
संसद में शून्य काल की प्रक्रिया 1960 के दशक में शुरू हुई थी।
Zero Hour Explained: भारतीय संसद में ‘शून्य काल’ यानी कि Zero Hour एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सांसदों को जनहित के जरूरी मुद्दों को तत्काल उठाने का मौका देता है। यह संसद की कार्यवाही का वह समय है जो ‘प्रश्न काल’ (Question Hour) के ठीक बाद शुरू होता है और दिन के नियमित एजेंडा शुरू होने से पहले होता है। संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो रहा है ऐसे में यह शब्द एक बार फिर चर्चा में आने वाला है। आज हम आपको ‘Zero Hour’ से जुड़ी हर जानकारी विस्तार से देने जा रहे हैं।
क्या होता है जीरो आवर?
जीरो आवर या शून्य काल भारतीय संसद की एक अनौपचारिक व्यवस्था है, जो 1962 में शुरू हुई। यह संसद के नियम पुस्तिका (Rules of Procedure) में दर्ज नहीं है, लेकिन यह सांसदों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। इस दौरान सांसद बिना पहले से 10 दिन की नोटिस दिए जनता से जुड़े जरूरी और तत्काल मुद्दों को उठा सकते हैं। बता दें कि आमतौर पर संसद में किसी मुद्दे को उठाने के लिए 10 दिन पहले नोटिस देना पड़ता है, लेकिन जीरो आवर में इसकी जरूरत नहीं होती, क्योंकि ये मुद्दे इतने जरूरी होते हैं कि इन्हें टाला नहीं जा सकता।
इसका नाम ‘जीरो आवर’ क्यों पड़ा?
इसका नाम ‘जीरो आवर’ इसलिए पड़ा क्योंकि यह दोपहर 12 बजे शुरू होता है, जो प्रश्नकाल के बाद और नियमित कार्यवाही शुरू होने से पहले का समय है। हालांकि राज्यसभा में 2014 के बाद जीरो आवर की व्यवस्था थोड़ी अलग हो गई है। अब यहां सुबह 11 बजे जरूरी कागजी कार्यवाही के बाद सबसे पहले शून्यकाल शुरू होता है, और इसके बाद 12 बजे से प्रश्नकाल शुरू होता है। डिक्शनरी में ‘जीरो आवर’ का मतलब होता है ‘निर्णय का क्षण’ या ‘महत्वपूर्ण पल’, और संसदीय भाषा में यह वह समय है जब सांसद सरकार का ध्यान तत्काल मुद्दों की ओर खींचते हैं। जीरो आवर की अधिकतम अवधि 30 मिनट है, और प्रत्येक सांसद को अपने मुद्दे उठाने के लिए 2-3 मिनट का समय मिलता है। हालांकि, स्पीकर या चेयरमैन के विवेक पर इसे बढ़ाया जा सकता है।
लोकसभा में शून्यकाल 12 बजे से शुरू होता है।
कब हुई थी शून्य काल की शुरुआत?
शून्य काल की शुरुआत 1962 में हुई थी, जब सांसदों ने महसूस किया कि कुछ जरूरी मुद्दे, जैसे राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय महत्व के विषय, को तुरंत संसद में उठाने की जरूरत है। उस समय सांसद प्रश्नकाल के बाद ऐसे मुद्दे उठाने लगे, कभी-कभी स्पीकर की अनुमति के साथ और कभी बिना अनुमति के। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान संसद का शीतकालीन सत्र जल्दी शुरू हुआ, और प्रश्नकाल को निलंबित कर दिया गया, जिससे जीरो आवर की जरूरत और बढ़ गई। नौवें लोकसभा स्पीकर रबी रे ने जीरो आवर को और व्यवस्थित किया। उन्होंने इसे नियंत्रित करने के लिए नियम बनाए, ताकि सांसद अधिक व्यवस्थित ढंग से मुद्दे उठा सकें और संसद का समय बचे।
जीरो आवर कैसे काम करता है?
- पहले नोटिस दिया जाता है: सांसदों को जीरो आवर में मुद्दा उठाने के लिए उसी दिन सुबह 10 बजे तक लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा चेयरमैन को लिखित नोटिस देना होता है। इस नोटिस में मुद्दे का विषय स्पष्ट करना होता है।
- स्पीकर/चेयरमैन मुद्दों का चुनाव करते हैं: स्पीकर या चेयरमैन यह तय करते हैं कि कौन सा मुद्दा जीरो आवर में उठाया जाएगा। लोकसभा में रोजाना 20 मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर चुना जाता है।
- प्रत्येक सांसद को तय समय मिलता है: प्रत्येक सांसद को 2-3 मिनट का समय मिलता है। अगर जरूरत हो, तो संबंधित मंत्री जवाब दे सकते हैं, लेकिन जीरो आवर में मंत्रियों का जवाब देना अनिवार्य नहीं है, जैसा कि प्रश्नकाल में होता है।
जीरो आवर का महत्व क्या है?
- तत्काल मुद्दों पर ध्यान: जीरो आवर सांसदों को उन मुद्दों को उठाने का मौका देता है जो तत्काल और जनता के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे प्राकृतिक आपदा, आतंकवाद, या नीतिगत घोषणाएं।
- सरकार की जवाबदेही: यह सरकार को जनता के मुद्दों पर तुरंत जवाब देने के लिए मजबूर करता है। हालांकि मंत्रियों का जवाब देना अनिवार्य नहीं, लेकिन यह मंच सरकार पर दबाव बनाता है।
- लोकतंत्र की मजबूती: जीरो आवर सांसदों को जनता की आवाज संसद तक पहुंचाने का मौका देता है, जिससे लोकतंत्र और मजबूत होता है।
राज्यसभा में शून्यकाल प्रश्नकाल से पहले 11 बजे शुरू होता है।
क्या हैं जीरो आवर की चुनौतियां?
- संसद में व्यवधान: कई बार जीरो आवर में उठाए गए मुद्दों से संसद की कार्यवाही बाधित होती है, क्योंकि सांसद भावनात्मक या विवादास्पद मुद्दे उठाते हैं।
- सीमित समय: 30 मिनट की अवधि में सभी सांसदों को मौका देना मुश्किल होता है हालांकि कभी-कभी इसे बढ़ा भी दिया जाता है।
- अनौपचारिक प्रकृति: चूंकि यह नियम पुस्तिका में शामिल नहीं है, इसलिए इसका दुरुपयोग होने की भी संभावना रहती है।
इस तरह देखा जाए तो ‘शून्य काल’ सांसदों को जनता की आवाज को तुरंत संसद तक पहुंचाने का मौका देता है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सरकार को जवाबदेह बनाता है और जरूरी मुद्दों को सामने लाता है। हालांकि, इसे और प्रभावी बनाने के लिए समय और नियमों को और व्यवस्थित करने की जरूरत है।