
इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।
उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ ने क्यों इस्तीफा दिया, इसको लेकर अटकलें जारी है। जगदीप धनखड़ जितने गाजे-बाजे के साथ आए थे, उतनी ही खामोशी से उनकी विदाई हो गई। न कोई समारोह हुआ, न उनके कार्यकाल की तारीफ में कोई भाषण।
जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा क्यों दिया? मुझे लगता है कि वो सरकार के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे थे। परेशानियां पैदा करने लगे थे। इसीलिए उन्हें इस्तीफा देने को कहा गया। मैं आपको अंदर की बात बताता हूं, टकराव कैसे शुरू हुआ, कहां तक गया, ये समझाता हूं।
पहली बात, जगदीप धनखड़ जब से राज्यसभा के सभापति बने, उन्होंने ये impression दिया कि वो सरकार के शीर्ष नेताओं के बहुत करीब हैं, जो भी करते हैं, वो उन्हीं के कहने पर करते हैं। आपको याद होगा, संसद के परिसर में उपराष्ट्रपति के झुके-झुके व्यवहार की mimicry की गई थी, जिसका वीडियो राहुल गांधी ने बनाया था। उसकी वजह ये थी कि चेयरमैन के तौर पर धनखड़ साहब विरोधी दलों के नेताओं से लगातार टकराते थे। विरोधी दलों के नेताओं को यकीन होने लगा था कि धनखड़ साहब सरकार के इशारे पर उन्हें बोलने नहीं देते, बार-बार उनका अपमान करते हैं। इस कारण सरकार और विरोधी दलों के बीच टकराव बढ़ता गया।
दूसरी बात, कुछ महीने पहले धनखड़ साहब ने न्यायपालिका पर सीधा हमला किया, Supreme Court पर वार किया, Parliament की supremacy की बात की। जजों को भी ये लगा कि Vice President साहब ये काम सरकार के इशारे पर कर रहे हैं। वो सरकार के करीबी हैं। न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव जैसी स्थिति पैदा हो गई।
तीसरी बात, इन मामलों पर जब उन्हें समझाने की कोशिश की गई, तो वह नाराज़ हो गए। उन्होंने याद दिलाना शुरू किया कि कैसे उपराष्ट्रपति होते हुए भी उन्होंने जगह-जगह सरकार का बचाव किया। अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी। ये सरकार से उनके सीधे टकराव की शुरुआत थी। बात बढ़ती गई।
चौथी बात, उन्होंने जगह-जगह सरकार के शीर्ष नेतृत्व की शिकायत करनी शुरू कर दी – RSS से लेकर मंत्रियों तक, विपक्षी दलों से लेकर मीडिया के सीनियर लोगों तक। उनकी शिकायत थी कि सरकार में उनसे कोई बात नहीं करता, उन्हें घुटन महसूस हो रही है और कोई उनकी बात प्रधानमंत्री तक पहुंचाए वरना मुझे कुछ करना पड़ेगा। ये एक तरह की धमकी थी, सरकार से सीधा टकराव था।
अंतिम दौर में धनखड़ साहब ने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। कांग्रेस के नेताओं से मिले, अरविंद केजरीवाल को मिलने का समय दिया। इन सबको बहुत कुछ कहा। जज यशवंत वर्मा के impeachment का केस अपने हाथ में लेने की कोशिश की।
जब सरकार को लगा कि अब वो राज्यसभा में भी परेशानी पैदा कर सकते हैं, खुले टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है, तब उन्हें एक phone गया। ये convey किया गया कि अब ये खेल ज्यादा नहीं चलेगा। और ये भी बता दिया गया कि अगर धनखड़ साहब ने अपना रवैया नहीं बदला, तो उनका impeachment भी हो सकता है।
धनखड़ साहब को इस बात की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने top leadership का assessment करने में गलती कर दी। दांव उल्टा पड़ गया। इसीलिए उन्होंने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा। (रजत शर्मा)
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