
आतंकी संगठन अल-कायदा
Al-Qaeda: पश्चिमी अफ्रीका के रेगिस्तानी देश माली की धूल भरी सड़कों पर उस वक्त सनसनी फैल गई, जब अल-कायदा के आतंकियों ने एक सीमेंट फैक्ट्री से तीन भारतीय मजदूरों को अगवा कर लिया। गुरुवार को जब अधिकारियों ने उस खबर पर मुहर लगाई तो दुनिया भर में हलचल मच गई। माली, जहां आतंक का साया लंबे समय से मंडराता रहा है, वहां पहली बार भारतीयों को निशाना बनाया गया। यह घटना ना केवल भारत के लिए चिंता का सबब है बल्कि कई सवालों को भी जन्म देती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इतने सालों की वैश्विक कोशिशों के बाद भी अल-कायदा कैसे जिंदा है? आइए, इस आतंकी संगठन की कहानी को को जानते हैं, जो कभी अफगानिस्तान की गलियों से शुरू हुई थी और अब माली की रेत में अपनी छाप छोड़ रही है।
कैसे पड़ी अल-कायदा की नींव
कहानी शुरू होती है 1980 के दशक में, जब अफगानिस्तान की पहाड़ियों में सोवियत टैंकों की गड़गड़ाहट गूंज रही थी। पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका, सोवियत के खिलाफ जिहाद के नाम पर मुस्लिम युवाओं को हथियार और ट्रेनिंग दे रहे थे। सऊदी अरब से आए एक युवा, ओसामा बिन लादेन, ने इस जंग में ना सिर्फ पैसा लगाया, बल्कि खुद हथियार भी उठा लिए। 1988 में उसने एक नेटवर्क बनाया, जिसे नाम दिया गया अल-कायदा, यानी “नींव”, इसका मकसद था दुनिया भर के मुस्लिमों को एकजुट कर अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ वैश्विक जिहाद छेड़ना
9/11 हमला कर अल-कायदा ने दुनिया को हिला दिया
1989 में जब सोवियत सेना अफगानिस्तान से रुखसत हुई, तो अल-कायदा का निशाना बदल गया। अब उसका दुश्मन था अमेरिका। 2001 का 9/11 हमला इसकी सबसे खौफनाक करतूत थी, जिसने दुनिया को हिलाकर रख दिया। लेकिन, इसके बाद अमेरिका ने अल-कायदा को कुचलने की ठान ली। दो दशकों की सैन्य कार्रवाइयों के बावजूद यह संगठन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। यह बस बिखर गया और अब माली जैसे देशों में अपनी नई जमीन तलाश रहा है।

ओसामा बिन लादेन (लाल घेरे में)
माली में आतंक का नया ठिकाना
माली की सीमेंट फैक्ट्री में काम करने वाले भारतीय मजदूरों का अपहरण कोई साधारण घटना नहीं है। यह अल-कायदा के नए चेहरे का सबूत है। अब यह संगठन अफगानिस्तान की बजाय एक छायावी नेटवर्क की तरह काम करता है। माली में सक्रिय अल-कायदा इन द इस्लामिक मगरिब (AQIM) ने इस अपहरण को अंजाम दिया है। यह गुट स्थानीय आतंकी संगठनों के साथ मिलकर काम करता है, ताकि उसे नई जमीन तलाशने की जरूरत ना पड़े। माली जैसे देश, जहां सरकार की पकड़ ढीली है और अराजकता का माहौल है, यह आतंकियों के फलने-फूलने के लिए एक परफेक्ट इकोसिस्टम बनाते हैं।
अल-कायदा का बदलता चेहरा
पहले अल-कायदा का ढांचा सख्त और केंद्रित था। यह छोटे-छोटे समूहों के जरिए दुनिया भर में फैला हुआ था, जो एक-दूसरे से जुड़े रहते थे। 9/11 के बाद अमेरिका की सैन्य कार्रवाइयों ने इसके केंद्रीय ढांचे को तोड़ दिया। अब यह एक विकेंद्रित मॉडल पर काम करता है, जिसमें यह स्थानीय आतंकी समूहों के साथ गठजोड़ करता है। माली में AQIM इसका जीता-जागता उदाहरण है। अल-कायदा अब फिरौती, ड्रग्स तस्करी और हथियारों की स्मगलिंग जैसे अवैध धंधों से अपनी फंडिंग करता है। खाड़ी देशों में इसके कुछ समर्थक अब भी गुप्त रूप से चंदा देते हैं, लेकिन यह पहले जितना खुला नहीं है। फर्जी चैरिटी संगठनों के जरिए भी यह फंडिंग जुटाता है, जो जिहाद के नाम पर लोगों को लुभाते हैं।
मुस्लिम देशों का मिलता रहा समर्थन?
