Explainer | राजनाथ-डोंग मुलाकात: भारत ने चीन से सीमा विवाद के स्थायी हल पर क्यों दिया जोर?


India-China border dispute, Rajnath Singh China meeting
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भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है।

नई दिल्ली: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के साथ दशकों पुराने सीमा विवाद को हमेशा के लिए हल करने की बात कही है। उन्होंने चीन से कहा कि सीमा पर शांति और स्थायित्व के लिए सैनिकों की वापसी (डिसएंगेजमेंट), तनाव कम करने (डी-एस्केलेशन) और स्पष्ट सीमा रेखा (डिलिमिटेशन) की जरूरत है। चीन के किंगदाओ शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान राजनाथ सिंह ने अपने चीनी समकक्ष एडमिरल डोंग जुन से मुलाकात की। यह 2020 में गलवान घाटी में हुए तनाव के बाद दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की पहली आमने-सामने की बैठक थी। राजनाथ ने साफ कहा कि सीमा पर अमन-चैन के बिना दोनों देशों के रिश्ते बेहतर नहीं हो सकते।

सांस्कृतिक रिश्तों पर भी हुई बात

इस मुलाकात में राजनाथ सिंह ने सिर्फ रणनीतिक बातें ही नहीं कीं, बल्कि सांस्कृतिक रिश्तों को भी मजबूत करने की कोशिश की। उन्होंने एडमिरल डोंग को बिहार की पारंपरिक मधुबनी कला से बनी ‘ट्री ऑफ लाइफ’ पेंटिंग भेंट की। इस पेंटिंग के जरिए उन्होंने दोनों देशों के साझा सांस्कृतिक मूल्यों को याद करने की बात कही। साथ ही, उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लगभग 6 साल बाद फिर से शुरू होने पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि यह यात्रा दोनों देशों के बीच दोस्ती और भरोसे को बढ़ाने का आधार बन सकती है।

सीमा पर भरोसा बहाल करने की जरूरत

यह मुलाकात सिर्फ औपचारिक नहीं थी। राजनाथ सिंह ने साफ कहा कि सीमा पर शांति के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। उन्होंने डोंग को याद दिलाया कि 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के बीच भरोसा टूटा है। अब सिर्फ सैनिकों की वापसी काफी नहीं है। इसके लिए आगे की चौकियों को हटाना, गश्त के पुराने नियमों को फिर से लागू करना और स्थानीय लोगों व सैनिकों में विश्वास बहाल करना जरूरी है। राजनाथ ने कहा कि ये कदम उठाए बिना एशिया में आपसी सहयोग की बात बेमानी होगी।

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपने चीनी समकक्ष डोंग जुन के साथ।

राजनाथ सिंह ने चीन से क्या कहा?

SCO बैठक के दौरान हुई इस अहम मुलाकात में राजनाथ सिंह ने भारत का रुख स्पष्ट किया। उन्होंने डोंग से कहा कि सीमा विवाद को हमेशा के लिए हल करने के लिए ठोस योजना बनानी होगी। उन्होंने विशेष प्रतिनिधि (स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव) वार्ता को फिर से शुरू करने की बात कही, जो पहले सीमा विवाद पर चर्चा का अहम मंच थी। उन्होंने गलवान घाटी की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि भरोसे की बहाली के लिए बयानबाजी या अस्थायी कदम काफी नहीं हैं। इसके साथ ही, उन्होंने हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और पाकिस्तान आधारित आतंकी नेटवर्क के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र कर भारत की आतंकवाद के खिलाफ सख्ती को भी रेखांकित किया।

अस्थायी समझौतों से आगे बढ़ने की जरूरत

राजनाथ सिंह ने जोर देकर कहा कि भारत और चीन को अस्थायी समझौतों से आगे बढ़कर LAC की डिलिमिटेशन और डिमार्केशन तय करनी होगी। उन्होंने सैनिकों की वापसी, तनाव कम करने और लगातार बातचीत के लिए एक रोडमैप की बात की। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की जिम्मेदारी है कि वे ‘अच्छे पड़ोसी’ की तरह व्यवहार करें, जिससे आपसी फायदा हो और क्षेत्र में स्थायित्व आए।

स्पष्ट सीमा रेखा क्यों जरूरी?

भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) है, जिसका ज्यादातर हिस्सा अस्पष्ट है। इस अस्पष्टता की वजह से बार-बार तनाव बढ़ता है। पांगोंग त्सो और हॉट स्प्रिंग्स जैसे इलाकों में सैनिकों की वापसी से तात्कालिक तनाव तो कम हुआ, लेकिन यह मूल समस्या का हल नहीं है। बिना साफ सीमा रेखा के, दोनों देश अपने-अपने दावों तक गश्त करते हैं, जिससे बार-बार टकराव होता है। 2020 की गलवान घाटी की झड़प भी इसी अस्पष्टता की वजह से हुई थी।

भारत-चीन रिश्तों की चुनौती

यह मुलाकात ऐसे समय हुई है जब भारत और चीन अपने कूटनीतिक रिश्तों के 75 साल मना रहे हैं। भारत चाहता है कि इस मौके पर दोनों देश स्थायी शांति की दिशा में बढ़ें। लेकिन बिना स्पष्ट सीमा के कोई भी सुधार अस्थायी होगा। अब असली इम्तिहान यह है कि क्या चीन साफ सीमा रेखा तय करने और भरोसा बहाली के लिए ठोस कदम उठाएगा। भारत अब अस्थायी समझौतों से संतुष्ट नहीं है और चाहता है कि स्पष्ट सीमा नक्शे और समझौते हों। हालांकि, ऐतिहासिक अविश्वास और हिमालयी इलाकों पर परस्पर विरोधी दावों की वजह से यह रास्ता आसान नहीं है।

राजनाथ का दो टूक संदेश

राजनाथ सिंह ने चीन को दो टूक संदेश दिया है कि शांति अस्थायी समझौतों पर टिक नहीं सकती। इसके लिए स्पष्ट सीमा रेखा, जवाबदेही और लगातार राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। भारत ने पहले भी 2005 के राजनीतिक मापदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों के समझौते और 2012 की विशेष प्रतिनिधि वार्ता में स्पष्ट सीमा की बात उठाई थी। लेकिन चीन ने इस मुद्दे को बार-बार टाला है और सीमा को अस्पष्ट रखने को तरजीह दी है। राजनाथ सिंह की इस मुलाकात ने भारत के दृढ़ रुख को सामने रखा है। अब गेंद चीन के पाले में है। क्या वह साफ सीमा रेखा और स्थायी शांति की दिशा में कदम उठाएगा, या फिर अस्पष्टता और अस्थायी समझौतों का दौर जारी रहेगा? यह आने वाला समय बताएगा।





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