
शुभांशु शुक्ला और उनके साथ टीम।
भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ISS में 18 दिन बिताने के बाद आज पृथ्वी पर लौट रहे हैं। शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में सवार है। स्पेसक्राफ्ट करीब 23 घंटे का सफर करके आज दोपहर 3 बजकर 1 मिनट पर कैलिफोर्निया के तट के पास समुद्र में स्प्लैशडाउन करेगा। जिस वक्त स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करेगा, उसका तापमान 1600 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। इसके बाद दो चरणों में पैराशूट खुलेंगे। पहले 5.7 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्टेबलाइजिंग शूट्स और फिर लगभग दो किमी पर मेन पैराशूट खुलेंगे, जिससे स्पेसक्राफ्ट की सुरक्षित लैंडिंग संभव होगी।
कैसे होगा डी-आर्बिट बर्न प्रोसेस
शुभांशु का स्पेसक्राफ्ट 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा चैलेंज स्पेसक्राफ्ट के स्प्लैशउाउन से 54 मिनट पहले किया जाने वाला डी-आर्बिट बर्न प्रोसेज है। दरअसल, जैसे ही स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तब उस वक्त स्पेसक्राफ्ट की ज्यादा स्पीड और वायुमंडल में मौजूद हवा से घर्षण उत्पन्न होता है। ऐसी स्थिति में टेंपरेचर 1600 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा पहुंच जाता है और ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में मौजूद ट्रंक जलने लगता है, जो एक आग के गोले की तरह दिखता है। इस दौरान थ्रस्टर के जरिए स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को कम किया जाता है। इस प्रक्रिया को ही ‘डी-ऑर्बिट बर्न’ कहते हैं। इसकी स्पीड को घटाकर 24 किलोमीटर प्रति घंटे तक लाया जाता है। इस दौरान स्पेसक्राफ्ट में मौजूद एस्ट्रोनॉटस स्पेस शूट पहने होते हैं और जिस कैप्सूल में वो बैठे होते हैं वहां का टेंपरेचर 29 से 30 डिग्री ही होता है।
किस समय क्या-क्या किया जाएगा
डी-ऑर्बिट बर्न से लेकर स्प्लैशडाउन तक की पूरी प्रक्रिया पहले से तय होती है। जैसे स्प्लैशडाउन से 54 मिनट पहले यानि दोपहर 02 बजकर 7 मिनट पर डी-आर्बिट बर्न होगा। उसके बाद दोपहर 02 बजकर 26 मिनट पर ट्रंक वाला हिस्सा अलग हो जाएगा। 4 मिनट बाद यानि दोपहर 02 बजकर 30 मिनट पर नोजकोन बंद हो जाएगा और जब पृथ्वी से 6 किलोमीटर की ऊंचाई बच जाएगी यानि दोपहर 02 बजकर 57 बजे मिनट पर तो स्टेबलाइजिंग शूट्स खुल जाएंगे। एक मिनट बाद दोपहर 02 बजकर 58 बजे मिनट पर मेन पैराशूट खुल जाएगा, जिसके बाद कैप्सूल स्थिर हो जाएगा और दोपहर 3 बजकर 1 मिनट पर कैलिफोर्निया तट पर समंदर में कैप्सूल की स्प्लैशलैंडिंग होगी।
समंदर में उतरेगा स्पेसक्राफ्ट
दरअसल, कैप्सूल में लगे पैराशूट, कैप्सूल की रफ्तार को कम कर देते हैं। ये रफ्तार घटकर 24 किमी प्रति घंटे तक आ जाती है। इसी रफ्तार से कैप्सूल समंदर में उतरता है। यही प्रक्रिया स्प्लैशडाउन कहलाती है। जैसे ही कैप्सूल समंदर में उतरता है, उस वक्त अंतरिक्ष यात्री कैप्सूल के अंदर ही बैठे रहते हैं, लेकिन समंदर में पहले से मौजूद ग्राउंड टीम बड़े बोट की मदद से कैप्सूल तक पहुंचते हैं। फिर कैप्सूल को समंदर से बाहर निकालते हैं और कैप्सूल का नोज खोला जाता है फिर उसमें बैठे एस्ट्रोनॉट्स को बाहर निकाला जाता है। इसके बाद उन्हें आइसोलेशन सेंटर तक ले जाया जाता है।