Explainer: ट्रंप और नेतन्याहू को दे डाली खुली चुनौती, 86 साल के ईरान के सुप्रीम लीडर, कौन हैं ‘खामेनेई’


ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई
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ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई

जैसे-जैसे इजरायल और ईरान के बीच संघर्ष तेज होता जा रहा है, एक खास शख्स की खास चर्चा हो रही है जो लोगों की नज़रों से दूर रहा, और वो भी जो 86 साल का है और वो हैं ईरान के एकांतप्रिय सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई। सबसे जेहन में ये सवाल जरूर है कि कौन हैं खामेनेई, कैसे बन गए ईरान के सुप्रीम लीडर और वो कैसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। खामेनेई ने खुलकर जंग का ऐलान किया और कहा कि वो सरेंडर नहीं करेंगे, इतना ही नहीं, उन्होंने अमेरिका को धमकी तक दे दी वह ईरान और इजरायल के बीच दखल ना दे।

नेतन्याहू और ट्रंप के लिए चुनौती बने खामेनेई

13 जून 2025 का दिन जब इज़राइल ने ईरान के खिलाफ अपना अब तक का सबसे बड़ा हमला किया, जिसमें सैन्य और परमाणु स्थलों को निशाना बनाया गया और कई वरिष्ठ अधिकारियों को मार डाला गया। उसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू दोनों ने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई को निशाना बनाया। इजरायल लगातार ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई की हत्या की बात कह रहा है। तो वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर लिखा, “हमें ठीक से पता है” कि अयातुल्ला कहां है। हम उसे मार नहीं सकते, कम से कम अभी तो नहीं। लेकिन हमारा धैर्य कम होता जा रहा है।”

अयातुल्ला अली खामेनेई, ईरान के सुप्रीम लीडर

क्रांतिकारी सहयोगी से सर्वोच्च नेता तक 1939 में पूर्वी ईरान के तीर्थस्थल मशहद में एक मामूली साधन वाले धार्मिक परिवार में जन्मे अयातुल्ला अली खामेनेई ने तीन दशकों से अधिक समय तक ईरान का नेतृत्व किया है। खामेनेई के जन्म के वक्त ईरान में मॉडलिंग का दौर चल रहा था और ईरान पर जब वेस्टर्न कल्चर हावी हो रहा था, उस वक्त चार साल की उम्र में ही खामेनेई को उनके वालिद ने मजहबी तालीम के लिए भेज दिया था। खेलने कूदने की उम्र में खामेनेई ने कुरान, अरबी और इस्लामी तालीम हासिल की और 11 साल की उम्र में मौलवी बन गये।

खामेनेई जिस दौर में बड़े हो रहे थे उस वक्त ईरान के अंदर शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन था और शाह वेस्टर्न कल्चर को बढ़ावा दे रहे थे, जो खामेनेई को बिलकुल पसंद नहीं था।खामेनेई ईरान में इस्लाम का ही शासन चाहते थे। 60 के दशक में खामेनेई शिया धर्मगुरू रुहोल्ला खोमैनी से जुड़ गये और शाह सरकार के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों में शामिल होने लगे। शाह की सरकार ने कई बार खामेनेई को जेल में डाला।

साल 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद शाह रजा पहलवी को सत्ता गंवानी पड़ी और ईरान में खुमैनी का शासन आ गया। खुमैनी की सरकार में खामेनेई को उप रक्षा मंत्री बनाया गया, तब से ही खामेनेई इस्लामिक मुल्क के तौर पर ईरान को मजबूत करने में जुट गये।

