
जगदीप धनखड़, कपिल सिब्बल और इमरान मसूद
जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया है। धनखड़ ने अपने स्वास्थ्य कारणों के चलते उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपा है। धनखड़ के इस्तीफे पर विपक्ष के नेताओं ने कई सवाल खड़े किए हैं। साथ ही उनके स्वास्थ्य संबंधी चिताएं भी व्यक्त की हैं। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल, कांग्रेस सांसद इमरान मसूद समेत कई नेताओं ने धनखड़ के इस्तीफे पर बयान दिया है।
सिर्फ एक घंटे में ऐसा क्या हो गया- कांग्रेस सांसद मसूद
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा, ‘वे पूरे दिन संसद भवन में थे। सिर्फ एक घंटे में ऐसा क्या हो गया कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा? हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें लंबी और स्वस्थ जिंदगी दें। मुझे इसका कारण समझ नहीं आ रहा है।’
कुछ दिन बाद दिया जा सकता था इस्तीफा- शिवसेना (UBT) सांसद
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर शिवसेना (यूबीटी) नेता आनंद दुबे ने कहा, ‘उपराष्ट्रपति के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देने की खबर चिंताजनक है। हम उनकी कुशलता की कामना करते हैं। हालांकि, एक सवाल उठता है आज मानसून सत्र का पहला दिन था। उसी दिन उनका इस्तीफा देना लोगों को हैरान करता है। इस सरकार में क्या चल रहा है? यह फैसला बिना किसी उचित परामर्श या चर्चा के लिया गया। अगर स्वास्थ्य ही चिंता का विषय था, तो इस्तीफा सत्र से कुछ दिन पहले या बाद में भी दिया जा सकता था।’
कई मामलों में हम एक-दूसरे के खिलाफ- सिब्बल
सिब्बल ने कहा, ‘मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं, क्योंकि मैं दुखी हूं, क्योंकि मेरे उनके साथ बहुत अच्छे संबंध हैं। मैं उन्हें 30-40 सालों से जानता हूं। हम एक-दूसरे के साथ थे। हम कई मामलों में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हुए हैं। हमारे बीच एक अनोखा रिश्ता है।’
सिब्बल ने की अच्छे स्वास्थ्य की कामना
इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘मैंने हमेशा उनका सम्मान किया है। उन्होंने भी मेरा सम्मान किया है। वह हमारे कुछ पारिवारिक समारोहों में शामिल हुए हैं। मुझे दुख है और मुझे उम्मीद है कि वह स्वस्थ हों और दीर्घायु हों। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।’
उन्होंने मुझे कभी मना नहीं किया- सिब्बल
सिब्बल ने आगे कहा, ‘हमारे राजनीतिक विचारों को लेकर भले ही हमारे बीच मतभेद रहे हों, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर हमारे बीच एक बहुत ही मज़बूत रिश्ता था। जब भी मुझे सदन में बोलने के लिए समय की आवश्यकता होती थी, मैं उनसे उनके कक्ष में व्यक्तिगत रूप से मिलता था। उन्होंने मुझे कभी मना नहीं किया, बल्कि मुझे स्वतंत्र सांसदों को मिलने वाले समय से थोड़ा ज़्यादा समय दिया।’