
मानसून की बदली चाल
अगर आप ध्यान दें तो बीते कुछ वर्षों में बारिश, बाढ़, लैंडस्लाइड और बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। कभी तेज धूप और कभी अचानक तेज बारिश, पहाड़ी इलाकों में तो ये स्थिति चिंता का सबब बनती जा रही है। प्रकृति में ये परिवर्तन इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत में मानसून के पैटर्न में लगातार बदलाव हो रहे हैं और ये बदलाव मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे हैं। इस परिवर्तन की वजह से बारिश के पैटर्न में अनियमितता आ रही है, जिसमें बारिश की देरी से शुरुआत, बार बार सूखा और अचानक तीव्र बारिश जैसे कई कारक शामिल हैं।
मानसून ने बदली है अपनी चाल
बता दें कि इस साल 20 जून को मानसून की शुरुआत के बाद से पांच जुलाई तक बारिश से जुड़ी घटनाओं में कम से कम 47 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 31 लोगों की मौत बादल फटने, अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन में हुई या वे बारिश के तेज बहाव में डूब गए। इससे पहले साल 2023 की बाढ़ के दौरान हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं में करीब 550 लोगों की जान चली गई थी। इसे लेकर पर्यावरण वैज्ञानिक सुरेश अत्री ने कहा, ‘‘हमें अपने वर्षा पैटर्न को समझना और उसका विश्लेषण करना चाहिए क्योंकि यह हमारी कृषि, बागवानी और जल प्रणाली को प्रभावित करता है।’’
मानसून की बदली चाल
सुरेश अत्री का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन हो रहा है, जिससे लगातार बादल फटने, अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन की घटनाएं सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा कि पहाड़ी इलाके में चल रहे निर्माण कार्य को लेकर हिमाचल जैसी जगहों में सावधानी बरतनी चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत के पहाड़ी इलाकों में तापमान में वृद्धि हुई है। इसकी वजह से कम बर्फबारी, बसंत ऋतु की अवधि का घटना, मई-जून के दौरान बारिश, नमी और आर्द्रता के कारण भारी बारिश से बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटाव, बादल फटने, अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है।
मानसून की बदली चाल
कैसे बदल रहा है मानसून पैटर्न
- अब मानसून की शुरुआत में अक्सर देरी होती है, कभी-कभी जुलाई तक ठीक से शुरू नहीं होती और मानसून अक्सर सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत तक रहता है।
- परंपरागत रूप से मानसून से समृद्ध क्षेत्रों में बारिश में कमी आ रही है, जबकि सूखे क्षेत्रों में वृद्धि देखी जा रही है। लगातार सूखा पड़ने के साथ-साथ अधिक तीव्र बारिश की ओर बदलाव हो रहा है।
- बादलों के पैटर्न बदल रहे हैं, गहरे संवहनीय बादलों के ऊपरी हिस्से ऊपर उठ रहे हैं, जिससे अधिक तीव्र वर्षा हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत और तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- इन परिवर्तनों में तापमान में वृद्धि और वायुमंडलीय परिसंचरण पैटर्न में बदलाव जैसे कारक भूमिका निभाते हैं।
- हिंद महासागर और आर्कटिक में समुद्री सतह के तापमान में परिवर्तन भी मानसून के पैटर्न को प्रभावित करते हैं।
- देरी से आने वाले पश्चिमी विक्षोभ भी मानसून की अनियमित प्रकृति में योगदान कर सकते हैं।
- बदलते मानसून पैटर्न कृषि और जल प्रबंधन के लिए चुनौतियां पेश करते हैं।
- बारिश कम होने से सूखा पड़ सकता है, जबकि अधिक वर्षा की तीव्रता से बाढ़ आ सकती है।
- अनियमित वर्षा फसल चक्र को बाधित कर सकती है और कृषि और आम जन दोनों के लिए पानी की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है।
- मानसून अधिक अप्रत्याशित और चरम होता जा रहा है, जिसके लिए तत्काल शमन उपायों और दीर्घकालिक अनुकूलन रणनीतियों दोनों की आवश्यकता है।
मानसून की बदली चाल
बाढ़, बारिश और लैंडस्लाइड से कैसे निपटना होगा
भारत मौसम विज्ञान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में और तेजी से वृद्धि होगी और लोगों को प्रकृति को बचाने के लिए जागरूक और संवेदनशील होना पड़ेगा।