
दुनिया में हर साल करीब 5 ट्रिलियन प्लास्टिक बैग बनाए जाते हैं।
International Plastic Bag Free Day: लगभग रोज ही हम लोग कुछ न कुछ खरीदने के लिए बाजार जाते हैं और दुकानदार हमें सामान देने के लिए एक प्लास्टिक बैग थमा देता है। ये प्लास्टिक बैग हमारी जिंदगी का इतना आम हिस्सा बन गया है कि हमने कभी सोचा ही नहीं कि ये छोटा सा बैग हमारी धरती और समंदर के लिए कितना बड़ा खतरा बन सकता है। आज, 3 जुलाई 2025 को International Plastic Bag Free Day के मौके पर हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों प्लास्टिक बैग पूरी दुनिया के लिए विलेन बन गए हैं और ये सुविधा अब कैसे आफत का सबब बन चुकी है।
हर मिनट इस्तेमाल होते हैं 10 लाख प्लास्टिक बैग्स
प्लास्टिक बैग की कहानी 1960 के दशक से शुरू होती है, जब स्वीडन की एक कंपनी नेलोप्लास्ट ने पॉलीथीन से बने हल्के, सस्ते और टिकाऊ बैग्स बनाए। उस वक्त ये बैग्स सुविधा का प्रतीक थे। ये कागज के थैलों से सस्ते थे, पानी में खराब नहीं होते थे और इनको बनाना भी काफी आसान था। देखते ही देखते पूरी दुनिया में ये बैग्स छा गए। लेकिन यही सुविधा धीरे-धीरे एक वैश्विक संकट में बदल गई। आज दुनिया में हर साल 5 ट्रिलियन यानी कि 50 खरब से ज्यादा प्लास्टिक बैग्स इस्तेमाल किए जाते हैं। इसका मतलब यह है कि हर मिनट 10 लाख बैग्स का इस्तेमाल होता है। हैरानी की बात ये है कि एक प्लास्टिक बैग का औसत इस्तेमाल सिर्फ 12 मिनट का होता है, लेकिन इसे पूरी तरह नष्ट होने में 100 से 500 साल तक लग सकते हैं।
महज 1-3% प्लास्टिक बैग्स ही होते हैं रिसाइकिल
प्लास्टिक बैग्स का सबसे बड़ा नुकसान पर्यावरण को होता है। ये बैग्स न तो आसानी से गलते हैं और न ही पूरी तरह रिसाइकिल हो पाते हैं। वैश्विक स्तर पर केवल 1-3% प्लास्टिक बैग्स ही रिसाइकिल होते हैं। बाकी या तो लैंडफिल्स में जमा हो जाते हैं या फिर नदियों और समंदर में पहुंचकर तबाही मचाते हैं। हर साल 8 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक समुद्र में पहुंचता है, जिसमें प्लास्टिक बैग्स का बड़ा हिस्सा होता है। ये बैग्स समुद्री जीवों जैसे कछुओं, मछलियों और व्हेल के लिए जानलेवा साबित होते हैं। हर साल 10 लाख से ज्यादा समुद्री जीव प्लास्टिक निगलने या उसमें फंसने की वजह से मर जाते हैं।
प्लास्टिक बैग्स आज पूरी दुनिया में समस्या बन चुके है।
भारत में प्लास्टिक बैग्स की वजह से भारी मुसीबत
भारत में भी प्लास्टिक बैग्स की वजह से हालात चिंताजनक हैं। हमारे शहरों में नालियां और सीवर सिस्टम अक्सर प्लास्टिक बैग्स की वजह से जाम हो जाते हैं। मॉनसून के दौरान मुंबई जैसे शहरों में बाढ़ का एक बड़ा कारण यही प्लास्टिक कचरा है। ये बैग्स बारिश का पानी निकलने से रोकते हैं, जिससे सड़कों पर जलभराव हो जाता है। इसके अलावा, जब सूरज की रोशनी में प्लास्टिक बैग्स टूटते हैं, तो वे माइक्रोप्लास्टिक्स में बदल जाते हैं। ये इतने छोटे कण होते हैं कि मछलियां इन्हें खा लेती हैं, और फिर ये हमारी खाने की थाली तक पहुंच जाते हैं। यानी, प्लास्टिक अब सिर्फ बाहर का नहीं, हमारे शरीर के अंदर का भी खतरा बन चुका है।
