भारत-चीन-रूस के त्रिपक्षीय संगठन से NATO से US तक क्यों मच सकती है खलबली, किसे है “वर्ल्ड ऑर्डर” बदलने का खतरा?


रूस के राष्ट्रपति पुतिन (बाएं), पीएम मोदी (बीच में) और चीन के प्रेसिडेंट शी जिनपिंग।
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रूस के राष्ट्रपति पुतिन (बाएं), पीएम मोदी (बीच में) और चीन के प्रेसिडेंट शी जिनपिंग।

नई दिल्लीः भारत-चीन-रूस के त्रिपक्षीय संवाद को फिर से एक्टिव करने के प्रयासों के बीच दुनिया वर्ल्ड ऑर्डर के मामले में कई ध्रुवों में बंट सकती है। भारत-रूस-चीन (RIC) संगठन को पुनर्जीवित करने के लिए सबसे पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पहल की। इसके बाद चीन ने भी इसे अपना समर्थन दे दिया है। अब दोनों देशों को भारत का इंतजार है। मगर दोनों देश क्यों भारत के साथ इस संगठन को फिर से एक्टिवेट करना चाहते हैं। इस संगठन के पुनः एक्टिवेट होने से उत्तर अटलांटिक सहयोग संगठन (नाटो) और अमेरिका को क्या टेंशन हो सकती है?..आइये पूरा मामला जानते हैं।

बीजिंग ने किया रूस का समर्थन

पुतिन के इस प्रस्ताव का बीजिंग ने पूरा समर्थन कियाय है। बीजिंग ने रूस‑भारत‑चीन (RIC) त्रिपक्षीय संवाद को पुनर्जीवित करने का स्पष्ट रुख अपनाया है। चीन ने कहा कि यह सहयोग न सिर्फ इन तीनों देशों के हितों को सर्विस देता है, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक शांति, सुरक्षा, स्थिरता और प्रगति को भी मजबूत करता है। यह संगठन तीनों ही देशों के हित में है। इसलिए चीन इस त्रिपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए रूस और भारत के साथ संवाद बनाए रखने के लिए तैयार है। वहीं भारत इसे लेकर कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता। 

रूस ने भारत और चीन के साथ शुरू की वार्ता

रूस के उप विदेश मंत्री आंद्रेई रूडेंको के अनुसार मॉस्को इस मुद्दे पर बीजिंग और नई दिल्ली के साथ बातचीत कर रहा है और चाहता है कि RIC फॉर्मेट अक्‍सर फिर से सक्रिय रूप से काम करे। क्योंकि ये तीनों BRICS के संस्थापक सदस्य हैं और महत्वपूर्ण साझेदार हैं। इस पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन् जिआन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, “चीन‑रूस‑भारत सहयोग न केवल तीनों देशों के हितों की पूर्ति करता है, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक शांति, सुरक्षा, स्थिरता और प्रगति में भी योगदान देता है। चीन, त्रिपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के संदर्भ में रूस और भारत के साथ संवाद बनाए रखने के लिए तैयार है।” वहीं भारत ने कह दिया है कि इस प्रारूप को फिर से शुरू करने का निर्णय “सभी पक्षों के अनुकूल समय और सुविधा” पर आधारित होगा।

RIC से पश्चिम को क्या है खतरा?

 रूस के हिसाब से RIC Eurasian महाद्वीप में एक समतुल्य सुरक्षा और सहयोग ढांचा बन सकता है, जो पश्चिमी गुटों के दबाव के समय में सामरिक संतुलन स्थापित कर सकता है। इसमें भले ही तीन देश हैं, लेकिन तीन देश महाशक्तिशाली होने के नाते वह नाटो जैसे ताकतवर हो सकते हैं। इसलिए नाटो और अमेरिका को इस संगठन से चिंता हो सकती है। अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि यह संगठन फिर से जीवंत हो। इस कदम से एशिया‑प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक स्थितियों और वैश्विक सत्ता संतुलन में बदलाव के बीच तीनों देशों में संवाद फिर से जीवंत हो सकता है।

अमेरिका को सबसे ज्यादा टेंशन

इस संगठन के पुनर्जीवित होने से सबसे ज्यादा टेंशन अमेरिका को हो सकती है। क्योंकि चीन के साथ प्रबल प्रतिद्वंदिता के चलते उसे भारत को साध कर चलना जरूरी है। मगर अमेरिका का लगाव इस दौरान पाकिस्तान के साथ अधिक होने से भारत भी उसे ट्रेलर दे रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि RIC के पुनर्जीवित होने के खतरे को भांप कर ही अमेरिका ने पहलगाम आतंकी हमले के जिम्मेदार टीआरएफ को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित कर दिया है। ताकि भारत अमेरिका के पाले से खिसक न जाए। 

वर्ल्ड ऑर्डर बदलने की चिंता

अमेरिका के अलावा नाटो समेत अन्य पश्चिमी देशों को इस संगठन के फिर से एक्टिव होने पर वर्ल्ड ऑर्डर बदलने की चिंता सता सकती है। क्योंकि तीनों ही यूरेशिया के ताकतवर देश हैं। इनमें भारत दुनिया के विभिन्न महाद्वीपों के बीच रिश्ते संतुलित करने और भरोसेमंद देश माना जाता है। ऐसे में भारत रूस और चीन के साथ मिलकर वर्ल्ड ऑर्डर को चेंज कर सकता है। इससे दुनिया के तमाम देश विवादों समेत अन्य वैश्विक समाधान के लिए नाटो और अमेरिका के बजाय RIC की ओर रुख कर सकते हैं। इससे अमेरिका को अपनी बादशाहत मंद होने का खतरा होगा। 

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