बिहार में वोटर वेरिफिकेशन पर इतना घमासान क्यों? विपक्ष क्यों मचा रहा बवाल?


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विपक्षी दल चुनाव आयोग की प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं।

Bihar Election News: बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और इस बीच वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सियासी तूफान खड़ा हो गया है। विपक्ष इसे ‘वोटबंदी’ का नाम दे रहा है, तो सत्तापक्ष और चुनाव आयोग इसे एक आम प्रक्रिया बता रहे हैं। आखिर ये बवाल क्यों मचा है? विपक्ष इसका इतना विरोध क्यों कर रहा है? आखिर वोटर वेरिफिकेशन में ऐसा क्या है जिससे विपक्ष बवाल मचाए हुए है? आइए, इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं।

क्या है वोटर वेरिफिकेशन का मसला?

चुनाव आयोग हर बड़े चुनाव से पहले मतदाता सूची को अपडेट करता है ताकि फर्जी वोटरों के नाम हटाए जा सकें और नए, योग्य मतदाताओं को जोड़ा जा सके। बिहार में इस बार विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) चल रहा है, जिसमें 7.89 करोड़ मतदाताओं की सूची की गहन जांच हो रही है। इसके लिए हर वोटर से पहचान और पते के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जैसे आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, माता-पिता के जन्म से जुड़े कागजात, या 1987 से पहले के राशन कार्ड और जमीन के दस्तावेज। चुनाव आयोग का कहना है कि 22 साल बाद हो रही ये प्रक्रिया मतदाता सूची को ‘शुद्ध’ करने के लिए जरूरी है। लेकिन विपक्ष इसे लोकतंत्र के खिलाफ साजिश बता रहा है।

विपक्ष क्यों मचा रहा है बवाल?

RJD, कांग्रेस, और AIMIM जैसे दल इस प्रक्रिया को लेकर भड़के हुए हैं। उनके कुछ अहम सवाल और शिकायतें हैं:

  1. समय की कमी: बिहार में चुनाव कुछ ही महीनों में हैं। इतने कम वक्त में 8 करोड़ लोगों के दस्तावेज जमा करवाना और उनकी जांच करना मुश्किल लगता है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे “वोटबंदी” का नाम दिया और कहा कि ये गरीब, दलित, पिछड़े, और अल्पसंख्यक वोटरों को वोट देने से रोकने की चाल है।
  2. दस्तावेजों की सख्ती: विपक्ष का कहना है कि 1987 से पहले के कागजात या माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज ज्यादातर गरीब और ग्रामीण लोगों के पास नहीं होते। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसे नागरिकता साबित करने जैसा कदम बताया, जिससे अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को निशाना बनाया जा सकता है।
  3. चुनाव आयोग पर शक: तेजस्वी ने आरोप लगाया कि आयोग के नियम बार-बार बदल रहे हैं। पहले कहा गया कि दस्तावेज बाद में जमा किए जा सकते हैं, फिर 25 जुलाई की डेडलाइन थोप दी गई। इससे लोग भ्रमित हैं। विपक्ष को लगता है कि ये प्रक्रिया BJP और NDA को फायदा पहुंचाने के लिए है।
  4. वोटरों के हटने का डर: विपक्ष का दावा है कि इस प्रक्रिया से 2 से 4 करोड़ वोटरों के नाम हट सकते हैं, खासकर दलित, OBC, और अल्पसंख्यक समुदायों के। तेजस्वी ने इसे सत्ता पक्ष की साजिश बताया है।

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बिहार में विपक्षी पार्टियों ने चक्काजाम का आवाह्न किया है।

आरोपों पर चुनाव आयोग का जवाब

चुनाव आयोग ने इन तमाम आरोपों को खारिज किया है। आयोग का कहना है कि SIR एक नियमित प्रक्रिया है, जो हर बड़े चुनाव से पहले होती है। इसका मकसद फर्जी वोटरों को हटाना और मतदाता सूची को पारदर्शी बनाना है। आयोग ने साफ किया कि 24 जून को जारी दिशा-निर्देशों में कोई बदलाव नहीं हुआ, और ये प्रक्रिया पूरी तरह सर्वसमावेशी है। चुनाव आयोग का कहना है कि बिहार में कोई भी योग्य वोटर छूटेगा नहीं।

प्रक्रिया को सही ठहरा रहे NDA के नेता

NDA के नेता इस प्रक्रिया को सही ठहरा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि फर्जी वोटरों को हटाने से डर केवल ‘गलत’ लोगों को है। उनका दावा है कि कुछ इलाकों में 25-30 हजार फर्जी वोटर हैं। BJP का कहना है कि विपक्ष को साफ-सुथरी मतदाता सूची से परेशानी है, क्योंकि उनके ‘फर्जी वोटर’ हट जाएंगे। वहीं, विपक्ष इस मुद्दे को जनता तक ले जा रहा है और चक्का जाम एवं प्रदर्शनों के जरिए जनता को ये समझाने की कोशिश कर रहा है कि ये प्रक्रिया उनके वोट के हक को छीन सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में 10 जुलाई को होगी सुनवाई

विपक्ष ने इस मसले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाकर दांव खेला है। कपिल सिब्बल, महुआ मोइत्रा, और योगेंद्र यादव जैसे नेताओं ने याचिकाएं दायर की हैं, जिन पर 10 जुलाई 2025 को सुनवाई होगी। विपक्ष चाहता है कि इस प्रक्रिया को तुरंत रोका जाए और इसे चुनाव के बाद किया जाए। दूसरी तरफ, वकील अश्विनी उपाध्याय ने पूरे देश में ऐसी ही जांच की मांग वाली एक याचिका दायर की है, जिससे मामला और पेचीदा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मसले में अहम होगा। अगर कोर्ट ने प्रक्रिया पर रोक लगाई, तो यह विपक्ष की बड़ी जीत होगी। अगर प्रक्रिया जारी रही, तो बिहार का सियासी माहौल और गर्माएगा।





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