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दलाई लामा के चुनाव की अनोखी परंपरा है। वर्तमान तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक प्रमुख दलाई लामा ने पुष्टि की है कि दुनिया को अगला दलाई लामा मिलेगा और उनकी पुनर्जन्म की परंपरा जारी रहेगी।

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तिब्बती बौद्धों का मानना है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म उनकी आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए होता है।

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दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनना तिब्बती बौद्ध धर्म की एक अनोखी और पवित्र परंपरा है, जो पुनर्जन्म, आध्यात्मिक संकेतों और कठिन परीक्षणों पर आधारित है।

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दलाई लामा अपनी मृत्यु से पहले कुछ संकेत देते हैं और उनकी मौत के 9 महीने बाद जन्मे खास बच्चे को खोजा जाता है और फिर उसे पुराने दलाई लामा की कुछ चीजें दिखाई जाती है, इसे पहचानने वाला बच्चा ही नया दलाई लामा बनता है।

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बच्चे के नए दलाई लामा बनने के बाद उसे शिक्षा दी जाती है और उसकी परीक्षा ली जाती है। इस कठिन परीक्षा के सभी पड़ावों को पार करने के बाद ही उसके दलाई लामा होने का ऐलान किया जाता है।

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तिब्बत में मान्यता है कि दलाई लामा दोबारा जन्म लेकर नया रूप धारण करते हैं और फिर अपना पद संभालते हैं।

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वर्तमान दलाई लामा का असली नाम तेनजिन ग्यात्सो है, जिनकी पहचान 2 साल की उम्र में अगले दलाई लामा के तौर पर की गई थी और 4 साल की उम्र में उन्हें ल्हासा लाया गया था।

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चीन का कहना है कि 15वें दलाई लामा का चयन ‘स्वर्ण कलश’ परंपरा से ही होना चाहिए, तो ऐसे में लोगों के मन में सवाल है कि स्वर्ण कलश परंपरा क्या है?

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दलाई लामा के चुनाव की कलश विधि की शुरुआत 1792 में किंग राजवंश के दौरान हुई थी। जिन बच्चों को दलाई लामा का पुनर्जन्म माना जाता है, उन्हें अधिकृत मंदिरों द्वारा नामित किया जाना चाहिए, जिसके बाद कलश से उनका नाम निकालकर ऐलान किया जाता है।

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बता दें कि 14वें दलाई लामा का चुनाव स्वर्ण कलश विधि से नहीं किया गया था। यह परंपरा 1792 से शुरू की गई थी, जबकि दलाई लामा की परंपरा 1587 से चली आ रही है।