खेतों को भी जहरीला बना रहे हैं प्लास्टिक बैग्स
प्लास्टिक बैग्स सिर्फ समुद्र को ही नहीं, बल्कि हमारी मिट्टी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। जब ये बैग्स खेतों या जमीन पर फेंके जाते हैं, तो ये मिट्टी की उर्वरता को कम करते हैं। माइक्रोप्लास्टिक्स मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों को नष्ट करते हैं, जो फसलों के लिए जरूरी हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यह एक गंभीर समस्या है, क्योंकि खेती पर लाखों लोगों की आजीविका टिकी है। इसके अलावा, प्लास्टिक बैग्स जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं, जो हवा को प्रदूषित करती हैं और सांस की बीमारियों को बढ़ावा देती हैं।
हर साल लाखों टन प्लास्टिक समंदर में समा जाता है।
प्लास्टिक बैग्स की वजह से बढ़ा सरकारों का खर्च
प्लास्टिक बैग्स का असर सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है। ये हमारे समाज और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करते हैं। सफाई के लिए सरकारों को हर साल अरबों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। भारत में, नदियों और नालियों की सफाई पर होने वाला खर्च इसका एक उदाहरण है। इसके बावजूद, कचरे का पहाड़ बढ़ता ही जा रहा है। दूसरी तरफ, प्लास्टिक बैग्स का इस्तेमाल कम करने से न सिर्फ पर्यावरण बचेगा, बल्कि जूट और कपड़े के थैलों का कारोबार बढ़ेगा, जिससे स्थानीय कारीगरों और छोटे व्यवसायियों को फायदा होगा।
मुसीबत बढ़ी तो अब उठाए जा रहे हैं बड़े कदम
प्लास्टिक बैग्स की इस आफत को देखते हुए दुनिया भर में कदम उठाए जा रहे हैं। International Plastic Bag Free Day, जो 2008 में स्पेन के कैटेलोनिया में शुरू हुआ, अब 100 से ज्यादा देशों में मनाया जाता है। इस दिन का मकसद लोगों को प्लास्टिक बैग्स की जगह टिकाऊ विकल्प अपनाने के लिए प्रेरित करना है। कई देशों ने सख्त कदम उठाए हैं। मिसाल के तौर पर, बांग्लादेश ने 2022 में सिंगल-यूज प्लास्टिक बैग्स पर पूरी तरह बैन लगा दिया। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और कई अफ्रीकी देशों ने भी प्लास्टिक बैग्स पर प्रतिबंध या टैक्स लगाया है। भारत में भी 2022 से सिंगल-यूज प्लास्टिक पर बैन है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे लागू करना अभी भी एक चुनौती है।
प्लास्टिक की वजह से लाखों पशु-पक्षी वक्त से पहले मारे जाते हैं।
प्लास्टिक बैग्स से निजात पाने के लिए क्या करें?
प्लास्टिक बैग्स से निजात पाने के लिए छोटे-छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं। सबसे आसान तरीका है कपड़े या जूट के थैले इस्तेमाल करना। ये न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छे हैं, बल्कि टिकाऊ और स्टाइलिश भी हैं। आप पुराने कपड़ों से घर पर भी थैला बना सकते हैं। इसके अलावा, दुकानदारों को प्लास्टिक बैग्स देने से मना करें और अपने थैले साथ ले जाएं। स्कूलों और मोहल्लों में जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को प्रेरित करें। इन छोटे-छोटे कदमों से धीरे-धीरे इस बड़े संकट से निजात पाने में मदद मिल सकती है।