
इटावा में कथावाचक मामले को लेकर भारी तनाव है।
इटावा: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचक मुकुट मणि यादव और संत सिंह यादव के खिलाफ दर्ज मुकदमे ने जातीय तनाव को हवा दे दी है। बुधवार को स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी और 12 थानों की फोर्स बुलानी पड़ी। इसके बावजूद प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की गाड़ियों पर पथराव किया और सड़कों पर चक्काजाम कर हंगामा मचाया। यह मामला अब यूपी की सड़कों से लेकर सियासी गलियारों तक पहुंच गया है, जहां समाजवादी पार्टी इसे 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए बड़ा मुद्दा बनाने में जुट गई है।
क्या है पूरा मामला?
इटावा के दादरपुर गांव में भागवत कथा के दौरान कथावाचक मुकुट मणि यादव और उसके साथी के साथ कथित तौर पर मारपीट की गई। इसके बाद दूसरे पक्ष ने भी मुकुट मणि यादव और उसके साथी पर छेड़छाड़ आरोप लगाया। इसके बाद जयप्रकाश तिवारी ने बकेवर थाने में मुकुट मणि और संत सिंह यादव के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मुकदमा दर्ज कराया। पुलिस जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि मुकुट मणि के पास 2 आधार कार्ड मिले, एक पर नाम मुक्त सिंह और दूसरे पर मुकुट मणि अग्निहोत्री, लेकिन दोनों में फोटो और नंबर एक ही हैं। पुलिस अब इसकी जांच कर रही है कि ये आधार कार्ड कहां से और कैसे बनवाए गए।
मुकदमा दर्ज होने की खबर फैलते ही यादव संगठनों में आक्रोश भड़क उठा। हजारों की संख्या में लोग इटावा पहुंचे और बकेवर थाने को घेर लिया। प्रदर्शनकारियों ने मुकदमे वापस लेने की मांग को लेकर जमकर नारेबाजी की। सड़कों पर ‘जय यादव, जय माधव’ और ‘जय अखिलेश’ के नारे गूंजे। स्थिति बेकाबू होने पर पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया, लेकिन आंदोलन रुकने का नाम नहीं ले रहा। आगरा-कानपुर नेशनल हाईवे पर चक्काजाम और पथराव की घटनाओं ने प्रशासन को और सतर्क कर दिया।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव लखनऊ में कथावाचक मुकुट मणि यादव और उसकी टीम के सदस्यों से मुलाकात के दौरान।
सियासी रंग लेता जा रहा मामला
इटावा यादव समाज का गढ़ माना जाता है, और इस मुद्दे ने समाजवादी पार्टी को एक नया सियासी हथियार दे दिया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस मामले को ‘अगड़ा बनाम PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का रंग देकर 2027 के चुनावों की जमीन तैयार करनी शुरू कर दी है। अखिलेश ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार के इशारे पर यादव समाज को अपमानित किया जा रहा है। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे साजिश करार देते हुए माहौल खराब करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं।
यादव वोट बैंक की सियासत
यूपी में यादव समाज की आबादी 10-11% है और यह ओबीसी वोट बैंक का 20% हिस्सा रखता है। इटावा, मैनपुरी, एटा, कन्नौज, औरैया जैसे 16 जिलों में यादव वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इन जिलों की 47 विधानसभा सीटों में से 5 पर एक लाख से ज्यादा और 27 पर 25,000 से 50,000 के बीच यादव वोटर हैं। हालांकि, 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा का यादव वोट बैंक कमजोर हुआ है। 2002 में 75% यादवों ने सपा को वोट दिया था, जो 2012 में घटकर 66% रह गया। 2017 में बीजेपी ने इन जिलों की 59 में से 49 सीटें जीतीं, जबकि सपा को सिर्फ 8 सीटें मिलीं। 2022 में भी बीजेपी ने 29 में से 18 सीटें हासिल कीं। इसीलिए अखिलेश इस मुद्दे को भुनाकर यादव वोट बैंक को फिर से एकजुट करने की कोशिश में हैं।
बिहार में भी सियासी हलचल
यह मामला यूपी तक सीमित नहीं रहा। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने भी इसे बड़ा मुद्दा बना लिया है। बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, और तेजस्वी इसे यादव समाज के सम्मान से जोड़कर सियासी लाभ लेने की कोशिश में हैं। आगामी महीनों में कई त्योहारों को देखते हुए योगी सरकार ने सतर्कता बढ़ा दी है। सीएम ने साफ कर दिया है कि जाति के नाम पर अशांति फैलाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। दूसरी ओर, सपा और आरजेडी इसे 2027 और बिहार चुनावों के लिए बड़ा मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। इटावा का यह तनाव अब सिर्फ एक कथावाचक का मामला नहीं, बल्कि यूपी और बिहार की सियासत का केंद्र बन गया है।