
शुभांशु शुक्ला
Axiom-4 mission: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन यानी ISS पर करीब 14 दिनों तक रहेंगे। इस दौरान वे कई तरह के प्रयोग करेंगे। Axiom-4 मिशन के तहत तीन विदेशी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ वे अमेरिका के फ्लोरिडा से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए उड़ान भर चुके हैं। वह 41 वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की यात्रा करने वाले पहले भारतीय हैं। इस मिशन में भारत के साथ हंगरी और पोलैंड भी शामिल हैं। आठ बार तकनीकी खामियों के कारण टलने के बाद अब सबकी नजर इस मिशन की सफलता पर टिकी हुई है। हम यहां Axiom-4 मिशन के बारे में जानेंगे कि इसरो तीन तरह के शैवाल अंतरिक्ष में क्यों भेज रहा है? भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला क्या-क्या रिसर्च करेंगे? Axiom-4 मिशन का मक़सद क्या है?
क्या है Axiom-4 मिशन?
सबसे पहले हम Axiom-4 मिशन के बारे में जान लेते हैं कि यह क्या है और इसका मकसद क्या है। दरअसल, Axiom-4 मिशन अमेरिकी कंपनी एक्सिओम स्पेस (Axiom Space) का एक मिशन है। इसे नासा (NASA) और स्पेसएक्स (SpaceX) की साझेदारी में संचालित किया जा रहा है। भारत के लिए खासतौर यह मिशन काफी अहम है क्योंकि लंबे अर्से के बाद उनका अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में कदम रख रहा है। Axiom Space का ये चौथा मिशन है । ये मिशन अब तक 8 बार टल चुका है । भारत-पोलैंड-हंगरी की सरकारें भी इसपर खर्च कर रहीं हैं।
Axiom-4 mission
मिशन के दल में किसका क्या रोल?
Axiom-4 मिशन का दल की बात करें तो अमेरिका के पूर्व नासा अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन इसके कमांडर हैं जबकि भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन और इसरो के अंतरिक्ष यात्री सुभांशु शुक्ला पायलट की भूमिका में होंगे। पोलैंड के अंतरिक्ष यात्री स्लाओस्ज़ उज़नांस्की और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री टि बोर कापू मिशन विशेषज्ञ हैं। शुभांशु समेत बाक़ी तीनों एस्ट्रोनॉट का पहला मिशन है। पेग्गी व्हिटसन का ये दूसरा मिशन है। सभी 14 दिनों तक ISS में वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे।
मिशन में किसका क्या रोल?
Axiom-4 मिशन का मक़सद क्या?
इस मिशन का मकसद प्राइवेट स्पेस ट्रैवल को बढ़ावा देना है। साथ ही कमर्शियल स्पेस स्टेशन की योजना पर पर आगे बढ़ना है। आइए एक नजर डालते हैं इसके मकसद पर।
- वैज्ञानिक प्रयोग: मिशन के दौरान माइक्रोग्रैविटी में विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग किए जाएंगे, जिनमें जीव विज्ञान, कृषि, मानव स्वास्थ्य, और सामग्री विज्ञान शामिल हैं। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला सात भारतीय प्रयोग करेंगे, जैसे सायनोबैक्टीरिया, मांसपेशी पुनर्जनन, और अंतरिक्ष में फसल खेती का अध्ययन।
- टेक्नोलॉजी का विकास: मिशन में नई तकनीकों का परीक्षण और प्रदर्शन होगा, जो भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों, जैसे चंद्रमा और मंगल यात्रा, के लिए महत्वपूर्ण होंगी।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत जैसे देशों के लिए यह मिशन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान में भागीदारी का अवसर प्रदान करता है। ISRO के गगनयान मिशन के लिए यह अनुभव और डेटा संग्रह का महत्वपूर्ण कदम है।
- अंतरिक्ष से जुड़ी खोज में प्राइवेट सेक्टर: Axiom Space का लक्ष्य निजी अंतरिक्ष स्टेशनों के निर्माण और संचालन की दिशा में काम करना है। Axiom-4 इस दिशा में एक कदम है, जो निजी क्षेत्र की अंतरिक्ष यात्रा को बढ़ावा देता है।
- मानव अनुकूलन अध्ययन: माइक्रोग्रैविटी में मानव शरीर के अनुकूलन, स्वास्थ्य, और संज्ञानात्मक प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा, जो लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है।
Axiom-4 मिशन का मक़सद क्या?
