
दलाई लामा भारत कब और कैसे पहुंचे।
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा आगामी 6 जुलाई को 90 वर्ष के हो जाएंगे। उनके जन्मदिन की तैयारियां जारी हैं। आपको बता दें कि दलाई लामा भारत के हिमाचल प्रदेश में स्थित धर्मशाला के मैकलियोडगंज में रहते हैं। उनके निवास को त्सुगलाखांग भी कहा जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि तिब्बत में जन्में दलाई लामा भारत में क्यों रहते हैं? दलाई लामा को तिब्बत क्यों छोड़ना पड़ा और वह भारत कैसे पहुंचे? आइए जानते हैं इसका पूरा किस्सा।
दलाई लामा कौन हैं?
दलाई लामा तिब्बत के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता हैं। उनका जन्म 6 जुलाई 1935 में उत्तरी तिब्बत में हुआ था। दलाई लामा का असली नाम तेनज़िन ग्यात्सो है और उन्हें महज 4 साल की उम्र में 14वें दलाई लामा के रूप में चुन लिया गया था। उन्हें तेरहवें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में पहचान मिली है। बौद्ध धर्म को मानने वाले दलाई लामा को एक मार्गदर्शक या गुरु के रूप में मानते हैं। वह दुनिया भर के सभी बौद्धों का मार्गदर्शन भी करते हैं।
दलाई लामा ने तिब्बत कब छोड़ा?
साल 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया था। इसके बाद 23 मई 1951 को चीन ने तिब्बत पर औपचारिक रूप से कब्जा कर लिया। चीन के इस कदम का तिब्बत और दुनिया के कई देशों में जमकर विरोध हुआ था। साल 1959 में तिब्बत में चीन के खिलाफ आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन को चीन ने क्रूरता से खत्म कर दिया और हजारों तिब्बतियों की मौत हुई। चीन की सेना ने ल्हासा पर कब्जा कर लिया जहां दलाई लामा का महल था। ऐसा माना जा रहा था कि चीन उन्हें गिरफ्तार कर सकता है। इसके बाद 17 मार्च 1959 को दलाई लामा ने तिब्बत छोड़ दिया।
भारत कब और कैसे पहुंचे दलाई लामा?
17 मार्च 1959 को दलाई लामा ने भेष बदल कर अपनी मां, छोटे भाई, बहन, निजी सहायकों और अंगरक्षकों के साथ अपना महल छोड़ दिया था। तिब्बत की राजधानी ल्हासा से रवाना होने के बाद दलाई लामा ने भारत का रुख किया। करीब 13 दिन की यात्रा के बाद 31 मार्च को दलाई लामा भारत पहुंचे। दलाई लामा अपने कई शिष्यों के साथ भारत की सीमा में पहुंचे। उन्होंने भारत सकुशल पहुंचने के लिए खेनज़ीमन दर्रे का इस्तेमाल किया था।
दलाई लामा ने भारत आने के लिए हिमालय और ब्रह्मपुत्र नदी को पार किया था। दलाई लामा और उनके लोग अरुणाचल प्रदेश के तवांग में रुके थे। दलाई लामा को सुरक्षित लाने की जिम्मेदारी असम राइफल्स को ही सौंपी गई थी। बल की 5वीं बटालियन को दलाई लामा और उनके दल को नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश) के माध्यम से असम में सुरक्षित लाने का काम दिया गया था। इसके बाद भारत सरकार ने 3 अप्रैल 1959 को दलाई लामा को शरण दे दी। आज भी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बत से आए हुए हजारों लोग रहते हैं।
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