
सुशील कुमार
हिंदी सिनेमा में 60 के दशक में एक नए चेहरे की एंट्री हुई जो अपनी सादगी भरी शख्सियत से सबके दिलों में बस गया। वह कोई और नहीं बल्कि सुशील कुमार थे। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले इस हीरो की लाइफ काफी प्रेरणादायक है। वह ‘धूल का फूल’, ‘काला बाजार’ और ‘दोस्ती’ जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। एक्टर की किस्मत तब चमकी जब उन्हें राजश्री प्रोडक्शंस से तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट ऑफर हुआ और उस वक्त इस प्रोडक्शन हाउस के साथ काम करना कई बड़े-बड़े स्टार्स का भी सपना हुआ करता था। सुशील कुमार का फिल्मी करियर किसी मूवी की दिलचस्प कहानी से कम नहीं है।
मजबूरी में बना हीरो
कराची के सिंधी परिवार में जन्में सुशील बंटवारे के बाद परिवार संग भारत आ गए थे। उनके परिवार ने बिजनेस किया, लेकिन कुछ खास नहीं चल सका। इसके बाद 1953 में वह मुंबई के माहिम इलाके में रहने लगे। यहां उनके दादा जी को बिजनेस में बहुत बड़ा घाटा हुआ और वह दिवालिया हो गए। आर्थिक तंगी से परेशान एक्टर का पूरा परिवार मुंबई की चॉल में रहने लगा। उनका असली संघर्ष तब शुरू हुआ जब सुशील कुमार के पिता और दादा दोनों की मौत हो गई। आर्थिक तंगी के चलते उनकी मां ने उन्हें फिल्मों में काम करने को कहा। मजबूर में उन्होंने ये काम शुरू किया और बाद में 1 रोल से स्टार बन गए। सुशील कुमार बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट ‘फिर सुबह होगी’, ‘काला बाजार’, ‘धूल का फूल’, ‘मैंने जीना सीख लिया’, ‘श्रीमान सत्यवादी’, ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’, ‘संजोग’, ‘एक लड़की सात लड़के’, ‘फूल बने अंगारे’ और ‘सहेली’ जैसी फिल्मों में नजर आए।
एक फिल्म ने बना दिया रातोंरात स्टार
राजश्री प्रोडक्शंस के मालिक ताराचंद बड़जात्या ने बंगाली फिल्म ‘लालू-भुलू’ की हिंदी रीमेक में सुशील कुमार को कास्ट किया, जिसका नाम ‘दोस्ती’ रखा गया। इसमें सुशील कुमार के साथ सुधीर कुमार भी दिखाई दिए। ‘दोस्ती’ उस वक्त की सुपरहिट फिल्मों में से एक रही है। इस फिल्म ने उन्हें फिल्मी दुनिया में जबरदस्त नेम-फेम दिलाया। शोहरत कमाने के बावजूद सुशील ने फिल्मों को धीरे-धीरे अलविदा दिया और अपनी पढ़ाई पूरी की, जिसके बाद उन्हें एयर इंडिया में फ्लाइट परसर की नौकरी मिल गई। सुशील कुमार ने 2014 में रेडियो कार्यक्रम ‘सुहाना सफर विद अन्नू कपूर’ में अपनी जिंदगी की ये कहानी बताई थी।