सांवले रंग के चलते 11 साल रिजेक्ट होती रही एक्ट्रेस, रंगत देख दिए आदिवासी-नौकरानी के रोल, अब बयां किया दर्द


Tripti Sahu
Image Source : INSTAGRAM/@IMTRIPTISAHU
तृप्ति साहू।

पंचायत सीरीज का चौथा सीजन बीते दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म प्राइम वीडियो पर रिलीज किया गया, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। इससे पहले के भी सीरीज के अन्य सीजन्स को दर्शकों से खूब प्यार मिला। सीरीज में रघुबीर यादव, नीना गुप्ता से लेकर जितेंद्र कुमार जैसे कलाकार लीड रोल में हैं, जो अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में अपनी खास जगह बना चुके हैं। इन लीड कलाकारों के अलावा शो के अन्य कलाकार भी अपने किरदारों के जरिए घर-घर में फेमस हो चुके हैं, फिर चाहे वो बिनोद के किरदार में नजर आने वाले अशोक पाठक हों, सह-सचिव विकास का किरदार निभाने वाले चंदन रॉय या फिर विकास की पत्नी खुशबू के रोल में नजर आने वालीं तृप्ति साहू। पंचायत के सभी कलाकारों को दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है। अब हाल ही में सीरीज में विकास की पत्नी खुशबू का किरदार निभाने वालीं तृप्ति साहू ने इंडस्ट्री में अपने अनुभव के बारे में बात की।

पंचायत की खुशबू का छलका दर्द

डिजिटल कमेंट्री के साथ बातचीत में तृप्ति साहू ने बताया कि वह 11 साल से स्ट्रगल कर रही हैं और बार-बार अपने रंग के चलते रिजेक्शन का सामना करती रही हैं। तृप्ति ने कहा कि वह 11 साल से ऑडिशन दे रही हैं, लेकिन ज्यादातर अपने स्किन टोन के चलते रिजेक्ट हो गईं। उन्हें ये कहकर काम देने से मना कर दिया जाता है कि वह अमीर नहीं लगतीं। हालांकि, इस भेदभाव का सामना उन्हें इंडस्ट्री में ही नहीं अपने घर में भी करना पड़ा है।

रिश्तेदार भी रंग को लेकर देते थे ताने

तृप्ति ने कहा- ‘मैं ही नहीं, मेरे साथ मेरी मां भी इस प्रॉब्लम का सामना कर रही थीं। उस समय बहुत बुरा लगता था, रिश्तेदार भी अक्सर ताने देते थे। लेकिन, अब समझ आता है कि वह चिंता के चलते कहते थे। एक बार मैं शादी में गई थी, सभी रिश्तेदारों के साथ मिलकर खाना बना रही थी। तभी मेरे ताऊजी आए और बोले- अरे इसको कहां डाल दी हो, न शक्ल है और न ही सूरत है। हर तरफ इतनी गोरी-गोरी लड़कियां घूम रही हैं और उनका कुछ नहीं हो रहा तो इसे कौन काम देगा। तब मैं सिर्फ 16 साल की थी और उनकी बात सुनकर बहुत रोई थी।’

रंग के चलते हाथ से गए रोल

तृप्ति आगे कहती हैं- ‘अपने ताऊजी की बात सुनकर मैं बहुत डिप्रेस हो गई थी। तब एक्टर के लिए तब बहुत अलग मायने होते थे। स्किन टोन को लेकर भी बहुत चीजें हुआ करती थीं। तो मेरी मम्मी ने मुझे कहा कि तुम इसे इतना दिल पर क्यों ले रही हो। तुम्हें इन्हीं सब बातों को गलत साबित करना है। इन सब पर ही तुम्हें काम करना है। लेकिन, जब मैं ऑडिशन के लिए जाती तो वहां भी कोई मेड का काम दे रहा है तो कोई आदिवासी लड़की का। प्रॉब्लिम ये है कि आज भी लोग एक्सप्लोर नहीं करना चाहते हैं। बहुत अमीर लड़कियां भी हैं, जो गोरी नहीं हैं। तो जो टर्म है ना कि लड़की अगर अमीर है तो गोरी होगी, गलत है। कास्टिंग करने वालों को ये सोचना चाहिए कि ये माइंडसेट बदले। कई बार मेरे रंग के चलते मेरे हाथ से रोल गए हैं।’





Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *