‘एहतियातन हिरासत राज्य के हाथ में असाधारण शक्ति, इसका संयम से किया जाए प्रयोग’, जानिए ऐसा क्यों बोला सुप्रीम कोर्ट?


सांकेतिक तस्वीर
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एहतियातन हिरासत राज्य को दी गई एक असाधारण शक्ति है, जिसका प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए। कोर्ट ने इसी के साथ जिलाधिकारी द्वारा एक साहूकार को हिरासत में लेने के आदेश को खारिज कर दिया, जो चार मामलों में जमानत मिलने के बाद कथित तौर पर फिर से अवैध गतिविधियों में लिप्त था। 

जमानत की शर्तों का किया था उल्लंघन

सुप्रीम कोर्ट के जज संजय करोल और जज मनमोहन की पीठ ने हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की इस दलील पर सवाल उठाया कि यह आदेश इसलिए पारित किया गया क्योंकि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने इन मामलों में जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया था। पीठ ने कहा कि इसके बजाय प्राधिकारी को जमानत रद्द करने के लिए सक्षम न्यायालय में याचिका दायर करनी चाहिए थी। 

केरल हाई कोर्ट ने रद्द किया था फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनाए गए आदेश में कहा, ‘इसलिए, 20 जून, 2024 के हिरासत के आदेश और एर्णाकुलम स्थित केरल हाई कोर्ट द्वारा पारित चार सितंबर, 2024 के विवादित फैसले को रद्द किया जाता है। इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए अपील मंजूर की जाती है।’ 

सामान्य परिस्थितियों में नहीं किया जाना चाहिए प्रयोग-SC

पीठ ने रेखांकित किया कि एहतियातन हिरासत की शक्ति को संविधान में अनुच्छेद 22(3)(बी) के तहत मान्यता प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘एहतियातन हिरासत का प्रावधान राज्य के हाथों में एक असाधारण शक्ति है, जिसका संयम से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह प्रावधान किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को भविष्य में किसी अपराध के किए जाने की आशंका के आधार पर सीमित करता है, और इसलिए इसका उपयोग सामान्य परिस्थितियों में नहीं किया जाना चाहिए।’ 

कोर्ट ने दलील को किया खारिज

पीठ ने हिरासत में लेने का आदेश जारी करने वाले प्राधिकारी की इस दलील को खारिज कर दिया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति राजेश, जो ‘रितिका फाइनेंस’ नामक एक निजी वित्तीय कंपनी चलाता था, उन मामलों में उस पर लगाई गई जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर रहा था, जिन पर हिरासत का आदेश पारित करने के लिए विचार किया गया था। 

एहतियातन हिरासत के आदेश की हुई थी पुष्टि

कोर्ट ने कहा कि प्रासंगिक रूप से चारों मामलों में से किसी में भी प्रतिवादी द्वारा ऐसी शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कोई आवेदन दायर नहीं किया गया है। पीठ ने कहा कि इसके अलावा, केरल हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ उनकी पत्नी द्वारा दायर मामले की सुनवाई के दौरान भी इनका उल्लेख नहीं किया गया है, जिसमें पलक्कड़ के जिलाधिकारी ने एहतियातन हिरासत के आदेश की पुष्टि की गई थी। 

आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता- कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कानून की उपरोक्त व्याख्याओं को ध्यान में रखते हुए, हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिरासत के आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता। हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी द्वारा आदेश में बताई गई परिस्थितियां राज्य के लिए जमानत रद्द करने के लिए सक्षम न्यायालयों से संपर्क करने के लिए पर्याप्त आधार हो सकती हैं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि इसके लिए उसकी एहतियातन हिरासत को उचित ठहराया जाए।’ 

 हिरासत की अधिकतम अवधि हो गई थी समाप्त

पीठ ने कहा, ‘हम स्पष्ट करते हैं कि यदि प्रतिवादी राज्य द्वारा बंदी की जमानत रद्द करने के लिए ऐसा आवेदन किया जाता है, तो उस पर उपर्युक्त टिप्पणियों से अप्रभावित होकर निर्णय लिया जाना चाहिए।’ सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर, 2024 को बंदी को रिहा करने का आदेश दिया था क्योंकि अधिनियम के तहत उसकी हिरासत की अधिकतम अवधि समाप्त हो गई थी। (भाषा के इनपुट के साथ)

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