VIDEO: कारगिल विजय दिवस पर कैप्टन विक्रम बत्रा के भाई का सामने आया बयान, कहा- “उसके बारे में हर दिन सोचता हूं”


Kargil Vijay Diwas
Image Source : PTI/ANI
कारगिल में शहीद हुए थे कैप्टन विक्रम बत्रा, भाई विशाल बत्रा का सामने आया बयान

चंडीगढ़: कारगिल विजय दिवस के मौके पर देश अपने वीर शहीद सपूतों को याद कर रहा है। इस मौके पर कारगिल युद्ध में अपना पराक्रम दिखाने वाले और देश के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा के भाई विशाल बत्रा का बयान सामने आया है।

विशाल बत्रा ने कारगिल विजय दिवस और अपने भाई के बारे में क्या कहा?

कैप्टन विक्रम बत्रा के भाई विशाल बत्रा ने कहा, “आज मैं उन सभी बहादुरों और उनके परिवारों को याद करता हूं जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान सर्वोच्च बलिदान दिया। आज भी, अगर आप द्रास और कारगिल जाएं, जहां युद्ध लड़ा गया था, तो हमारे बहादुर सैनिक आज भी उन ऊंचाइयों की रक्षा उसी तरह करते हैं जैसे उन्होंने 26 साल पहले की थी। जुड़वां भाई होने के नाते, मैं हर दिन अपने भाई विक्रम के बारे में सोचता हूं। मेरे भाई और उनके जैसे अन्य लोगों की वजह से ही आज देश सुरक्षित है।”

कैप्टन विक्रम बत्रा कौन थे?

26 साल पहले साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों को करारी शिकस्त दी थी और पाक सैनिकों को भागने के लिए मजबूर कर दिया था। इस दौरान भारत के 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और 1300 से अधिक घायल हुए थे। भारतीय सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई को “ऑपरेशन विजय” के तहत अंजाम दिया गया था।

इस दौरान शहादत देने वाला हर भारतीय जांबाज भारत का हीरो है। कैप्टन विक्रम बत्रा भी इन्हीं हीरोज में से एक हैं। कारगिल की लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के किस्से आज भी देश में पूरे गर्व के साथ सुनाए जाते हैं और बताया जाता है कि कैसे एक कम उम्र के जवान ने भारत मां की सेवा के लिए अपने जीवन का हंसते-हंसते बलिदान दे दिया। उन्हें मरणोपरांत भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 1974 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। उन्होंने 1996 में भारतीय सेना की संयुक्त रक्षा परीक्षा पास की थी और सेना में कमीशन लेकर लेफ्टिनेंट बने थे। ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान 20 जून 1999 को डेल्टा कंपनी कमांडर कैप्टन विक्रम बत्रा को प्वाइंट 5140 पर आक्रमण करने का दायित्व सौंपा गया था। उन्होंने अपने दस्ते का सबसे आगे रहकर नेतृत्व किया और दुश्मन पर भारी पड़े।

7 जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 के पास उन्हें एक ऐसी संकरी चोटी से दुश्मन के सफाए का कार्य सौंपा गया जिसके दोनों ओर बड़ी ढलान थी। इस दौरान भी उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया और आमने-सामने की लड़ाई में दुश्मन के 5 सैनिकों को ढेर किया। दुश्मन की तरफ से हो रही भारी गोलाबारी के बावजूद उन्होंने प्वाइंट 4875 को लेकर मिली जिम्मेदारी को पूरा किया लेकिन गंभीर रूप से घायल होने के बाद शहीद हो गए।

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