरकार के ऊपर सेना की स्थायी छाया को दर्शाएगा।