
क्या FATF का हथौड़ा इस बार पाकिस्तान पर चलेगा।
नई दिल्ली: भारत ने पाकिस्तान को एक बार फिर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में शामिल करने के लिए अपनी कूटनीतिक कोशिशें तेज कर दी हैं। जून में होने वाली FATF की अहम बैठक में भारत यह मुद्दा जोर-शोर से उठाने की तैयारी में है। यह कदम जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद उठाया जा रहा है, जिसे भारत ने पाकिस्तान से आने वाली आतंकवादी गतिविधियों का हिस्सा बताया है। भारत का कहना है कि 2022 में ग्रे लिस्ट से हटने के बावजूद, पाकिस्तान ने अपनी जमीन पर चल रहे आतंकी संगठनों के खिलाफ ठोस और स्थायी कदम नहीं उठाए हैं। भारतीय अधिकारी मानते हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद को रोकने में नाकाम रहा है, जिसके चलते उसे फिर से ग्रे लिस्ट में डालना जरूरी है।
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स क्या है?
FATF एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसे 1989 में G7 देशों ने बनाया था। इसका मकसद मनी लॉन्ड्रिंग (काले धन को सफेद करना), आतंकवादी फंडिंग और हथियारों के वित्तपोषण को रोकना है। इसका मुख्यालय पेरिस में है और यह दुनिया भर के देशों के लिए नियम बनाता है ताकि वित्तीय अपराधों पर लगाम लगाई जा सके। FATF में 39 सदस्य हैं, जिनमें 37 देश और दो क्षेत्रीय संगठन (यूरोपियन कमीशन और गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) शामिल हैं। भारत 2006 में इसका ऑब्जर्वर बना और 2010 में पूर्ण सदस्य बन गया। भारत एशिया पैसिफिक ग्रुप (APG) और यूरेशियन ग्रुप (EAG) जैसे क्षेत्रीय संगठनों में भी हिस्सा लेता है।
क्या है FATF की ग्रे और ब्लैक लिस्ट का मतलब?
FATF दो तरह की निगरानी करता है:
- ग्रे लिस्ट: इसमें उन देशों को रखा जाता है जिनमें कुछ कमियां हैं, लेकिन वे इन कमियों को ठीक करने का वादा करते हैं।
- ब्लैक लिस्ट: इसमें उन देशों को शामिल किया जाता है जो नियमों का पालन नहीं करते और जोखिम भरे माने जाते हैं। ऐसे देशों को आर्थिक प्रतिबंधों और वित्तीय अलगाव का सामना करना पड़ता है।
ग्रे या ब्लैक लिस्ट में शामिल देशों को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, जैसे कि IMF और वर्ल्ड बैंक से कर्ज लेने में मुश्किल होती है।
FATF की ग्रे लिस्ट में इस समय कुल 25 देश हैं।
कैसा रहा है पाकिस्तान का FATF का सफर?
पाकिस्तान का फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी कि FATF के साथ लंबा इतिहास रहा है। 2008 में पहली बार उसे ग्रे लिस्ट में डाला गया, लेकिन 2009 में हटा लिया गया। इसके बाद 2012 से 2015 तक वह फिर से FATF की निगरानी में रहा। 2018 में पाकिस्तान को दोबारा ग्रे लिस्ट में शामिल किया गया, जहां वह अक्टूबर 2022 तक रहा। FATF ने यह मानने के बाद कि पाकिस्तान ने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग रोकने के लिए 34 कार्यों वाले दो एक्शन प्लान पूरे किए, उसे ग्रे लिस्ट से हटा दिया। हालांकि पाकिस्तान अपनी हरकतों से कभी बाज नहीं आया और आतंकियों की पनाहगाह बना रहा।
आखिर किस रणनीति पर काम कर रहा है भारत?
भारत ने पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में दोबारा शामिल करने के लिए अपनी कूटनीतिक कोशिशें तेज कर दी हैं। इसके लिए भारत ने अपने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ बातचीत शुरू की है ताकि जून की FATF बैठक में उसके पक्ष को मजबूती मिले। भारतीय अधिकारी मानते हैं कि पाकिस्तान ने आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाए, जिसके चलते उसका आतंकवाद विरोधी रिकॉर्ड संदिग्ध है। सूत्रों के अनुसार, भारत वर्ल्ड बैंक से पाकिस्तान को मिलने वाली नई फंडिंग का भी विरोध करेगा। भारत का लक्ष्य है कि पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव बढ़े और वह आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।
FATF की ब्लैक लिस्ट में 3 देशों के नाम हैं।
पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक हालत कैसी है?
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया, लेकिन इसके साथ 11 नई शर्तें जोड़ी गईं, जिनमें आर्थिक नीतियों के लिए संसदीय मंजूरी और ऊर्जा की कीमतों में सुधार शामिल हैं। यह दर्शाता है कि पाकिस्तान की वित्तीय स्थिति अभी भी कमजोर और अस्थिर है। अगर भारत की कोशिशें कामयाब रहीं और पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में दोबारा शामिल किया गया, तो उसकी आर्थिक मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। ग्रे लिस्ट में आने से विदेशी निवेश आकर्षित करना और अंतरराष्ट्रीय कर्ज लेना मुश्किल हो जाएगा, जिससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।
बेहद अहम साबित हो सकती है FATF की बैठक
फिलहाल फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट में 25 देश शामिल हैं, जबकि 3 देशों को ब्लैक लिस्ट में शामिल किया गया है। जून 2025 में होने वाली FATF की बैठक दक्षिण एशिया की सुरक्षा और कूटनीति के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकती है। भारत के लिए FATF का इस्तेमाल पाकिस्तान पर दबाव बनाने और क्षेत्र में स्थायी शांति लाने की रणनीति का हिस्सा है। यह कदम न केवल पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलें बढ़ा सकता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि वह आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।