Explainer: कारगिल की जंग में किन हथियारों ने पाकिस्तान को रुलाया था? कितने अलग हैं आज के हथियार?


कारगिल के जमाने से आज...
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कारगिल के जमाने से आज के हथियार काफी अलग हैं।

Kargil Vijay Diwas: मई 1999 से लेकर जुलाई 1999 के बीच लड़ा जाने वाला कारगिल युद्ध भारत के इतिहास में एक ऐतिहासिक और गौरवपूर्ण अध्याय है। पाकिस्तान द्वारा थोपी गई इस जंग में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को हिमालय की ऊंची चोटियों से खदेड़कर नियंत्रण रेखा पर अपनी स्थिति मजबूत की थी। इस युद्ध में भारत की जीत में सैनिकों की बहादुरी के साथ-साथ कुछ खास हथियारों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। आज हम उन्हीं हथियारों की चर्चा करेंगे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में भारत को जीत दिलाने में मदद की, और यह भी देखेंगे कि आज के हथियार उनसे कितने अलग हैं।

कारगिल की लड़ाई में भारत के प्रमुख हथियार

कारगिल की जंग में भारत ने विभिन्न प्रकार के हथियारों और उपकरणों का इस्तेमाल किया था, जिनमें तोपखाने, लड़ाकू विमान, और छोटे हथियार शामिल थे। ऊंचाई वाले इलाकों में युद्ध की चुनौतियों के बावजूद इन हथियारों ने दुश्मन के बंकरों और ठिकानों को नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई। आइए, इन हथियारों के बारे में जानते हैं:

1. बोफोर्स FH-77B तोप

  • क्या थी खासियत: बोफोर्स तोप कारगिल युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण नायिका थी। इस स्वीडिश तोप की मारक क्षमता 27 किलोमीटर तक थी, और यह 3 से 70 डिग्री के कोण पर फायर कर सकती थी। यह 155 मिमी की तोप 9 सेकंड में 4 राउंड फायर करने में सक्षम थी, जिसने ऊंची चोटियों पर बैठे दुश्मन के ठिकानों को ध्वस्त करने में मदद की।
  • युद्ध में भूमिका: बोफोर्स तोपों ने टाइगर हिल, तोलोलिंग, और प्वाइंट 4875 जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों पर सटीक निशाना लगाकर पाकिस्तानी बंकरों को तबाह किया। इसकी गोलाबारी ने दुश्मन की रसद और हथियारों की सप्लाई को बाधित किया, जिससे भारतीय सेना को आगे बढ़ने में मदद मिली।

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कारगिल की जंग में बोफोर्स तोप ने अहम भूमिका निभाई थी।

2. मिराज-2000 लड़ाकू विमान

  • क्या थी खासियत: इंडियन एयरफोर्स ने मिराज-2000 विमानों का इस्तेमाल ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ के तहत किया। ये विमान लेजर-गाइडेड बम से लैस थे, जो सटीक निशाना लगाने में माहिर थे। इजरायल द्वारा दी गई इन मिसाइलों ने युद्ध में गेम-चेंजर की भूमिका निभाई।
  • युद्ध में भूमिका: मिराज-2000 ने ऊंचे पहाड़ों पर छिपे दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले किए। खासकर टाइगर हिल और मुन्थो डालो जैसे इलाकों में इन विमानों ने बंकरों को नष्ट किया। इनके साथ-साथ MiG-21, MiG-27, और MiG-29 ने भी ग्राउंड अटैक और एयर कवर प्रदान किया।

3. SAF कार्बाइन (स्टर्लिंग सबमशीन गन)

  • क्या थी खासियत: यह हल्की और तेज फायरिंग वाली 9×19 मिमी पैराबेलम गोलियों से लैस सबमशीन गन थी। इसका वजन केवल 2.7 किलोग्राम था, और यह 550 राउंड प्रति मिनट की दर से फायर कर सकती थी। इसकी रेंज 200 मीटर थी, जो नजदीकी युद्ध के लिए उपयुक्त थी।
  • युद्ध में भूमिका: ऊंचे और तंग पहाड़ी इलाकों में भारतीय सैनिकों ने SAF कार्बाइन का इस्तेमाल दुश्मन के करीबी ठिकानों पर हमला करने के लिए किया। इसकी हल्की बनावट ने सैनिकों को तेजी से मूव करने में मदद की।

4. AK-47 असॉल्ट राइफल

  • क्या थी खासियत: AK-47 एक मजबूत और भरोसेमंद असॉल्ट राइफल रही है। यह कठिन परिस्थितियों में भी बिना रुके काम करती है, जो कारगिल के ठंडे और ऊबड़-खाबड़ इलाकों के लिए आदर्श थी।
  • युद्ध में भूमिका: भारतीय सैनिकों ने AK-47 का इस्तेमाल नजदीकी लड़ाई या क्लोज/हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट में किया। इसकी तेज फायरिंग और मजबूती ने सैनिकों को दुश्मन के जवानों से मुकाबला करने में मदद की।