Axiom-4 मिशन में ISRO के क्या-क्या रिसर्च होंगे
स्पेस में सायनोबैक्टीरिया का अध्ययन
- ISRO और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के सहयोग से, इस प्रयोग में दो प्रकार के सायनोबैक्टीरिया की वृद्धि और व्यवहार का अध्ययन किया जाएगा। इनके प्रकाश संश्लेषण की क्षमता और लचीलापन का विश्लेषण होगा, जो भविष्य में चंद्रमा या मंगल पर जीवन समर्थन प्रणालियों के लिए उपयोगी हो सकता है।
माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों के नुकसान का अध्ययन
- यह प्रयोग माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों के नुकसान के कारणों और उपचार विधियों की जांच करेगा। यह मंगल मिशनों के लिए अंतरिक्ष यात्रियों और पृथ्वी पर उम्र से संबंधित मांसपेशी हानि के रोगियों के लिए उपयोगी हो सकता है।
स्पेस में फसलों की खेती
- छह प्रकार के बीजों को अंतरिक्ष में ले जाया जाएगा ताकि उनके विकास का अध्ययन किया जा सके। केरल कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ता इन बीजों में आनुवंशिक गुणों का विश्लेषण करेंगे, जो भविष्य में अंतरिक्ष में खेती के लिए उपयोगी हो सकते हैं।
माइक्रोग्रैविटी और विकिरण का खाद्य माइक्रोएल्गी पर प्रभाव
- यह प्रयोग (ICGEB और NIPGR, भारत द्वारा) माइक्रोग्रैविटी और विकिरण के प्रभाव को खाद्य माइक्रोएल्गी पर जांचेगा, जो अंतरिक्ष में खाद्य स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण हो सकता है। इस मिशन में ISRO तीन तरह के शैवाल भेज रहा है। शैवाल पानी में पाया जाने वाला माइक्रोऑर्गेनिज़्म है।
माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशी पुनर्जनन
- इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेम सेल साइंस एंड रीजनरेटिव मेडिसिन (InStem), भारत द्वारा प्रस्तावित, यह प्रयोग मेटाबोलिक सप्लीमेंट्स के प्रभाव को माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशी पुनर्जनन पर जांचेगा।
स्पेस में अंकुरण
- धारवाड़ के यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) धारवाड़ द्वारा प्रस्तावित, इस प्रयोग में मूंग (हरी दाल) और मेथी (फेनुग्रीक) के बीजों को माइक्रोग्रैविटी में अंकुरित किया जाएगा। इनका औषधीय गुणों और अंतरिक्ष यात्रियों के पोषण के लिए महत्व का अध्ययन होगा।
टार्डिग्रेड्स की लचीलापन
- इस प्रयोग में टार्डिग्रेड्स (सूक्ष्म जीव) की माइक्रोग्रैविटी में जीवित रहने, पुनर्जनन, प्रजनन, और ट्रांसक्रिप्टोम की जांच की जाएगी।
इसके अतिरिक्त, शुभांशु शुक्ला NASA के मानव अनुसंधान कार्यक्रम के तहत पांच संयुक्त प्रयोगों में भी भाग लेंगे। ये प्रयोग माइक्रोग्रैविटी में मानव स्वास्थ्य, विशेष रूप से स्क्रीन उपयोग के संज्ञानात्मक प्रभाव, और जैविक अनुकूलन पर केंद्रित होंगे। इस मिशन में ISRO तीन तरह के शैवाल भेज रहा है। शैवाल पानी में पाया जाने वाला माइक्रोऑर्गेनिज़्म है। माइक्रोग्रैविटी में इसके ग्रोथ मेटाबॉलिज़्म और जेनेटिक्स को स्टडी किया जाएगा । माइक्रोग्रैविटी में सायनोबैक्टेरिया में होने वाले बदलाव को भी स्टडी किया जाएगा। तालाब में पानी का हरा रंग इसी सायनोबैक्टीरिया की वजह से दिखता है।