
अक्षय कुमार और सावी सिद्धू।
फिल्म इंडस्ट्री एक ऐसी मायावी दुनिया है, जहां एक पल में सितारे आसमान छूते हैं और अगले ही पल गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। यहां कुछ लोग चमकते हैं तो कुछ टूट जाते हैं और ऐसे ही एक कलाकार हैं सावी सिद्धू, जिनकी जिंदगी की कहानी सफलता, संघर्ष और फिर अकेलेपन की बेहद झगझोरने वाली दास्तान है। सावी सिद्धू की कहानी सिर्फ एक कलाकार के संघर्ष की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की भी है जो कभी-कभी अपने ही लोगों को भुला देता है। उन्होंने मेहनत की, प्रतिभा दिखाई, लेकिन बदले में उन्हें स्थिरता नहीं मिली। सावी अब कहां है, क्या कर रहे हैं, किस हाल में हैं और क्यों फिल्मों से दूर हैं, इन सभी सवालों के जवाब आपको यहां मिलेंगे।
अब क्या कर रहे हैं सावी?
एक समय था जब सावी सिद्धू जैसे कलाकार अक्षय कुमार, ऋषि कपूर जैसे दिग्गजों के साथ फिल्मों में नजर आया करते थे। उन्होंने कई बड़े निर्देशकों के साथ काम किया, जिनमें अनुराग कश्यप का नाम भी शामिल है, लेकिन वक्त ने ऐसी करवट ली कि वही अभिनेता, जो कैमरे के सामने किरदारों में जान डालता था, उसे जिंदगी चलाने के लिए सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करनी पड़ी। अब सावी मुश्किल और तंगहाली भरी जिंदगी गुजार रहे हैं और उन्हें बॉलीवुड में अच्छा काम नहीं मिल रहा है।
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मॉडलिंग से थिएटर तक का सफर
लखनऊ में जन्मे सावी सिद्धू का सपना था मॉडलिंग में करियर बनाना। इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वह चंडीगढ़ पहुंचे, लेकिन किस्मत उन्हें एक्टिंग की दुनिया की ओर खींच लाई। वे घर लौट आए और थिएटर से जुड़कर अभिनय की बारीकियां सीखने लगे। थिएटर ने उन्हें मंच पर खुद को परखने और निखारने का मौका दिया। सावी ने अपने करियर की शुरुआत साल 1995 में फिल्म ‘ताकत’ से की, जहां उनके अभिनय पर अनुराग कश्यप की नजर पड़ी। बाद में कश्यप ने उन्हें अपनी चर्चित फिल्मों ‘ब्लैक फ्राइडे’ (2007) और ‘गुलाल’ (2009) में भी अहम भूमिकाएं दीं। उनकी परफॉर्मेंस को फिल्म समीक्षकों और दर्शकों ने सराहा।
जब जिंदगी ने छीनी रफ्तार
इसके बाद सावी ने ‘पटियाला हाउस’ (2011), ‘डे डी’ (2013), ‘बेवकूफियां’ (2014) और साउथ की फिल्म ‘आरंभम’ में भी एक आतंकवादी की भूमिका निभाकर अभिनय की विविधता दिखाई। उनकी आखिरी प्रमुख फिल्म ‘मस्का’ (2020) रही। इसके बाद उनका करियर धीरे-धीरे ढलान पर चला गया। साल 2019 में सावी सिद्धू का नाम फिर खबरों में आया, लेकिन इस बार वजह फिल्मों की कोई नई भूमिका नहीं, बल्कि उनकी आर्थिक बदहाली थी। अंधेरी वेस्ट, लोखंडवाला की एक बिल्डिंग में उन्हें वॉचमैन की नौकरी करते देखा गया। जब पत्रकारों ने उनसे बात की तो उन्होंने बेहद भावुक होकर अपनी जिंदगी की सच्चाई बयां की।
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नहीं हैं बस टिकट के पैसे
सावी ने बताया, ‘मेरे जीवन का सबसे कठिन दौर तब आया जब मैंने अपनी पत्नी, अपने पिता और फिर मां को भी खो दिया। मैं पूरी तरह अकेला रह गया। कोई सहारा नहीं बचा।’ उनकी आंखों में उस वक्त की पीड़ा साफ दिखती थी। वह दिन-रात 12 घंटे की कड़ी मेहनत करते थे। उन्होंने कहा, ‘मेरे पास बस का टिकट खरीदने तक के पैसे नहीं होते थे। थिएटर में जाकर फिल्म देखना अब एक सपना लगता है।’