
जेएनयू की वाइस चांसलर प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित
नई दिल्ली: मराठी भाषा विवाद पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की वाइस चांसलर प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा, “मैं सबसे पहले मातृभाषा को प्राथमिकता दूंगी क्योंकि मातृभाषा सबसे महत्वपूर्ण है। अन्य दो भाषाएं आपकी बाजार की भाषा होनी चाहिए।”
उन्होंने कहा, “आप जहां भी रहें, स्थानीय भाषा और अपने करियर की भाषा सीखें। यह काम प्रत्येक नागरिक पर छोड़ देना चाहिए। भारत की सभी भाषाएं अच्छी हैं। बहुभाषिकता में संख्या महत्वपूर्ण नहीं है। भाषा घृणा या श्रेष्ठता का साधन नहीं होनी चाहिए। बल्कि यह संचार का माध्यम होनी चाहिए। मैं सभी को भारत की प्रत्येक भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित करती हूं, जहां साहित्य और संपदा का इतना विशाल भंडार है। हालांकि भारतीय साहित्य विभिन्न भाषाओं में लिखा गया है, फिर भी हम एक ही हैं।”
मराठी भाषा विवाद क्या है?
बीते कुछ समय से महाराष्ट्र में मराठी और हिंदी भाषा को लेकर विवाद चल रहा है, जिसे मराठी भाषा विवाद के रूप में जाना जा रहा है। यह विवाद मुख्य रूप से मराठी भाषा को बढ़ावा देने और इसे अनिवार्य करने की मांग के इर्द-गिर्द घूमता है, खासकर मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में। इस विवाद में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयाम शामिल हैं, और यह हिंदी या अन्य गैर-मराठी भाषी लोगों के खिलाफ तनाव और हिंसक घटनाओं का कारण बना है।
इसी साल मार्च 2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेता सुरेश भैयाजी जोशी के बयान ने विवाद को हवा दी, जिसमें उन्होंने कहा कि मुंबई में रहने वालों के लिए मराठी सीखना अनिवार्य नहीं है। इस बयान पर शिवसेना (UBT) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) जैसे दलों ने कड़ा विरोध जताया। इसके जवाब में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मराठी महाराष्ट्र की संस्कृति का हिस्सा है और इसे सीखना हर नागरिक का कर्तव्य है।
महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल 2025 में स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का फैसला लिया। इसे मराठी समर्थक समूहों ने “हिंदी थोपने” का प्रयास माना, जिससे विवाद और गहरा गया। इस नीति के खिलाफ शिवसेना (UBT) और MNS ने विरोध प्रदर्शन किए, इसे मराठी अस्मिता पर हमला बताया।