
बिहार में मुस्लिम वोटर काफी अहम भूमिका अदा करते हैं।
पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान भले ही बाकी हो, लेकिन सियासी घमासान शुरू हो चुका है। इस बार भी सभी की नजर मुस्लिम वोटरों पर टिकी है, जो 50 से ज्यादा सीटों पर नतीजों को पलटने की ताकत रखते हैं। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाले विपक्षी महागठबंधन और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगुवाई वाले एनडीए (NDA) के बीच मुस्लिम वोटों को लुभाने की होड़ मची है। सवाल यह है कि बिहार के मुस्लिम वोट का रिमोट आखिर किसके हाथ में होगा?
बिहार में सियासी तौर पर कितने ताकतवर हैं मुस्लिम?
बिहार की 17% से ज्यादा आबादी मुस्लिम है, जो 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है। किशनगंज में 68%, कटिहार में 43%, अररिया में 42%, पूर्णिया में 38% और दरभंगा में 25% मुस्लिम आबादी है। ये आंकड़े बताते हैं कि मुस्लिम वोटर बिहार की सियासत में कितने अहम हैं। हालांकि, यूपी, बंगाल या महाराष्ट्र के उलट बिहार में मुस्लिम वोट एकतरफा नहीं पड़ते। पिछले 4 चुनावों में विपक्षी महागठबंधन को मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा मिला। 2019 के लोकसभा चुनाव में 89%, 2024 में 87%, 2015 के विधानसभा चुनाव में 84% और 2020 में 76% मुस्लिम वोट महागठबंधन के खाते में गए। लेकिन 2020 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल में 5 सीटें जीतकर RJD के वोट बैंक में सेंध लगाई। उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की पार्टियों ने भी कुछ मुस्लिम वोट हासिल किए।

बिहार में तेजस्वी यादव और असदुद्दीन ओवैसी में मुस्लिम वोटों को लेकर रस्साकशी चल रही है।
मुस्लिम वोटों में बंटवारा रोकने की कोशिश कर रहे तेजस्वी
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में NDA और महागठबंधन, दोनों को 37.9% वोट मिले। एनडीए ने 125 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन 110 सीटों पर सिमट गया। दोनों के बीच सिर्फ 11,150 वोटों का अंतर था। AIMIM को 5,25,679 वोट (1.66%) मिले, जिसने जीत-हार का अंतर पैदा किया। सीमांचल में ओवैसी की पार्टी को भारी समर्थन मिला, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है। तेजस्वी यादव इस बार मुस्लिम वोटों में किसी तरह का बंटवारा नहीं चाहते। वक्फ कानून के मुद्दे पर वह आक्रामक हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला लंबित होने के बावजूद तेजस्वी इमारत-ए-शरिया की रैली में शामिल हुए और बोले, ‘हमारी सरकार बनी, तो वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे।’
मुसलमानों को लुभाने के लिए NDA ने भी बनाई रणनीति
NDA की ओर से JDU भी मुस्लिम वोटों पर दावेदारी कर रही है। नीतीश कुमार को उम्मीद है कि उनका 20 साल का ट्रैक रिकॉर्ड और नया वक्फ कानून पसमांदा मुस्लिमों को लुभाएगा। बिहार की 17% मुस्लिम आबादी में 10% अति पिछड़े (पसमांदा), 3% पिछड़े और 4% अशराफ मुस्लिम हैं। JDU का दावा है कि नए वक्फ कानून से पसमांदा मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलेगा। हालांकि, JDU के लिए चुनौती यह है कि वक्फ कानून पर पार्टी में बगावत हुई है। कई मुस्लिम नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। 2020 में जदयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन कोई नहीं जीता। 2015 में सात मुस्लिम विधायक जीते थे, जब JDU का गठबंधन RJD के साथ था। नीतीश के मंत्रिमंडल में एकमात्र मुस्लिम मंत्री जमा खान हैं, जो पठान (सवर्ण मुस्लिम) हैं।

बिहार की 17% से ज्यादा आबादी मुस्लिम है।
ओवैसी को महागठबंधन में लेने के पक्ष में नहीं हैं तेजस्वी
AIMIM प्रमुख ओवैसी विपक्षी महागठबंधन में शामिल होने की कोशिश में हैं, लेकिन तेजस्वी इसके लिए तैयार नहीं। नाराज ओवैसी ने तेजस्वी पर निशाना साधा और कहा, ‘RJD में मुस्लिमों की हैसियत चादर बिछाने तक सीमित है। उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिलती।’ ओवैसी वोटर लिस्ट रिवीजन के मुद्दे पर भी मुखर हैं। अगर वह 2020 की तरह इस बार भी RJD के वोट काटने में कामयाब रहे, तो NDA की राह आसान हो सकती है। बीजेपी को यह भी लगता है कि तेजस्वी का मुस्लिम वोटों पर ज्यादा जोर हिंदुओं में काउंटर पोलराइजेशन को बढ़ावा देगा, जिसका फायदा एनडीए को मिलेगा।
बिहार में इस बार चल पाएगा M+Y समीकरण?
बिहार में 14% से ज्यादा यादव और 17.5% से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। दोनों मिलकर 32% वोट बनाते हैं, जो किसी भी गठबंधन के लिए जीत का आधार हो सकता है। 2020 में दोनों गठबंधनों को 38% वोट मिले, जिसमें ‘M+Y’ (मुस्लिम+यादव) का बड़ा योगदान था। तेजस्वी की ताकत यह है कि उनके पास यह 32% वोट एकमुश्त है, लेकिन कमजोरी यह है कि वह इससे आगे के वोटरों को जोड़ नहीं पा रहे। तेजस्वी यादव ‘M+Y’ समीकरण को मजबूत करने में जुटे हैं, लेकिन ओवैसी का दखल और एनडीए की पसमांदा रणनीति उनकी राह में रोड़ा बन सकती है। ऐसे में बिहार की सियासत में मुस्लिम वोट का रिमोट किसके हाथ में होगा, यह तो वक्त बताएगा।