5. रॉकेट और मोर्टार

  • क्या थी खासियत: युद्ध में करीब 2.5 लाख गोले और 5000 बम फायर किए गए। इसके लिए 300 से ज्यादा मोर्टार, तोपों, और रॉकेट लांचर को इस्तेमाल में लिया गया। प्रति मिनट एक राउंड की दर से 17 दिनों तक गोलाबारी हुई।
  • युद्ध में भूमिका: इन रॉकेट्स और मोर्टारों ने दुश्मन के डिफेंस को कमजोर किया। खासकर ऊंचाई पर बैठे दुश्मन को निशाना बनाने में ये हथियार कारगर साबित हुए।

इजरायल ने बढ़ाया था मदद का हाथ?

इजरायल ने भी कारगिल की लड़ाई में भारत की काफी मदद की थी। इजरायल ने जंग में भारत का खुलकर साथ देते हुए हमें लेजर-गाइडेड मिसाइलें, हेरोन ड्रोन (UAV), और मोर्टार व गोला-बारूद की आपूर्ति की। ये उपकरण सटीक निशाने और जासूसी  में मददगार थे। हेरोन ड्रोन ने दुश्मन की स्थिति का पता लगाने में मदद की, जबकि लेजर-गाइडेड बमों ने मिराज-2000 के जरिए सटीक हमले किए। यह मदद भारत के लिए निर्णायक साबित हुई।

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आकाश मिसाइल ने पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया है।

कितने अलग हैं आज के हथियार?

कारगिल की लड़ाई को 26 साल हो चुके हैं और इन बीते सालों में भारत हथियारों के मामले में काफी आगे बढ़ गया है। कारगिल की लड़ाई के बाद रक्षा क्षेत्र में सुधारों पर जोर दिया गया, और 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसमें और तेजी देखने को मिली है। यही वजह है कि आज भारत के पास पहले से कहीं ज्यादा आधुनिक और शक्तिशाली हथियार हैं। आइए देखें कि आज के हथियार कारगिल युद्ध के हथियारों से कैसे अलग हैं:

1. तोपखाने या आर्टिलरी में जबरदस्त तरक्की

कारगिल की लड़ाई में हमने बोफोर्स तोप का जमकर इस्तेमाल किया था जो 27 किमी तक मार कर सकती थी और मैनुअल ऑपरेशन पर निर्भर थी। आइए बताते हैं कि अब हमारे पास क्या है:

  • धनुष हॉवित्जर: यह स्वदेशी तोप 38 किमी तक मार कर सकती है और डिजिटल फायर कंट्रोल सिस्टम से लैस है। यह बोफोर्स से ज्यादा सटीक और तेज है। 2035 तक सभी बोफोर्स तोपों को धनुष से बदल दिया जाएगा।
  • अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर (M777): यह हल्की तोप हेलिकॉप्टर से ले जाई जा सकती है, जो ऊंचे इलाकों में उपयोगी है। इसकी रेंज 30 किमी है और यह सटीक निशाना लगाने में सक्षम है।
  • K9 वज्र: यह स्वदेशी स्व-चालित तोप 50 किमी तक मार कर सकती है और स्वचालित सिस्टम से लैस है।

2. लड़ाकू विमानों में भी हुआ भारी बदलाव

कारगिल की लड़ाई के दौरान हम मिराज-2000 और MiG सीरीज के विमान लेजर-गाइडेड बमों पर निर्भर थे। इसके अलावा आसमान में टोह लेने के लिए हमारे पास सीमित साधन थे। आइए, जानते हैं कि आज हमारे पास क्या हैं:

  • राफेल: यह फ्रांस से आयातित 4.5 पीढ़ी का लड़ाकू विमान है, जो SCALP क्रूज मिसाइल और मेटियोर हवा-से-हवा मिसाइल से लैस है। इसकी रेंज और सटीकता मिराज-2000 से कहीं बेहतर है।
  • तेजस Mk-1A: स्वदेशी हल्का लड़ाकू विमान, जो उन्नत रडार और मिसाइल सिस्टम से लैस है। यह ऊंचे इलाकों में तेजी से ऑपरेट कर सकता है।
  • ड्रोन तकनीक: आज भारत के पास स्वदेशी और इजरायली ड्रोन जैसे ड्रोन हेरॉन टीपी और स्विच यूएवी हैं, जो रियल-टाइम टोही और हमले में सक्षम हैं। हमने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ड्रोनों का कमाल खूब देखा था।

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तेजस Mk-1A ऊंचे इलाकों में तेजी से ऑपरेट करने में सक्षम है।

