
महाराष्ट्र में आएगा जनसुरक्षा विधेयक।
महाराष्ट्र सरकार आज विधानसभा में जनसुरक्षा विधेयक पेश करने वाली है। जनसुरक्षा विधेयक पर चर्चा करने के लिए दोनों सदनों के सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति के अध्यक्ष और राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले विधानसभा में आज इस समिति की रिपोर्ट साझा करेंगे। आपको बता दें कि महाविकास अघाड़ी विशेष जनसुरक्षा कानून का विरोध कर रही है। आइए जानते हैं कि ये कानून क्या है और इसमें क्या कुछ खास होने वाला है।
क्या है जनसुरक्षा कानून?
आपको बता दें कि जनसुरक्षा कानून (PSA) एक गैर जमानती और रोकथामात्मक (Non bailable & preventive) कानून है। इस कानून के तहत यदि सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, तो उस व्यक्ति को बिना किसी आरोप के तुरंत हिरासत में लिया जा सकता है।
महाराष्ट्र में विशेष जनसुरक्षा कानून की जरूरत क्यों आई?
दरअसल, यह जनसुरक्षा अधिनियम और इसके तहत बनने वाला कानून मुख्य रूप से आंतरिक सुरक्षा से संबंधित है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य नक्सलवादी/माओवादी और अन्य आंतिरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनने वाले संगठनों और व्यक्तियों पर कार्रवाई करना है। देश के कुछ नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले से ही ऐसा विशेष कानून मौजूद है। लेकिन महाराष्ट्र में ऐसे कानून की गैरमौजूदगी के कारण पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को केंद्र सरकार के कानून जैसे UAPA का सहारा लेना पड़ता है। इस केंद्रीय कानून के तहत कार्रवाई करते समय कई बार प्रशासनिक दिक्कतें और पूर्व अनुमति की बाधाएं आती है। महाराष्ट्र में अपना स्वतंत्र कानून बनाने की मांग कई वर्षों से हो रही है। राज्य सरकार की दलील है कि राज्य की आंतरिक सुरक्षा के लिए यह एक प्रभावशाली कानून होगा।
इस कानून में क्या-क्या प्रावधान हो सकतें हैं?
- राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा बनने वाले किसी भी संगठन को गैरकानूनी घोषित किया जा सकता है।
- संगठन का कार्यालय, परिसर, संपत्ति जब्त की जा सकती है।
- गैरकानूनी घोषित किए गए संगठन के बैंक खातों को सील किया जा सकेगा।
- यदि प्रतिबंधित संगठन के पदाधिकारी या कार्यकर्ता किसी नए नाम से वहीं कार्य करते हैं, तो नया संगठन भी मूल प्रतिबंधित संगठन का ही हिस्सा माना जाएगा और वह भी अवैध घोषित किया जा सकेगा।
- डीआईजी रैंक के अधिकारी की अनुमति से ही एफआईआर दर्ज की जा सकेगी।
- जांच केवल पुलिस उपनिरीक्षक (Sub Inspector) या उससे उच्च पदस्थ अधिकारी द्वारा की जाएगी।
- अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADG) स्तर के अधिकारी की अनुमति से ही आरोप पत्र दाखिल किया जा सकेगा।
- इससे कानून के दुरुपयोग की आशंका को रोका गया है।
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