खामेनेई ने बनाई ईरान की सबसे ताकतवर फौज

खामेनेई को उप रक्षा मंत्री बनाने के बाद ही IRGC का गठन किया गया, जो आगे चलकर ईरान की सबसे ताकतवर फौज बनी। 1981 से 1989 तक खामेनेई ईरान के राष्ट्रपति रहे। इराक-ईरान युद्ध में देश को लीड किया। 1989 में खुमैनी की मौत के बाद खामेनेई को ईरान का सर्वोच्च लीडर यानी रहबर बनाया गया और इसके लिए संविधान में भी संशोधन किया गया। ईरान का रहबर यानी सुप्रीम लीडर बनने के बाद पूरी कमान खामेनेई ने अपने ही हाथ में ली और पूरे ईरान को अकेले कंट्रोल करने लगे।

ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोकना संभव नहीं


खामेनेई को ईरान की संसद, ज्यूडिशियरी, IRGC, कुर्द फोर्स डायरेक्ट रिपोर्ट करती है और उनके इशारे पर ही हिज्बुल्लाह, हमास, हूती विद्रोही जैसे मिलिशिया संगठनों को मिडिल ईस्ट में मजबूत किया गया। अब जबकि इजरायल से जंग छिड़ चुकी है लेकिन अमेरिका या इजरायल ने अभी तक खामेनेई को टारगेट नहीं किया है क्योंकि दोनों देशों को लगता है कि खामनेई जबतक ईरान की सत्ता में रहेंगे तब तक ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोकना संभव नहीं है।

सुरक्षा के घेरे में और खतरे में खामेनेई

अयातुल्ला खामेनेई की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाती है और उनके ठिकाने के बारे में शायद ही कभी बताया जाता है। विश्लेषकों के अनुसार, उनकी निजी सुरक्षा की देखरेख एक कुलीन रिवोल्यूशनरी गार्ड इकाई करती है जो सीधे उनके कार्यालय को रिपोर्ट करती है।

अयातुल्ला खामेनेई विदेश और सैन्य नीति को भी नियंत्रित करते हैं, वे रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स की देखरेख करते हैं, जो ईरान की इस्लामी व्यवस्था की रक्षा करती है और बाकी सेना से अलग बैठती है, और शक्तिशाली कुद्स फोर्स, जो मध्य पूर्व में ईरान के विदेशी अभियानों को निर्देशित करती है।

पिछले हफ़्ते कथित तौर पर उन्हें एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया, जहां वे सेना के संपर्क में रह सकें। यह पिछले साल की इसी तरह की रिपोर्टों के बाद है, जब अयातुल्ला को हसन नसरल्लाह की हत्या के एक दिन बाद भी एक सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया था, जो लेबनानी आतंकवादी समूह हिज़्बुल्लाह का नेतृत्व करते थे और लंबे समय से सहयोगी थे। 

खामेनेई साधारण लीडर नहीं, सुप्रीम लीडर हैं

13 जून को इजरायल ने एक ही झटके में ईरान की टॉप लीडरशिप को खत्म कर दिया था, साइंटिस्ट मार गिराए  थे। उस दिन खामेनेई को भी मारा जा सकता था लेकिन इजरायल ने ऐसा नहीं किया। इसके पीछे बड़ी वजह छिपी है क्योंकि खामेनेई कोई साधारण लीडर नहीं हैं। खामेनेई की मौत का मतलब मिडिल ईस्ट में जंग और तेज होना होगां। क्योंकि ईरान शिया बहुल देश है। 9 करोड़ की आबादी वाले ईरान में शिया मुसलमान 90 फीसदी यानी 8 करोड़ 10 लाख से ज्यादा हैं और खामेनेई सिर्फ ईरान के सुप्रीम लीडर नहीं हैं, शिया मुसलमानों के बड़े धर्मगुरू भी हैं।

खामेनेई विलायत ए फकीह यानी इस्लामी धर्मगुरुओं के शासन के कट्टर समर्थक हैं। उनका मानना है कि इस्लाम और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता। वह न सिर्फ अधिकारियों बल्कि आम लोगों को भी इस्लाम को लेकर उपदेश देते हैं और तमाम मीडिया चैनल, मस्जिद, धार्मिक मदरसों के प्रचारक भी इस मामले में उनका अनुसरण करते हैं।





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