
दुनिया की हिस्सेदारी में हिंदुओं की हिस्सेदारी
Explainer:: 2010 और 2020 के बीच दुनिया की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आबादी बढ़ने के साथ ही कई मुख्य धर्म और उससे जुड़े समूहों को विस्तार भी हुआ है। कुछ धर्मों की आबादी में गिरावट भी देखी गई है। इस्लाम मानने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है लेकिन इन सबके बीच अगर हिंदू धर्म पर नजर डालते हैं तो पिछले 10 वर्षों में दुनिया की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी में स्थिरता नजर आती है। 2700 से ज्यादा जनगणना और सर्वेक्षणों के आधार पर तैयार प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट में बताती है कि कैसे दुनिया की बढ़ती अबादी के बीच हिंदू धर्म ने जनसांख्यिकीय स्थिरता और न्यूनतम धार्मिक परिवर्तन के सूत्र के जरिए अपनी स्थिति को बरकरार रखा है। इस लेख में हम सबसे पहले जानने की कोशिश करेंगे दुनिया में हिंदू धर्म की स्थिति के बारे में।
हिंदू धर्म
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुओं की आबादी दुनिया के प्रजनन औसत के करीब है। हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या की बात करें तो 2010 से 2020 के एक दशक में करीब 126 मिलियन इसके अनुयायी बढ़े। 2010 में हिंदुओं की आबादी 1.1 बिलियन थी वहीं 2020 में हिंदू धर्म को मानने वालों का कुल आंकड़ा करीब 1.2 बिलियन तक तक पहुंच गया। दुनिया की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 14.9% पर रही जो इसकी स्थिरता को दर्शाती है। 10 साल पहले भी दुनिया की आबादी में इसकी इतनी ही हिस्सेदारी थी। साथ ही इससे यह भी पता चलता है कि हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दुनिया की जनसंख्या वृद्धि से काफी मेल खाती है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक भारत की आबादी 166 करोड़ हो सकती है जिसमें हिंदुओं की आबादी 130 करोड़ रहने का अनुमान है।
कई अन्य धर्मों के विपरीत हिंदू धर्म में बहुत कम धार्मिक बदलाव हुए । बहुत कम लोग इस धर्म में शामिल हुए या इस धर्म से बाहर निकले। हिंदुओं में प्रजनन दर दुनिया के प्रजनन औसत के करीब रही जिससे हिंदुओं की आबादी में ज्यादा उतार चढाव देखने को नहीं मिला। इसलिए यह वृद्धि स्थिर रही। इस जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक स्थिरता ने हिंदू धर्म को ईसाई धर्म और इस्लाम के बाद दुनिया के तीसरे सबसे बड़े धर्म के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने में मदद की।
ईसाई धर्म
अन्य धर्मों के बारे में बात करें तो अभी भी दुनिया में ईसाई धर्म सबसे बड़ा धर्म बना हुआ है। इस धर्म को मानने वालों की संख्या 2.18 बिलियन से बढ़कर 2.30 बिलियन हो गई है। हालांकि, वैश्विक आबादी में उनकी हिस्सेदारी लगभग 30.6% से घटकर 28.8% पर आ गई है। यह कमी प्रजनन या मृत्यु दर के पैटर्न के कारण नहीं बल्कि खास तौर से पश्चिमी देशों में व्यापक रूप से धार्मिक परिवर्तन के कारण हुई।
इस्लाम
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 2010 से 2020 की अवधि में इस्लाम तेजी से बढ़ा है। 10 साल में मुसलमानों की संख्या 347 मिलियन बढ़कर 2.0 बिलियन हो गई। वैश्विक आबादी में इसका हिस्सा 23.8% से बढ़कर 25.6% हो गया। उच्च प्रजनन दर के कारण वैश्विक मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ी है। मुसलमानों आबादी कंट्रोल करने की कोशिशों पर जोर नहीं दिया जाता है। प्यू रिसर्च सेंटर ने 2015-2020 की अवधि के डेटा के आधार पर अनुमान लगाया कि एक मुस्लिम महिला अपने जीवनकाल में औसतन 2.9 बच्चे पैदा करती है जबकि गैर-मुस्लिम महिलाओं के लिए यह अनुपात 2.2 बच्चों का है। मुस्लिमों की आबादी बढ़ने में धर्म परिवर्तन(अन्य धर्मों को छोड़कर इस्लाम को अपनाने वालों) की भूमिका नगण्य रही है।
बौद्ध धर्म
बौद्ध एकमात्र प्रमुख धार्मिक समूह था जिसकी संख्या में गिरावट दर्ज की गई। बौद्ध आबादी 343 मिलियन से घटकर 324 मिलियन रह गई। यह गिरावट कम प्रजनन क्षमता और कुछ हद तक धर्म परिवर्तन के कारण था। अन्य धर्मों के मानने वालों की संख्या या तो बढ़ी या फिर स्थिर रही जबकि बौद्ध ही एक मात्र धर्म रहा जिसके अनुयायियों की संख्या में गिरावट देखने को मिली है।
यहूदी
यहूदी आबादी 2010 और 2020 के बीच 13.8 मिलियन से बढ़कर 14.8 मिलियन हो गई। दुनिया की आबादी में यहूदियों की हिस्सेदारी 0.2% की रही जो कि स्थिर है। यहां धर्मांतरण बेहद सीमित है, इसलिए इसकी संख्या में मामूली वृद्धि हुई और दुनिया की आबादी में इनकी हिस्सेदारी स्थिर बनी हुई है। अन्य धर्मों में जैन, बहाई, और अन्य ने 2.2% की एक सुसंगत वैश्विक हिस्सेदारी बनाए रखी है। उनकी वृद्धि मोटे तौर पर कुल जनसंख्या विस्तार के अनुरूप थी। इनमें धर्म परिवर्तन या प्रजनन दर का बहुत कम प्रभाव रहा।
नास्तिकों की आबादी भी बढ़ी
प्यू रिसर्च की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि दुनिया में नास्तिकों की आबादी बढ़ी है। 2010 में 1.6 बिलियन लोग नास्तिक थे। ये लोग किसी धर्म को नहीं मानते थे। 2020 तक इन लोगों की आबादी बढ़कर 1.9 बिलियन हो गई।
ये बदलाव क्यों हुए?
अब इस सवाल का उठना लाजिमी है कि इस तरह का बदलाव क्यों हुआ? 2010 से 2020 के दौरान वैश्विक धार्मिक परिवर्तन को आकार देने वाली दो मुख्य ताकतें: जनसांख्यिकी – युवा आबादी और उच्च प्रजनन दर का काफी योगदान रहा। इस्लाम और हिंदू धर्म को इस प्रवृत्ति से सबसे अधिक लाभ हुआ। वहीं ईसाई धर्म ने खुद को इससे अलग रखा जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। असहमति के कारण बड़े नुकसान का अनुभव किया, जबकि असंबद्ध लोगों को मुख्य रूप से पूर्व ईसाइयों के माध्यम से लाभ हुआ; हिंदू धर्म, इस्लाम और यहूदी धर्म परिवर्तन पैटर्न से काफी हद तक अप्रभावित रहे।
सर्वेक्षण का निष्कर्ष
ईसाई धर्म संख्या के लिहाज से अभी भी सबसे आगे बना हुआ है लेकिन दुनिया की आबादी में इसका हिस्सा घट रहा है। वहीं इस्लाम के लगातार बढ़ने की उम्मीद है और 21वीं सदी के मध्य तक संख्या के लिहाज से यह ईसाई धर्म के बराबर हो सकता है।