3. अब काफी बदल गए हैं छोटे हथियार

कारगिल की जंग में हमारे सैनिकों ने नजदीकी लड़ाई या हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट में SAF कार्बाइन और AK-47 जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया था। ये अच्छे तो थे, लेकिन आज के समय में उतने कारगर नहीं हैं। अब हमारे पास इस श्रेणी में कई नए हथियार हैं, जैसे:

  • SIG Sauer राइफल: भारतीय सेना अब अमेरिकी सिग सॉयर असॉल्ट राइफलों का इस्तेमाल करती है, जो हल्की, ज्यादा सटीक, और 700 मीटर तक की रेंज वाली हैं।
  • M4A1 कार्बाइन: यह आधुनिक कार्बाइन नाइट विजन और लेजर साइट्स के साथ आती है, जो रात में लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के लिए काफी अच्छी है।
  • स्वदेशी ASMI: यह मशीन पिस्टल क्लोज या हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट के लिए डिजाइन की गई है और हल्की होने के साथ-साथ तेज फायरिंग क्षमता रखती है।

4. मिसाइल और रॉकेट सिस्टम

कारगिल में मोर्टार और रॉकेट का इस्तेमाल तो खूब हुआ था, लेकिन तब के जमाने में इन हथियारों की सटीकता और रेंज सीमित थी। आज भारत इस मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है। आज हमारे पास ये हथियार हैं:

  • पिनाका MBRL: यह स्वदेशी मल्टी-बैरल रॉकेट लांचर 75 किमी तक मार कर सकता है और सटीक निशाना लगाने में सक्षम है।
  • आकाश मिसाइल: सतह-से-हवा में मार करने वाली यह मिसाइल हवाई हमलों से बचाव के लिए है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान आकाश मिसाइल ने पूरी दुनिया में चर्चा बटोरी थी।
  • ब्रह्मोस मिसाइल: यह दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जो 400 किमी तक मार कर सकती है। अगर हम कहें कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान को सबसे ज्यादा दर्द इसी ने दिया था तो गलत न होगा।

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‘ऑपरेशन सिंदूर’ में ब्रह्मोस मिसाइलों ने पाकिस्तान को खूब रुलाया है।

5. जासूसी सिस्टम और कम्यूनिकेशन

कारगिल की लड़ाई में जासूसी के लिए सीमित ड्रोन और ग्राउंड इंटेलिजेंस पर निर्भरता थी। उस समय कम्यूनिकेशन इक्विपमेंट्स भी पुराने हो चले थे। आज भारत इस मामले में भी काफी आगे आ चुका है और अब हमारे पास ये चीजे हैं:

  • उन्नत ड्रोन: भारत अब स्वदेशी Rustom-2 और इजरायली Heron TP जैसे ड्रोन्स का इस्तेमाल करता है, जो रियल-टाइम निगरानी और हमले में सक्षम हैं।
  • सैटेलाइट संचार: ISRO के सैटेलाइट्स और सुरक्षित संचार नेटवर्क ने सेना की कमांड-एंड-कंट्रोल क्षमता को बढ़ाया है।
  • नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर: आज भारतीय सेना डिजिटल और साइबर युद्ध की तकनीकों का इस्तेमाल करती है, जो कारगिल युद्ध के समय उपलब्ध नहीं थीं।

कारगिल की लड़ाई से मिले थे कई कड़े सबक

कारगिल की लड़ाई से भारत को कई सबक मिले थे जिसने हमें अपनी सैन्य तैयारियों में सुधार करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया था। इस लड़ाई के बाद गठित के. सुब्रमण्यम समिति ने कई सिफारिशें कीं, जिनमें हथियारों का आधुनिकीकरण, टोही उपकरणों में सुधार, और हाई एल्टिट्यूड पर लड़ाई के लिए स्पेशल ट्रेनिंग शामिल थी। आज भारत की सेना स्वदेशी हथियारों पर ज्यादा जोर दे रही है। साथ ही, ड्रोन और साइबर युद्ध जैसी नई तकनीकों ने भारत की सैन्य शक्ति को कई गुना बढ़ा दिया है।

पिछले 26 सालों में बहुत कुछ बदल गया

कारगिल युद्ध में बोफोर्स तोप, मिराज-2000, SAF कार्बाइन, और AK-47 जैसे हथियारों ने भारत की जीत में अहम योगदान दिया। ये हथियार उस समय की तकनीक के हिसाब से शक्तिशाली थे, लेकिन आज के हथियार जैसे धनुष हॉवित्जर, राफेल, और पिनाका रॉकेट लांचर कहीं ज्यादा उन्नत, सटीक, और घातक हैं। आज भारत की सेना न केवल आधुनिक हथियारों से लैस है, बल्कि स्वदेशी तकनीक और डिजिटल युद्ध की क्षमता में भी आत्मनिर्भर हो रही है।





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