“मरने के बाद दफनाना मत…”, गंगा में अस्थि विसर्जन करने अमेरिका से पूरा परिवार पहुंचा पटना


गंगा में अस्थि विसर्जन

गंगा में अस्थि विसर्जन

बिहार: 1957 में शिकागो यूनिवर्सिटी से भारत आकर स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आंदोलन पर शोध और पीएचडी करने वाले पहले शोधकर्ता स्वर्गीय प्रोफेसर वाल्टर हाउजर और उनकी पत्नी रोजमेरी हाउजर की अस्थि लेकर उनका पूरा परिवार गुरुवार को पटना पहुंचा और गंगा नदी में अस्थियां प्रवाहित की।

भारत से गहरा जुड़ाव

दरअसल, प्रोफेसर वाल्टर और उनकी पत्नी का जुड़ाव भारत से भावनात्मक रूप से इस कदर था कि उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की थी कि दाह संस्कार के उपरांत अस्थि अवशेषों को गंगा में प्रवाहित किया जाए, इसलिए उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए शीला हाउजर (पुत्री), प्रोफेसर माइकल हाउजर (पुत्र), प्रोफेसर एलिजाबेथ हाउजर (पुत्रवधू), रोजमेरी हाउजर जॉस (नातिन) आज पटना पहुंचे और उनके अवशेषों को एक नाव के जरिए गंगा नदी में प्रवाहित किया। इस मौके पर वाल्टर हाउजर के छात्र रहे प्रोफेसर विलियम पिंच, प्रो वेंडी सिंगर और प्रोफेसर सिंगर के पुत्र ऐरन लिन भी मौजूद थे।

अस्थि लेकर परिवार पहुंचा पटना

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अस्थि लेकर परिवार पहुंचा पटना

वाल्टर हाउजर आजन्म स्वामी सहजानंद से जुड़े रहे। वर्जीनिया विश्वविद्यालय, अमेरिका में अध्यापन कार्य के दौरान प्रोफेसर वाल्टर ने अपने छह छात्रों को बिहार पर शोध करने के लिए प्रेरित किया। इन छात्रों ने बिहार पर कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। अस्थि विसर्जन के कार्यकम के बाद पटना के राघवपुर (बिहटा) स्थित श्री सीताराम आश्रम के सचिव डॉ. सत्यजीत कुमार सिंह की ओर से एक जनसभा का आयोजन किया, जिसमें डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, मंत्री विजय चौधरी समेत बिहार राज्य किसान सभा और उसके नेतागण भी शामिल हुए।

वाल्टर हाउजर की 01 जून 2019 को मृत्यु हो गई थी।

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वाल्टर हाउजर की 01 जून 2019 को मृत्यु हो गई थी।

  

महान स्वाधीनता सेनानी और कांतिकारी किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की मृत्यु का यह 75वां साल है। 26 जून 1950 को उनकी मृत्यु 61 वर्ष की अवस्था में हुई थी। इस दिन बिहार सहित देश के कई हिस्सों में उनके विराट व्यक्तित्व व असाधारण योगदान को याद किया जाता है।

स्वामी सहजानंद सरस्वती की 75वीं पुण्यतिथि

वाल्टर हाउजर 1957 में शिकागो यूनिवर्सिटी के एक छात्र के रूप में भारत आए थे। उनके साथ उनकी गर्भवती पत्नी रोजमेरी हाउजर भी थीं। बिहार प्रॉविंसियल किसान सभा 1929-42 पर उन्हें 1961 में पीएचडी की डिग्री प्राप्त हुई। उसके बाद वर्जीनिया विश्वविद्यालय में वे प्राध्यापक बन गए। वाल्टर हाउजर की पीएचडी भले 1961 में हो गई थी, लेकिन उस पुस्तक का प्रकाशन मार्च 2019 में ही संभव हो सका था। पटना में उस पुस्तक का भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया था। उसके चंद महीने बाद ही वाल्टर हाउजर की 01 जून 2019 को मृत्यु हो गई थी।

अस्थि विसर्जन के कार्यकम का आयोजन

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अस्थि विसर्जन के कार्यकम का आयोजन

5 दशकों तक बिहार आते रहे वाल्टर हाउजर

वाल्टर हाउजर न सिर्फ खुद अगले पांच दशकों तक बिहार और भारत आते रहे, बल्कि स्वामी सहजानंद सरस्वती की कई पुस्तकों का खुद अंग्रेजी अनुवाद कर प्रकाशन कराया जैसे ‘खेत मजदूर’, ‘झारखंड के किसान’। वाल्टर हाउजर के छह शिष्यों ने भी अलग-अलग विषयों पर बिहार में शोध और पीएचडी की। वाल्टर हाउजर का स्वामी सहजानंद और भारत से इस कदर लगाव था कि अपनी अंतिम इच्छा में उन्होंने कहा था कि उनके मरने के बाद उन्हें दफनाने के बजाए जलाया जाए और अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाए। वालटर हाउजर की पत्नी रोज मेरी हाउजर की भी यही इच्छा थी।

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