नब्बे के दशक में अल-कायदा को कई मुस्लिम देशों से गुप्त समर्थन मिलता था, खासकर उन देशों से जो अमेरिका और इजरायल के खिलाफ थे। लेकिन 9/11 के बाद इसकी छवि को बड़ा झटका लगा। फिर भी, कुछ देशों में इसके नेताओं को पनाह मिलती रही। एक चौंकाने वाला उदाहरण है ईरान। शिया बहुल यह देश और सुन्नी कट्टरपंथी अल-कायदा के बीच कोई वैचारिक मेल नहीं, फिर भी 9/11 के बाद कुछ अल-कायदा नेताओं को वहां शरण मिलने की खबरें आईं। अमेरिकी और इजरायली खुफिया एजेंसियों का दावा है कि यह सब अमेरिका के खिलाफ ईरान की रणनीति का हिस्सा था।
इस्लामिक स्टेट: अल-कायदा का प्रतिद्वंद्वी
2014 में इस्लामिक स्टेट (ISIS) के उभार ने अल-कायदा को पीछे धकेल दिया था। ISIS ने डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल कर दुनिया भर के युवाओं को बहलाया-फुसलाया और सीरिया-इराक में बड़े इलाकों पर कब्जा कर लिया। इस दौरान अल-कायदा का प्रभाव कम हुआ, लेकिन जब अमेरिकी कार्रवाइयों ने ISIS को कमजोर किया, तो अल-कायदा ने मौके का फायदा उठाया। यह फिर से अपनी जड़ें मजबूत करने में जुट गया। दोनों संगठनों के बीच कई बार टकराव भी हुआ, लेकिन अल-कायदा ने अपनी रणनीति को और चालाकी से लागू किया।

Al Qaeda
डिजिटल युग में अल-कायदा की भर्ती
आज का अल-कायदा इंटरनेट का चतुराई से इस्तेमाल करता है। यूट्यूब, टेलीग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म्स के जरिए यह युवाओं को वैश्विक जिहाद का सपना दिखाता है। गोपनीयता बनाए रखते हुए यह अपने नेटवर्क को फैलाता है। यह युवाओं को ऐसी विचारधारा से जोड़ता है, जो उन्हें हकीकत से काट देती है। यह सपना इतना आकर्षक होता है कि कई युवा इसके जाल में फंस जाते हैं।
भारत के लिए सबक और भविष्य की राह
माली में भारतीय मजदूरों का अपहरण भारत के लिए एक चेतावनी है। यह दिखाता है कि आतंकी संगठन अब भारत को भी निशाना बना सकते हैं। माली जैसे अस्थिर देशों में काम करने वाले भारतीयों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। भारतीय दूतावासों और सरकार को स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर ऐसी घटनाओं को रोकने की रणनीति बनानी होगी। साथ ही, वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को और मजबूत करना होगा।
एक साया जो नहीं मिटता
अल-कायदा का आतंक भले ही पुराने रंग में ना हो, लेकिन यह आज भी जिंदा है। यह समय के साथ अपना रंग बदलता रहता है, कभी अफगानिस्तान की पहाड़ियों में, कभी यमन की गलियों में और अब माली की रेत में। यह संगठन अभी भी वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है।
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