राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गुरुवार को सोने और चांदी की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई। ऑल इंडिया सर्राफा एसोसिएशन के मुताबिक, 99.9% शुद्धता वाला सोना ₹1,400 की गिरावट के साथ ₹99,620 प्रति 10 ग्राम पर आ गया। एक दिन पहले यानी बुधवार को इसकी कीमत ₹1,01,020 प्रति 10 ग्राम थी। पीटीआई की खबर के मुताबिक, वहीं, 99.5% शुद्धता वाले सोने की कीमत ₹1,200 की गिरावट के साथ ₹99,250 प्रति 10 ग्राम (सभी कर सहित) दर्ज की गई, जो बुधवार को ₹1,00,450 पर बंद हुई थी।
चांदी ₹3,000 सस्ती हुई
चांदी की कीमतों में भी तेज गिरावट देखने को मिली। चांदी ₹3,000 टूटकर ₹1,15,000 प्रति किलोग्राम (सभी कर सहित) पर आ गई। आपको बता दें कि बुधवार को चांदी ₹4,000 की तेजी के साथ रिकॉर्ड स्तर ₹1,18,000 प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई थी।
सोने में क्यों आई इतनी गिरावट?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस गिरावट के पीछे दो मुख्य वजहें हैं- स्टॉकिस्टों द्वारा की गई मुनाफावसूली और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कमजोर रुख। जेएम फाइनेंशियल सर्विसेज में कमोडिटी और करेंसी रिसर्च के वाइस प्रेसिडेंट प्रणव मेर ने कहा कि अमेरिका, जापान और फिलीपींस के बीच हुए नए व्यापार समझौतों से वैश्विक जोखिम प्रीमियम में कमी आई है, जिससे सोने में मुनाफावसूली बढ़ी है। हालांकि, डॉलर की कमजोरी कीमतों को थोड़ा समर्थन दे सकती है।
ग्लोबल मार्केट में क्या चल रहा है?
अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्पॉट गोल्ड $24.35 यानी 0.72% गिरकर $3,362.88 प्रति औंस पर आ गया। HDFC सिक्योरिटीज के सीनियर कमोडिटी एनालिस्ट सौमिल गांधी के मुताबिक अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों के बीच संभावित समझौतों के चलते सेफ हेवन यानी सुरक्षित निवेश विकल्पों की मांग में गिरावट आई है, जिससे गोल्ड प्राइस नीचे गया है।
इसके अलावा, एलकेपी सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट जतिन त्रिवेदी ने बताया कि बीते कुछ हफ्तों में सोने की कीमतें टैरिफ पर बातचीत की अनिश्चितता के चलते मजबूत बनी हुई थीं, लेकिन अब ट्रेड डील्स की खबर से तनाव कम होने की उम्मीद है, जिससे बुलियन का आकर्षण घट सकता है। स्पॉट सिल्वर भी 0.53% गिरकर $39.05 प्रति औंस पर कारोबार कर रही थी।
आगे इन बातों पर होगी नजर
अब निवेशकों की नजर अमेरिका के साप्ताहिक बेरोजगारी आंकड़ों और S&P ग्लोबल फ्लैश PMI डेटा पर है। इनसे यह अंदाजा लगाया जा सकेगा कि अगली फेडरल रिज़र्व की मौद्रिक नीति बैठक में क्या फैसला लिया जा सकता है। इसके साथ ही यूरोपीय सेंट्रल बैंक की ब्याज दर नीति पर भी बाजारों की निगाह बनी रहेगी, जो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजारों में अस्थिरता ला सकती है।